इस चुनाव में भाजपा कमोबेश यही दांव आजमा रही है। उम्मीदवारों की पहली सूची में 21 में से 16 नए चेहरे हैं। सीएम बघेल को घेरने के लिए उनके मुकाबले उनके भतीजे विजय बघेल को उतारा है। सामूहिक नेतृत्व में चुनाव मैदान में उतरी पार्टी ने पीएम मोदी को चेहरा बनाया है।
आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ अस्तित्व में आने के बाद से ही भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर का गवाह रहा है। हालांकि इस बार चुनाव नई परिस्थितियों में हो रही हैं। चुनावी समीकरणों को प्रभावित करने वाली बसपा की उपस्थिति नगण्य है तो राज्य की राजनीति के किवदंती माने जाने वाले अजित जोगी दिवंगत हो चुके हैं।
मुख्य प्रतिद्वंद्वी दोनों दलों को पता है कि सत्ता का रास्ता उन 39 सीटों से गुजरेगा, जो एससी—एसटी के लिए सुरक्षित हैं। राज्य के सियासी इतिहास की बात करें तो अस्तित्व में आने के बाद यहां भाजपा कभी एक फीसदी से भी कम तो कभी दो फीसदी मतों के अंतर से लगातार तीन चुनाव जीतने में सफल रही।
हालांकि, बीते चुनाव में कांग्रेस ने ओबीसी चेहरा भूपेश बघेल को आगे कर तीन चौथाई सीटें जीत कर भाजपा की डेढ़ दशक की सत्ता का खात्मा किया। बीते चुनाव में सत्ता गंवाने के बाद भाजपा ने लोकसभा चुनाव में सभी सीटों पर नए चेहरों को उतार कर 11 में से 9 सीटें जीत ली थीं।
इस चुनाव में भाजपा कमोबेश यही दांव आजमा रही है। उम्मीदवारों की पहली सूची में 21 में से 16 नए चेहरे हैं। सीएम बघेल को घेरने के लिए उनके मुकाबले उनके भतीजे विजय बघेल को उतारा है। सामूहिक नेतृत्व में चुनाव मैदान में उतरी पार्टी ने पीएम मोदी को चेहरा बनाया है।
बघेल के भरोसे कांग्रेस…कांग्रेस फिर से सीएम बघेल के भरोसे है। बघेल पार्टी का ओबीसी चेहरा हैं, जिनकी आबादी राज्य में 47 फीसदी है। पार्टी की योजना सुरक्षित सीटों पर दबदबा कायम रखने के साथ बघेल के जरिये ओबीसी में भी पैठ कायम रखने की है।
सुरक्षित सीटों से सत्ता का रास्ता
राज्य में जनादेश की चाबी एससी—एसटी मतदाताओं के पास है। राज्य की 90 में से 29 सीटें एसटी और दस सीटें एससी के लिए आरक्षित हैं। 12 सीटों पर एसटी मतदाताओं का दबदबा है।
शुरुआती तीन चुनावों में इन्हीं सुरक्षित सीटों पर दबदबा कायम कर भाजपा डेढ़ दशक तक सत्ता में रही। बीते चुनाव में कांग्रेस इन सीटों पर अपना दबदबा कायम कर बड़ी जीत हासिल की।
जातीय समीकरण
राज्य में सामान्य वर्ग की उपस्थिति सांकेतिक है। ओबीसी मतदाता 47%, एससी 13% और एसटी मतदाता 32% हैं। 51 सामान्य सीटों पर भी जीत हार का फैसला यही वर्ग करते हैं।
चुनावी मुद्दे
भाजपा ने बघेल सरकार के भ्रष्टाचार को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया है। कई चर्चित मामलों में सीएम के कई करीबी गिरफ्तार हुए हैं जबकि कई से पूछताछ हो रही है। दूसरी ओर बघेल सरकार अपनी उपलब्ध्यिां गिनाने में जुटी हैं। हालांकि पार्टी के लिए गुटबाजी बड़ी समस्या है। सीएम बघेल और टीएस सिंहदेव के बीच पूरे कार्यकाल रस्साकशी चली है।