धरती के स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर की सदियों से अपनी एक पीड़ा है। कभी तुर्क और मुगलों का भी कहर झेला है, हजारों मासूम मारे गए। लोगों ने यहां जबरन धर्म परिवर्तन का खेल खेला है। हजारों मंदिर तोड़े गए। अब दुनिया को बताया जा रहा है कि कश्मीर और कश्मीरी एक बार फिर मुख्य धारा में लौट आए हैं। फिल्म ‘हुकुस बुकुस’ में आज के कश्मीर के माहौल के साथ पिता पुत्र के भावनात्मक रिश्ते को बहुत ही गहराई से पेश किया गया है। साथ ही इस फिल्म को धर्म और क्रिकेट के साथ कश्मीर की सांस्कृतिक धरोहर और परंपरा को जोड़ने की एक पहल की गई है।
इस फिल्म में अरुण गोविल ने कश्मीरी पंडित राधेश्याम की भूमिका निभाई है। एक पिता की भूमिका उन्होंने बहुत ही बेहतरीन तरीके से निभाया है। जब वह अपने बेटे को अंडे खाते देख लेते है तो उन्हें लगता है कि कहीं ना कहीं उनकी परवरिश में कोई कमी रह गई होगी। बेटे को डांटने के बजाय खुद को सजा देते हैं। अरुण गोविल का फिल्म का यह बहुत ही यादगार सीन है। अर्जुन की भूमिका में दर्शील सफारी का प्रयास अच्छा रहा है। गोरी की भूमिका में नायशा खन्ना इस फिल्म में एक तरह से एकलव्य की भूमिका में दिखी हैं, क्रिकेट मैच को जिताने में उनकी भूमिका अच्छी रही है। स्थानीय विधायक के रूप सज्जाद डेलाफ्रूज, कोच खालिद की भूमिका में मीर सरवर और कोच विक्रम राठी की भूमिका में गौतम विग ने अपनी अदाकारी से अच्छा प्रभाव छोड़ा है। ऐसी फिल्मों को अगर सही तरीके से प्रमोट किया जाए तो अधिक से दर्शकों तक पहुंच सकती हैं, लेकिन ऐसी फिल्मों के साथ बिडंबना यही होती है कि फिल्म के मेकर फिल्मों को ढंग से प्रमोट नहीं कर पाते हैं।