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राजस्थान के लिए कांग्रेस ने रचा चक्रव्यूह, लेकिन इन 93 सीटों ने फंसाया है सबसे बड़ा पेंच

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राजस्थान की सियासत को देखने वाले कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता बताते हैं कि जल्द ही उनकी पार्टी कांग्रेस के प्रत्याशियों की घोषणा कर देगी। अंदाजा यही लगाया जा रहा है कि इसी सप्ताह अब सभी प्रत्याशियों के नाम घोषित कर दिए जाएंगे…

चुनाव आयोग की ओर से पांच राज्यों में तारीखों की घोषणा के बाद सियासी माहौल पूरी तरीके से गर्म हो गया है। सबसे ज्यादा अब सियासत तारीखों की घोषणा के बाद प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारने को लेकर हो रही है। राजस्थान में अभी तक किसी भी पार्टी ने अपने प्रत्याशियों के पत्ते नहीं खोले हैं। कांग्रेस की ओर से प्रत्याशियों के नाम की सूची भेजी जाने के बाद अभी तक कोई प्रत्याशी घोषित नहीं हुआ है। दरअसल राजस्थान की सभी 200 सीटों पर तो मंथन हो ही रहा है, लेकिन 93 सीटें ऐसी हैं जिसे लेकर राज्य से लेकर आलाकमान तक असमंजस में फंसा हुआ है। दरअसल इसमें 52 सीटें हैं जिन पर कांग्रेस बीते तीन चुनावों में लगातार हार रही है, जबकि 41 ऐसी सीटें हैं, जिन पर बीते दो चुनावों में पार्टी का खाता नहीं खुला। कांग्रेस पार्टी से जुड़े नेताओं का कहना है कि चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस पार्टी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। यही वजह है कि प्रत्याशियों को मैदान में उतारने के लिए हर तरीके का आकलन किया जा रहा है। अनुमान है कि अगले कुछ दिनों के भीतर प्रत्याशी घोषित हो जाएंगे।

राजस्थान में दोबारा कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए पार्टी आलाकमान लगातार राज्य के नेताओं के संपर्क में हैं। सोमवार को चुनावों की तारीख की घोषणा के साथ ही पार्टी के पदाधिकारी राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में राज्य पदाधिकारी के साथ संपर्क में आए और आगे के सियासी समीकरणों पर चर्चा की। राजस्थान की सियासत को देखने वाले कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता बताते हैं कि जल्द ही उनकी पार्टी कांग्रेस के प्रत्याशियों की घोषणा कर देगी। अंदाजा यही लगाया जा रहा है कि इसी सप्ताह अब सभी प्रत्याशियों के नाम घोषित कर दिए जाएंगे। लेकिन कांग्रेस पार्टी से ही जुड़े सूत्रों का कहना है कि सभी सीटों पर मंथन तो कर लिया गया है, लेकिन पार्टी में राजस्थान की 52 सीटों को लेकर सबसे ज्यादा सस्पेंस बना हुआ है, जो कि लगातार बीते तीन चुनाव में उनके हाथ से निकल रही हैं। राजस्थान पार्टी से जुड़े कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि उनकी पार्टी किसी भी तरीके का 52 सीटों पर कोई भी रिस्क नहीं उठाना चाहती है, जिससे कि सत्ता की वापसी में कोई दिक्कत आए।

राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सुंधांशु शर्मा बताते हैं कि दरअसल कांग्रेस जिन 52 सीटों पर अपना पूरा फोकस कर रही है, उन सीटों पर 2008, 2013, और 2018 के चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। इन सीटों में ब्यावर, नागौर, खीवसर, जैतारण, मेड़ता, पाली, सोजत, मारवाड़, सूरसागर, बाली, सिवाना, भोपालगढ़, भीनमाल, रेवदर, उदयपुर, राजसमंद, गंगानगर भीलवाड़ा, बीकानेर, रतनपुर, बूंदी, कोटा साउथ, अनूपगढ़, मालवीय नगर, महुआ, धौलपुर, नदबई, खानपुर, अजमेर नॉर्थ, अजमेर साउथ, भादरा और बस्सी समेत 52 सीटें ऐसी हैं, जहां पर कांग्रेस लगातार चुनाव हारती आई है। सुधांशु कहते हैं कि कांग्रेस के लिए इन सीटों पर इस बार अगर मजबूत प्रत्याशी नहीं उतर जाता है, तो कांग्रेस के लिए आने वाले चुनाव में बड़ी चुनौतियां आ सकती हैं। यह संकेत कांग्रेस के आलाकमान से लेकर राज्य स्तरीय नेताओं को भी भली भांति पता है। पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि जिन सीटों पर उनकी पार्टी नहीं जीती है, वहां पर प्रत्याशियों का चयन चुनौती जरूर है, लेकिन इस बार ऐसी सियासी रणनीतियां तैयार हो रही हैं कि उनकी पार्टी पिछली बार से ज्यादा सीटों पर न सिर्फ चुनाव जीतेगी, बल्कि पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाएगी।

सियासी जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के लिए सिर्फ यह 52 सीटें ही सबसे बड़ी चुनौती नहीं हैं। बल्कि राजस्थान की ऐसी 41 सीटें और भी हैं, जहां पर पार्टी को प्रत्याशियों के चयन के लिए सबसे बड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। दरअसल ये 41 वह सीटे हैं जहां पर कांग्रेस 2008 के चुनाव में तो जीत गई थी, लेकिन 2013 और 2018 के चुनाव में इन 41 सीटों पर पार्टी हार गई। कांग्रेस के लिए बीते तीन चुनावों से लगातार हार रही 52 सीटों के साथ साथ बीते दो चुनावों से हार रही इन 41 सीटों का समीकरण भी साधने की सबसे बड़ी सियासी जरूरत बन रही है। यह वह 41 सीटें हैं जहां पर सियासी समीकरण जातीयता के आधार पर चुनाव के नतीजे तय करते हैं। इसमें जालौर, आहोर, फलोदी, मकराना, सुमेरपुर, नसीराबाद, चुरू, मंडावर, आमेर, पीलीबंगा, सूरतगढ़, छपरा, दूदू, कपासन, रायसिंहनगर, सांगरिया, श्रीडूंगरगढ़, शाहपुरा और चित्तौड़गढ़ जैसे 41 विधानसभा क्षेत्र आते हैं जहां पर कांग्रेस पार्टी 2008 में तो जीती लेकिन 2013 और 2018 के चुनाव में हार गई।

राजस्थान के सियासी जानकारों का कहना है कि 200 में से 93 सीटों पर कांग्रेस को इसलिए सबसे ज्यादा मशक्कत करनी पड़ रही है क्योंकि यह वह सीटें हैं, जो कांग्रेस के लिए जीतना सबसे बड़ी चुनौती है। कांग्रेस पार्टी से जुड़े नेता एचडी मीणा कहते हैं कि इस बार इन सीटों को जीतना ही कांग्रेस की न सिर्फ प्राथमिकता में है। बल्कि अपनी अन्य बरकरार सीटों में भी सबसे आगे बने रहना है। दरअसल कांग्रेस पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि पार्टी इस बार प्रत्याशियों के चयन में सबसे ज्यादा सावधानी बरत रही है। सूत्रों के मुताबिक पार्टी ने इस बार तय किया है कि जो लोग बीते दो बार से लगातार चुनाव हार रहे हैं, उनको टिकट नहीं दिया जाएगा। राजस्थान में कांग्रेस के बड़े सियासी नेताओं के बीच में इसी बात को लेकर सबसे बड़ी टकराहट सामने आ रही है। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस के कुछ नेता उन प्रत्याशियों पर अभी भी दांव लगा रहे हैं, जो लगातार चुनावी मैदान में हारते आ रहे हैं। इसके अलावा पार्टी अपने कई वर्तमान प्रत्याशियों को बदलने की तैयारी में है। लेकिन उस पर भी पार्टी के अंदर बड़े सियासी मतभेद उभर गए हैं। पार्टी से जुड़े नेताओं के मुताबिक ऐसे तमाम समीकरणों को देखते हुए एक बार और सियासी सर्वे पूरा कर लिया गया है। इस आधार पर टिकटों का वितरण किया जा रहा है।

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