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गर्मी की तपन के कारण 2050 तक 10 प्रतिशत कम होगी गेहूं की फसल, ज्वार पर नहीं पड़ेगा असर

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मानसून के असमान वितरण और बिपरजॉय चक्रवात ने खरीफ की फसलों पर खासा असर डाला है। एक ओर जहां खरीफ सीजन की मुख्य फसल धान के रकबे में 26 फीसदी की कमी आई है, वहीं राजस्थान में बाजरे के रकबे में लगभग दोगुना बढ़ोतरी हुई है।

बढ़ते तापमान के कारण भारत में 2040 तक गेहूं की पैदावार में पांच फीसदी और 2050 तक 10 फीसदी की कमी हो सकती है। यह बात एक अध्ययन में सामने आई है। इस अध्ययन में गेहूं और ज्वार के उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की तुलना की गई है। शोधकर्ताओं ने पाया कि बढ़ते तापमान का ज्वार की उत्पादकता पर गेहूं जैसा असर नहीं पड़ेगा। 2030 तक गेहूं के लिए पानी की कुल जरूरत नौ फीसदी तक बढ़ सकती है, जबकि इस दौरान ज्वार के लिए पानी की जरूरत छह फीसदी ही बढ़ेगी।

ज्वार और रबी की फसल में बढ़ोतरी
न्यूयॉर्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय में पारिस्थितिकी और सतत विकास के शोधकर्ता प्रोफेसर रूथ डेफ्रीज के अनुसार, यदि सही संतुलन बनाया जाए तो ज्वार और रबी की फसल में बढ़ोतरी करने के लिए गेहूं जलवायु के अनुकूल होने का विकल्प प्रदान करता है। ज्वार या बाजरे की शुष्क परिस्थितियों में उगने की क्षमता के कारण इन फसलों को जीवट माना जाता है। इसमें गेहूं की तुलना में करीब दो से तीन फीसदी पानी की कम खपत होती है। दूसरी ओर गेहूं की अधिक पैदावार का मतलब है प्रतिबूंद अधिक फसल का उत्पादन।

ज्वार पर नहीं किया गया अधिक शोध
बढ़ते तापमान का गेहूं पर भारी असर पड़ता है। अध्ययन के मुताबिक, भारत में कुल गेहूं उत्पादन में 1998 से 2020 के बीच करीब 42% की बढ़ोतरी हुई, जबकि ज्वार में 10% की गिरावट आई। यह गिरावट फसल क्षेत्र में 21% की कमी के कारण हुई। ज्वार की पैदावार कम होने का एक कारण यह है कि इस पर उतना शोध नहीं किया गया है, जितना कि गेहूं पर किया है

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