गृह मंत्रालय के मुताबिक, पीएफआई के सदस्य आतंकी साजिश के लिए हवाला व चंदों के रूप में विदेश से पैसे जुटाते हैं। इस रकम को अलग-अलग चैनलों के माध्यम से सफेद किया जाता है। पीएफआई की राजनीतिक इकाई सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया को 2018-19 से अब तक तीन साल में 11 करोड़ रुपये का चंदा मिला।
केंद्र सरकार द्वारा पीएफआई(PFI) पर प्रतिबंध लगाने के बाद दो गैर भाजपा राज्यों ने भी अधिसूचना जारी कर इस संगठन को एक गैरकानूनी संघ घोषित कर दिया। तमिलनाडु और केरल सरकार ने अधिसूचना जारी कर PFI और उससे संबंधित संगठनों को अवैध घोषित किया है। हालांकि इसके बाद महाराष्ट्र ने भी अधिसूचना जारी कर दी। अधिसूचना जारी होने के बाद कई शहरों में पीएफआई के दफ्तरों को सील किया जा रहा है। पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने के लिए गृह मंत्रालय द्वारा जारी नोटिफिकेशन में इस संगठन की आतंकी, हिंसक और मजहबी कट्टरता फैलाती गतिविधियों और अवैध तरीकों से जुटाई रकम के बारे में जानकारी दी गई है। इससे साफ होता है कि पीएफआई ने लगभग हर वो देश-विरोधी काम किया जो भारत को कमजोर कर सकता है। इन गतिविधियों से समझा जा सकता है कि पीएफआई न केवल समाज को नुकसान पहुंचा रहा था, बल्कि खुद को तेजी से बढ़ा कर मजबूत भी कर रहा था।
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई का गठन 17 फरवरी 2007 को हुआ था। ये संगठन दक्षिण भारत के तीन मुस्लिम संगठनों का विलय करके बना था। इनमें केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु का मनिथा नीति पसराई शामिल थे। पीएफआई का दावा है कि इस वक्त देश के 23 राज्यों यह संगठन सक्रिय है। देश में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट यानी सिमी पर बैन लगने के बाद पीएफआई का विस्तार तेजी से हुआ है। कर्नाटक, केरल जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में इस संगठन की काफी पकड़ बताई जाती है। इसकी कई शाखाएं भी हैं। गठन के बाद से ही पीएफआई पर समाज विरोधी और देश विरोधी गतिविधियां करने के आरोप लगते रहते हैं।