संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा धार्मिक भेदभाव के खिलाफ चलाए जाने वाले अभियानों को कुछ धर्मों तक सीमित किये जाने के मसले पर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ‘हिंसा को उकसावे से अत्याचार अपराध को बढ़ावा’ विषयक बैठक में भारत के उप स्थायी प्रतिनिधि आर. रवींद्र ने चेतावनी देते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र के अभियान सिर्फ कुछ धर्मों तक सीमित नहीं होने चाहिए।
भारतीय प्रतिनिधि ने कहा कि नफरत फैलाने वाले भाषणों व भेदभाव के खिलाफ अभियान कुछ चुनिंदा धर्मों और समुदायों तक ही सीमित नहीं रहने चाहिए। यह सुनिश्चित करना संयुक्त राष्ट्र की जिम्मेदारी है कि ऐसे अभियानों के दायरे में सभी धर्मों और समुदायों के प्रभावित लोगों को शामिल किया जाए। हिंसा को बढ़ावा देना शांति, सहिष्णुता और सद्भाव की भावना के खिलाफ है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आतंकवाद सभी धर्मों और संस्कृतियों का विरोधी है।
आर. रवींद्र ने कहा कि हमें कट्टरपंथ व आतंकवाद का सामूहिक रूप से मुकाबला करना चाहिए। भारत हमेशा से यह मानता रहा है कि लोकतंत्र और बहुलवाद के सिद्धांतों पर आधारित समाज विविध समुदायों को एक साथ रहने के लिए एक बेहतर माहौल प्रदान करता है। संवैधानिक दायरे में विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का वैध प्रयोग लोकतंत्र को मजबूत करने तथा असहिष्णुता का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण होता है।
आशा खबर/रेशमा सिंह पटेल