सतर्कता विभाग के पत्र के आधार पर शासन ने निदेशक आईसीडीएस से बाबू के खिलाफ तत्काल अभियोजन देने के निर्देश दिए हैं, लेकिन आदेश के एक सप्ताह बाद भी स्वीकृति नहीं दी गई है। इससे पहले भी एक अन्य भर्ती घोटाले में अनिल के खिलाफ सतर्कता विभाग मुकदमा कायम करा चुका है। दरअसल मामला सपा सरकार के समय का है।
बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग (आईसीडीएस) में पदोन्नति घोटाले और डीपीओ फतेहपुर के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच अभी पूरी भी नहीं हुई कि आशुलिपिक भर्ती घोटाले में निदेशालय में तैनात प्रधान लिपिक अनिल कुमार यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने की तैयारी शुरू हो गई है। सतर्कता विभाग ने अनियमितता के आरोपी प्रधान लिपिक के खिलाफ विभाग से अभियोजन स्वीकृति की मांग की है।
सतर्कता विभाग के पत्र के आधार पर शासन ने निदेशक आईसीडीएस से बाबू के खिलाफ तत्काल अभियोजन देने के निर्देश दिए हैं, लेकिन आदेश के एक सप्ताह बाद भी स्वीकृति नहीं दी गई है। इससे पहले भी एक अन्य भर्ती घोटाले में अनिल के खिलाफ सतर्कता विभाग मुकदमा कायम करा चुका है। दरअसल मामला सपा सरकार के समय का है। उस समय अनिल मैनपुरी में तैनात था और तत्कालीन सपा सरकार में कई मंत्रियों के नजदीकी का फायदा उठाते हुए प्रतिनियुक्ति पर अपनी नियुक्ति राज्य अधीनस्थ चयन आयोग में करा ली थी। कुछ दिन बाद ही आयोग द्वारा 635 पदों आशुलिपिक (सामान्य चयन) की भर्ती हुई थी। इस भर्ती में धांधली सामने आई थी। इसी बीच प्रदेश में सरकार भी बदल चुकी थी।
नई सरकार ने मामले की प्रारंभिक जांच कराई तो घोटाले में आयोग के तत्कालीन सचिव महेश प्रसाद समेत कुल पांच लोगों के शामिल होने की बात सामने आई थी। इसमें अनिल भी शामिल हैं। इस आधार पर आयोग ने उसकी प्रतिनियुक्ति रद्द करके मूल विभाग में वापस भेज दिया, लेकिन अनिल वापस जाने के बजाय तत्कालीन निदेशक आईसीडीएस राजेंद्र कुमार से साठ-गांठ करके मुख्यालय पर रह गया। उधर आयोग ने मामले की प्रारंभिक जांच कराई तो अलग-अलग हुई तीन भर्तियों में धांधली समाने आई और सभी में अनिल के शामिल होने की पुष्टि हुई। इसी कड़ी में आयोग ने बाल विकास विभाग को अनिल के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा था।
आयोग के पत्र के आधार पर तत्कालीन निदेशक शत्रुघ्न सिंह ने अनिल को निलंबित करके विभागीय जांच शुरू करा दी। जांच तत्कालीन उप निदेशक संतोष कुमार को सौंपी गई थी। हालांकि जांच रिपोर्ट पर आश्चर्यजनक तरीके से अनिल को सिर्फ दो वेतन वृद्धि रोकते हुए बहाल कर दिया गया। उधर अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने मामले की जांच सतर्कता आयोग को सौंप दिया था। जांच में दोषी पाये जाने पर तत्कालीन विशेष सचिव गृह आरपी सिंह ने 30 मई को ही तत्कालीन प्रमुख सचिव बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार अनीता सी मेश्राम को पत्र लिखा था, जिसमें अनिल के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति देने को कहा गया था। इसी आधार पर विभाग के संयुक्त सचिव महाबीर प्रसाद ने 17 जून को निदेशक आईसीडीएस को तत्काल अभियोजन की स्वीकृति देने का निर्देश दिया है, लेकिन एक सप्ताह बाद भी इस पर कार्रवाई नहीं हुई है।
आरोपी को मिली मलाईदार पोस्ट
घोटालों में घिरे होने के बाद भी अनिल को निदेशालय में मलाईदार पोस्टिंग दी गई है। उसे नजारत समेत उस महत्वपूर्ण पटल की जिम्मेदारी दी गई है, जिस पर संवेदनशील काम होते हैं। निदेशालय में अनिल के प्रभाव का आलम यह कि आवंटित कार्यों के अलावा विभागीय कर्मियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग, प्रमोशन और विभागीय जांच से संबंधित कार्यों में भी अनिल का परोक्ष रूप से हस्तक्षेप रहता है।