सुप्रीम कोर्ट नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर 31 अक्टूबर को सुनवाई करेगा। सुनवाई की सुविधा के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि 200 से अधिक याचिकाओं में लिखी बातों का वर्गीकरण हो। चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस रविंद्र भट्ट की बेंच ने कहा कि सॉलिसीटर जनरल का दफ्तर चार हफ्ते में ऐसा करके सभी मुद्दों पर जवाब दे। इसके बाद दो हफ्ते में मुख्य मामलों की सूची बने। कोर्ट ने कहा कि असम के मामले अलग से सुने जाएंगे।
केंद्र सरकार ने 17 मार्च 2020 को इस मामले में 133 पेजों का हलफनामा दाखिल करके कहा था कि नागरिकता संशोधन कानून में कोई गड़बड़ी नहीं है। केंद्र सरकार ने कहा था कि इस कानून में कुछ खास देशों के खास समुदाय के लोगों के लिए ढील दी गई है। केंद्र सरकार ने कहा था कि संबंधित देशों में धर्म के आधार पर उत्पीड़न किया जा रहा है। पिछले 70 सालों में उन देशों में धर्म के आधार पर किए जा रहे उत्पीड़न को ध्यान में रखते हुए संसद ने ये संशोधन किया है। केंद्र सरकार ने कहा था कि नागरिकता संशोधन कानून से किसी भी भारतीय नागरिक का कानूनी, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष अधिकार प्रभावित नहीं होता है।
केंद्र सरकार ने कहा था कि नागरिकता देने का मामला संसदीय विधायी कार्य है जो विदेश नीति पर निर्भर करती है। इस मामले में न्यायिक हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। केंद्र सरकार ने कहा था कि इस कानून से संविधान की धारा 14 का कोई उल्लंघन नहीं होता है।