वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ और न्यूट्रिशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट (एनएपीआई) के संयोजक डॉ. अरुण गुप्ता के मुताबिक, भारत में कई दशक से बच्चे कुपोषण, मोटापा, एनीमिया और बौनापन जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं।
खाद्य पदार्थों के विज्ञापन बच्चों के लिए घातक साबित हो रहे हैं। यह बात 2009 से अब तक बच्चों के खाद्य विज्ञापन को लेकर हुए 200 चिकित्सा अध्ययनों में सामने आई है।विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने यह जानकारी नए दिशा-निर्देशों में दी है, जिसे बीती तीन जुलाई को भारत सहित सभी सदस्य देशों के साथ साझा किया है। इन दिशा-निर्देशों को तैयार करने के लिए डब्ल्यूएचओ ने अलग-अलग देशों के 35 विशेषज्ञों की एक संयुक्त टीम बनाई, जिसकी सिफारिशों के आधार पर बच्चों को हानिकारक प्रभाव से बचाने के लिए नए सिरे से नीतियां तय की गई हैं। साथ ही कहा है कि इन विज्ञापनों को कानून के दायरे में लाया जाए।
अधिक फैटी एसिड, शर्करा और नमक वाले पदार्थों से बचें
वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ और न्यूट्रिशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट (एनएपीआई) के संयोजक डॉ. अरुण गुप्ता के मुताबिक, भारत में कई दशक से बच्चे कुपोषण, मोटापा, एनीमिया और बौनापन जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। दुनिया में हर साल सबसे ज्यादा समय पूर्व बच्चों का जन्म भारत में हो रहा है। सभी उम्र के बच्चों को उन खाद्य पदार्थों से बचाया जाना चाहिए, जिनमें फैटी एसिड, ट्रांस-फैटी एसिड, शर्करा या नमक की मात्रा अधिक होती है।