देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस हर तरह का जतन करने के बावजूद बिहार में घुटनों पर क्यों है? बेचारी क्यों है? क्यों इसे सबसे बड़े नेता राहुल गांधी की बात भी नहीं मानी जाती है? क्यों सीटों पर भी उसे ही समझौता करना है? सवाल मौजूं हैं।
लोकसभा चुनाव 2019 में बिहार के अंदर महज एक सीट जीतने वाली देश की सबसे बड़े पार्टी पांच साल बाद राजनीतिक रूप से सबसे सक्रिय राज्य में क्यों इस हालत में है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्षी एकता के नाम पर बने गठबंधन INDIA में खुद को सबसे प्रभावी साबित करने के बावजूद बिहार में यह हालत क्यों है? क्यों बिहार के दोनों क्षेत्रीय दल उसे भाव नहीं दे रहे हैं? इस सवाल का जवाब कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व तक को नहीं मिल पा रहा है। एक के बाद एक घटनाक्रम हो रहे हैं और हरेक जगह कांग्रेस की बुरी स्थिति ही नजर आ रही है।
12 जून 2023 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विपक्षी दलों की बैठक बुलाई। तब कांग्रेस के नंबर वन नेता राहुल गांधी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के नहीं आने की जानकारी आई। इसके बाद राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव भी इस अभियान में आगे आए। 23 जून को बैठक सफल हुई और इसमें राहुल के साथ खरगे भी पहुंचे। बैठक के पहले विपक्षी एकता के दूल्हे की बात भारतीय जनता पार्टी बार-बार उठा रही थी और बैठक के बाद प्रेस वार्ता के दौरान लालू ने राहुल गांधी को कहा था कि हम बारात बनने के लिए तैयार हैं, आप शादी कीजिए, दूल्हा बनिए। इस बैठक के पहले सीएम नीतीश कुमार ने कांग्रेस को आश्वासन दिया था कि मंत्रिमंडल विस्तार करेंगे। राहुल आए तो उन्होंने कांग्रेस कोटे के मंत्रियों की संख्या में दो इजाफे की बात कर ली। मतलब, दो की जगह कांग्रेस के चार मंत्री होंगे। जून से दिसंबर बीत गया, मगर कई बार मुद्दा उठाए जाने के बावजूद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह अपनी पार्टी से दो और मंत्री नहीं बनवा सके। जब राहुल गांधी से बात के बावजूद सात छह महीने में बात नहीं बनी तो कांग्रेस को समझना चाहिए था कि उसे लोकसभा की सीटों में भी यही सब देखना होगा।
अब कांग्रेस जो देख रही, उसपर क्या करे
कांग्रेस को बिहार में लोकसभा की 10-11 सीटें चाहिए प्रत्याशी उतारने के लिए। जदयू ने उसे साफ कहा है कि वह बिहार में प्रभावी नहीं है। एक ही सीट पिछले चुनाव में जीत सकी थी। उसे शून्य सांसद वाले राजद से बात करनी है। जदयू का गठबंधन राजद से है। राजद का कांग्रेस समेत बाकी दलों से। सवाल उठता है कि जब इंडी एलायंस की बात हो रही है तो यह सब कहते हुए जदयू ने कांग्रेस को क्या दो टूक नहीं सुना दिया है? वस्तुत: यही बात है। कांग्रेस के भाव को बार-बार नीतीश कुमार ने खुद तोड़ा है। नीतीश ने पांच विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की व्यस्तता पर कटाक्ष किया तो दिग्गजों को झुकना पड़ा। जैसे ही परिणाम में हश्र दिखा तो कांग्रेसी दिग्गजों को सीएम नीतीश कुमार की ही बात याद आई और फिर इंडी एलायंस की बैठक तत्काल कराने की छटपटाहट दिखी। मतलब, साफ है कि कांग्रेस के पास अब करने के लिए कुछ नहीं है। उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने विपक्षी एकता के सहारे चुनाव में उतरना है तो सीएम नीतीश जिस विधि रखेंगे, उसी पर रहना होगा। प्रदेश कांग्रेस के नेता इसपर कुछ बोलने से परहेज कर रहे। इतना ही कह रहे कि इंडी एलायंस में सब ठीक है और सीट शेयरिंग पर सभी दल बैठकर फैसला कर लेंगे।