इस समय मोबाइल फोन में इस्तेमाल होने वाले 54 प्रतिशत कंपोनेंट और सब एसेंबली का आयात होता है।
भारत में मोबाइल फोन बनाने में इस्तेमाल होने वाले प्रमुख पुर्जों और सामान पर ज्यादा शुल्क लगने से स्थानीयकरण प्रभावित हुआ है। उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना का फायदा भी इसकी वजह से खत्म हो गया है। इन वजहों से चीन और वियतनाम जैसे देशों की तुलना में भारत से मोबाइल निर्यात कम प्रतिस्पर्धी रह गया है।
इंडियन सेलुलर ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (आईसीईए) के आयात शुल्क और उसके असर पर किए गए एक तुलनात्मक अध्ययन के मुताबिक मौजूदा शुल्क के कारण मोबाइल में इस्तेमाल होने वाली सामग्री 8 से 10 प्रतिशत महंगी हो जाती है और मोबाइल उपकरण की कुल लागत में 5 से 7 प्रतिशत वृद्धि हो जाती है। इसके कारण पीएलआई योजना के तहत मिलने वाला लाभ (4 से 6 प्रतिशत) निष्प्रभावी हो जाता है।
ज्यादा शुल्क से स्थानीयकरण में भी मदद नहीं मिल पा रही है, जो सरकार का मुख्य मकसद है। सरकार ने वित्त वर्ष 27 तक 40 प्रतिशत मूल्यवर्धन का लक्ष्य रखा है। इस समय मोबाइल फोन में इस्तेमाल होने वाले 54 प्रतिशत कंपोनेंट और सब एसेंबली का आयात होता है।
इस पर 10 प्रतिशत से 25 प्रतिशत के बीच शुल्क लगता है। इसके विपरीत चीन में 60 प्रतिशत कंपोनेंट के आयात पर 5 प्रतिशत या इससे कम शुल्क लगता है, जबकि किसी कंपोनेंट के आयात पर 10 प्रतिशत से ज्यादा शुल्क नहीं लगता है।
इसके अलावा भारत का औसत मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन) शुल्क 8.5 प्रतिशत है, जो चीन के 3.7 प्रतिशत से बहुत ज्यादा है। वहीं वियतनाम के मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के कारण भारित औसत शुल्क दर 0.7 प्रतिशत रह जाता है, जो भारत में 6.8 प्रतिशत है।
अध्ययन के मुताबिक डिस्प्ले असेंबली और कैमरा मॉड्यूल का बिल संयुक्त रूप से मोबाइल फोन की सामग्री के कुल बिल का 23.5 प्रतिशत होता है। इन दोनों का भारत में स्थानीयकरण 25 प्रतिशत है, जबकि चीन में इनका स्थानीयकरण क्रमशः 75 प्रतिशत और 95 प्रतिशत है। इन कंपोनेंट पर भारत में 2016 से 2021 के बीच 11 प्रतिशत वृद्धि हुई है।
भारत में मोबाइल बनाने वाले सिर्फ 20 प्रतिशत स्थानीय पुर्जों का इस्तेमाल करते हैं, जबकि डाई कट में यह 15 प्रतिशत है। चीन ने पहले ही इसमें 100 प्रतिशत स्थानीयकरण का लक्ष्य हासिल कर लिया है। भारत में इन दो उत्पादों पर आयात शुल्क इस अवधि के दौरान 6.2 प्रतिशत बढ़ा है।
इस समय पीएलआई योजना के तहत भारतीय मोबाइल फोन में 20 प्रतिशत से कम मूल्यवर्धन हो रहा है। ऐपल इंक के मामले में तो यह महज 12-15 प्रतिशत है। सरकार का लक्ष्य वित्त वर्ष 27 तक 40 प्रतिशत स्थानीयकरण करना है, जबकि चीन पहले ही इस स्तर पर पहुंच चुका है।
आईसीईए ने सरकार से अनुरोध किया है कि जिन पुर्जों का आयात किया जा रहा है, उनके स्थानीयकरण की नीति पर ध्यान दिया जाना चाहिए, न कि ज्यादा कर लगाने पर, जो प्रतिकूल साबित हो रहा है।