सपा उपचुनाव को लेकर शुरुआत से ही दुविधा में दिखी। आजमगढ़ के लिए प्रत्याशी चयन में ही उसे काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। प्रत्याशी के तौर पर डिंपल यादव, रमाकांत यादव, सुशील आनंद सहित कई स्थानीय नेताओं के नाम सुर्खियों में रहे। अंत में धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा गया। सपा की इस दुविधा ने मतदाताओं को भ्रमित किया।
आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में मिली हार सपा के लिए सियासी सबक है। इस हार ने पार्टी के लिए 2024 की राह में कांटें बिछा दिए हैं। इन कांटों को हटाने के लिए सपा को नए सिरे से तैयारी करनी होगी। जानकारों का मानना है कि उपचुनाव में शीर्ष नेतृत्व ने गंभीरता नहीं दिखाई। चुनावी तैयारी अधूरी रही। सपा के वोट में बसपा की सेंधमारी और अखिलेश यादव की चुनाव से दूरी हार की मुख्य वजह मानी जा रही है। सपा विधानसभा चुनाव के दौरान मिले वोटबैंक को लोकसभा उपचुनाव तक सहेजने में नाकाम रही। वहीं, भाजपा ने वोटबैंक को सहेज कर जीत का सेहरा सजा लिया है।
सपा उपचुनाव को लेकर शुरुआत से ही दुविधा में दिखी। आजमगढ़ के लिए प्रत्याशी चयन में ही उसे काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। प्रत्याशी के तौर पर डिंपल यादव, रमाकांत यादव, सुशील आनंद सहित कई स्थानीय नेताओं के नाम सुर्खियों में रहे। अंत में धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा गया। सपा की इस दुविधा ने मतदाताओं को भ्रमित किया। हालांकि धमेंद्र यादव मैदान में उतरे और दिनरात मेहनत की। उनकी सक्रियता के बाद प्रो. रामगोपाल, आजम खां सहित पार्टी के तमाम दिग्गजों ने आजमगढ़ में डेरा डाला, लेकिन कामयाबी नहीं मिली।
स्थानीय लोगों की मानें तो आजमगढ़ की हार के अलग-अलग कारण हैं। पार्टी से जुड़े मेहनगर निवासी शाहिद कहते हैं कि आजमगढ़ के प्रति सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की ज्यादा जिम्मेदारी थी। वह यहां से इस्तीफा देकर गए थे। स्थानीय नेताओं ने उन्हें कई बार निमंत्रण भेजा, लेकिन वह आजमगढ़ नहीं गए। कुछ ऐसा ही तर्क पूर्व बैंक मैनेजर जीउत राम भी देते हैं। वह कहते हैं कि सपा की तैयारी अधूरी रही। कौन उम्मीदवार होगा, यह अंतिम दिन पता चला। सपा अध्यक्ष आजमगढ़ में एक दिन आकर लोगों से बात कर लेते तो संभव है कि वोटरों में उत्साह बढ़ता। फिलहाल प्रदेश की सियासत पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार नागेंद्र का कहना है कि आजमगढ़ व रामपुर उपचुनाव ने सपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। उसे 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अभी से कड़ी मेहनत करनी होगी। भाजपा की हर चाल पर नजर रखते हुए आगे बढ़ना होगा।
आजमगढ़ में सपा का सफर
आजमगढ़ लोकसभा चुनाव की स्थिति देखें तो यहां 2009 के बाद सपा को लगातार बढ़त मिली। 2009 के लोकसभा चुनाव में सपा 17.57 फीसदी वोट पाकर तीसरे नंबर पर रही। इस चुनाव में भाजपा से रमाकांत यादव ने जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में भाजपा को 35.13 फीसदी, बसपा को 28.18 फीसदी वोट मिला था। वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव मैदान में उतरे तो पार्टी को 35.43 फीसदी वोट मिला। यानी 17.86 फीसदी की बढ़त हुई। जबकि भाजपा के रमाकांत यादव का 6.28 फीसदी वोट कम हुआ। इसी तरह वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा का गठबंधन होने से सपा उम्मीदवार अखिलेश यादव को 621578 वोट मिला। उन्हें कुल 24.61 फीसदी की बढ़त के साथ 60 फीसदी वोट मिले थे। जबकि भाजपा के दिनेश लाल यादव को 35 फीसदी वोट मिले। खास बात यह रही है कि इस चुनाव में 2014 की अपेक्षा भाजपा का वोटबैंक 6.25 फीसदी बढ़ा था। 2022 के लोकसभा उपचुनाव में सपा का वोटबैंक गिरकर 33.44 पर पहुंच गया और भाजपा 34.39 फीसदी वोट विजेता बनी। बसपा को 29.27 फीसदी वोट मिले हैं।
कम होगा आजम का दबाव
रामपुर उपचुनाव में मिली हार सपा शीर्ष नेतृत्व के साथ आजम खां की साख पर बट्टा लगने जैसा है। सियासी जानकारों का कहना है कि पिछले दिनों जिस तरह से आजम के खास लोगों ने सपा नेतृत्व पर हमला बोला, उसी तरह से उपचुनाव के परिणाम ने उन्हें चुप्पी साधने पर विवश कर दिया है। आजम के इशारे पर राज्यसभा से लेकर विधान परिषद सदस्य तक चुने गए। लोकसभा उपचुनाव में उम्मीदवार भी आजम के खास व्यक्ति को बनाया गया। रामपुर को लेकर आजम पूरी तरह निश्चिंत दिख रहे थे। लेकिन नतीजे चौंकाने वाले रहे। वहीं, भाजपा ने कभी आजम के शार्गिद रहे घनश्याम लोधी पर दांव लगाया और सियासी बाजी पलट दी। यहां सपा को 46 फीसदी और भाजपा को 51.96 फीसदी वोट मिले।