सुप्रीम कोर्ट आज गुलबर्गा सोसाइटी दंगा मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को क्लीनचिट के खिलाफ जाकिया जाफरी की याचिका पर फैसला सुनाएगा। जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच फैसला सुनाएगी। कोर्ट ने 9 दिसंबर, 2021 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तीस्ता सीतलवाड पर पिछले बीस वर्ष से गुजरात सरकार को बदनाम करने की साजिश करने का आरोप लगाया था। गुजरात सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि जाकिया जाफरी से हमें सहानुभूति है। उन्होंने अपने पति को खोया है। लेकिन उनकी पीड़ा का लाभ उठाने की भी एक सीमा होती है। गवाहों को सिखाया-पढ़ाया गया। एसआईटी ने सीतलवाड के खिलाफ साक्ष्यों से छेड़छाड़ कर निर्दोष लोगों को फंसाने का मुकदमा क्यों नहीं चलाया।
मेहता ने कहा था कि 2021 में आरोप लगाकर मामले की दोबारा जांच की मांग की जा रही है। मेहता ने आरोप लगाया था कि सिटीजन फॉर पीस ऐंड जस्टिस और सबरंग इंडिया ट्रस्ट का निजी हितों के लिए इस्तेमाल किया गया। इनके खातों का लंबे समय तक ऑडिट नहीं किया गया।
एसआईटी की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने एसआईटी पर लगाए गए सभी आरोपों को खारिज किया था। उन्होंने कहा था कि एसआईटी ने काफी सूक्ष्मता से जांच की और उसकी जांच में कोई गड़बड़ी नहीं है। रोहतगी ने कहा था कि ट्रायल कोर्ट ने गुलबर्गा सोसायटी दंगा मामले में 17 जून, 2016 को फैसला सुनाया। जाकिया जाफरी ने 2006 में शिकायत की। जब जाफरी अपनी एफआईआर दर्ज करवाने की मांग के लिए हाई कोर्ट गईं तो उनके साथ एक एनजीओ की प्रमुख तीस्ता सीतलवाड भी शामिल हो गईं। हाई कोर्ट ने कहा था कि की तीस्ता सीतलवाड का इस केस से कोई लेना-देना नहीं है।
जाकिया जाफरी की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि जांच के लिए महत्वपूर्ण गवाहों के बयान दर्ज नहीं किए गए। हिंसा भड़काने के लिए झूठा प्रोपागंडा फैलाया गया लेकिन जांच नहीं हुई। सिब्बल ने कहा था कि तहलका के स्टिंग पर पुलिस की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई। उस स्टिंग में कहा गया है कि अस्पताल के बाहर जुटी भीड़ पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। तहलका के स्टिंग की तस्दीक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, सिटिजंस ट्रिब्यूनल और वुमन पार्लियामेंट्री कमेटी ने भी की लेकिन किसी से पूछताछ नहीं की गई। उन्होंने कहा कि आपराधिक घटना में सबसे पहले पीड़ित का बयान दर्ज किया जाता है। लेकिन कोई बयान दर्ज नहीं किया गया ।सिब्बल ने एसआईटी पर आरोपियों से मिलीभगत का आरोप लगाया था। सुप्रीम कोर्ट ने इन आरोपों पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि मिलीभगत एक कठोर शब्द है। ये वही एसआईटी है जिसने अन्य मामलों में चार्जशीट दाखिल की थी और आरोपितों को दोषी ठहराया गया था। उन कार्यवाही में ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली।
आशा खबर/रेशमा सिंह पटेल