आज मध्यप्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का एलान आज हो सकता है। इन राज्यों में चुनाव कार्यक्रम आने से पहले ही सियासी सरगर्मी तेज है। इस बीच, भाजपा समेत कई दलों के दिग्गज नेता यहां लगातार दौरे कर रहे हैं।
निर्वाचन आयोग आज दोपहर 12 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगा। इसमें पांच राज्यों में होने वाले चुनावों का एलान किया जा सकता है। गौरतलब है कि इस साल के अंत तक पांच राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव होने हैं। सूत्रों के मुताबिक, वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनावों की तर्ज पर इस बार भी राजस्थान, मिजोरम, तेलंगाना और मध्य प्रदेश में एक चरण तथा नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में दो चरणों में मतदान हो सकता है। मिजोरम विधानसभा का कार्यकाल 17 दिसंबर जबकि राजस्थान विधानसभा का कार्यकाल 14 जनवरी, मध्य प्रदेश 6 जनवरी, तेलंगाना 16 जनवरी और छत्तीसगढ़ विधानसभा का कार्यकाल 3 जनवरी को समाप्त हो रहा है।
पांच चुनावी राज्यों में से मध्यप्रदेश अकेला राज्य है, जहां वर्तमान में भाजपा की सरकार है। लिहाजा पार्टी अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए जोर लगाने में जुटी हुई है। कांग्रेस, आप, सपा, बसपा भी चुनाव प्रचार में अपनी ताकत झोक रहे हैं। ऐसे में हर कोई जानना चाहता है कि राज्य की मौजूदा राजनीतिक स्थिति क्या है? मुख्यमंत्री पद के चेहरे कौन-कौन से हैं? चुनाव प्रचार में बड़े चेहरे कौन-कौन से हैं? चुनाव के बड़े मुद्दे क्या हैं? किन-किन के बीच मुकाबला है? इस बार 2018 के मुकाबले समीकरण कितने अलग हैं? आइए विस्तार से समझते हैं…
राज्य की मौजूदा राजनीतिक स्थिति क्या है?
इस चुनाव में भाजपा के सामने अपना किला बचाने की चुनौती होगी। वहीं, कांग्रेस 2020 में सत्ता से बेदखल होने की कसक दूर करना चाहेगी। इससे पहले राज्य में इन दिनों चुनावी सरगर्मी काफी तेज हो चली है। सभी दल चुनाव से ऐन पहले एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। इस बीच विधानसभा चुनाव के लिए सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने अब तक 79 उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। वहीं अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी ने भी अपने 39 प्रत्याशी घोषित किए हैं। कांग्रेस ने अब तक कोई सूची नहीं जारी की है।
वर्तमान में मध्यप्रदेश के सियासी समीकरण की बात करें तो 230 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 127, कांग्रेस के 96, निर्दलीय चार, दो बसपा और एक समाजवादी पार्टी के विधायक हैं। बता दें कि 2018 के चुनाव के बाद कांग्रेस की 114, भाजपा की 109 सीटें थीं। दो सीटें बसपा, एक सीट सपा और चार निर्दलीय उम्मीदवारों के खाते में गई थीं। 2020 में सिंधिया समर्थक विधायकों ने पाला बदल लिया था। इसके बाद नवंबर 2020 में 28 सीटों पर उपचुनाव हुए। इनमें से 19 भाजपा के खाते में गईं। वहीं, नौ सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की। इसके बाद नवंबर 2021 में तीन और सीटों पर उपचुनाव हुए। इनमें से दो सीटें भाजपा और एक कांग्रेस ने जीती।
मुख्यमंत्री पद के चेहरे कौन?
राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री भले ही शिवराज सिंह हैं, लेकिन भाजपा इस बार उनके चेहरे के बिना चुनाव में जाएगी। भाजपा इस चुनाव में सामूहिक नेतृत्व के जरिए जनता के सामने जा रही है। इसके संकेत भाजपा की दूसरी सूची से भी सामने आए, जब उसने तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत सात लोकसभा सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट दे दिया। वहीं, राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस कमलनाथ को ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा प्रोजेक्ट कर रही है।
चुनाव प्रचार के चेहरे कौन?
चुनाव प्रचार के लिए भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत अपने बड़े दिग्गज नेताओं को उतारा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार दौरे कर रहे हैं। ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के दो दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर भी चुनावी कार्यक्रमों में शिरकत कर रहे हैं।
कांग्रेस की तरफ देखें तो इसके लिए प्रियंका गांधी प्रदेश में काफी सक्रिय नजर आ रही हैं। इसके साथ ही पार्टी के प्रमुख नेता राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे, दिग्विजय सिंह भी चुनावी कार्यक्रमों में नजर आ रहे हैं।
चुनाव के बड़े मुद्दे क्या हैं?
इस बार राज्य में रोजगार जैसा मुद्दा भाजपा की परेशानी का सबब बन सकता है। यहां पिछले चुनाव के बाद लगभग तीन साल तक भर्तियां आरक्षण के मुद्दे पर अदालतों में रुकती रहीं। करीब छह साल बाद पटवारी समेत कई पदों पर भर्ती आई थी। हालांकि, भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी के आरोप लगने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इसके आधार पर होने वाली नियुक्ति पर रोक लगा दी। परीक्षा में गड़बड़ी और भर्तियों में देरी को लेकर राज्य के में आए दिन बेरोजगार धरना-प्रदर्शन करते रहे हैं। कांग्रेस लगातार इन मुद्दों को अपने कार्यक्रमों में उठा रही है। पार्टी दावा कर रही है कि जब उसकी सरकार आएगी तो परीक्षाओं को पारदर्शिता के साथ कराया जाएगा और युवाओं के साथ न्याय होगा।
आदिवासी और महिला मतदाताओं पर भी पार्टियों की नजर है। भाजपा आदिवासी वोटरों को अपनी ओर लाने की कोशिश कर रही है। इसी कड़ी में जनजातीय गौरव दिवस पर प्रदेश सरकार ने पेसा नियम अधिसूचित किए। यह ग्राम सभाओं को वन क्षेत्रों में सभी प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में नियमों और विनियमों पर निर्णय लेने का अधिकार देगा। वहीं महिला वोटर को साधने के लिए पांच मार्च को शिवराज सिंह ने लाड़ली बहना योजना शुरुआत की। इस योजना में ढाई लाख से कम वार्षिक आय और पांच एकड़ से कम जमीन वाली महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपए दिए जा रहे हैं। इसके साथ ही लाड़ली बहना आवास योजना और किफायती रसोई गैस सिलेंडर देने वाली योजनाएं शुरू की गई हैं।
वहीं कांग्रेस ने इन योजनाओं को चुनावी करार दिया है और आगामी चुनाव के लिए 11 बिंदुओं वाला वचन पत्र जारी किया है। इसमें महिलाओं, युवाओं, आदिवासिओं और किसानों से जुड़े मुद्दे रखे गए हैं। इसके अलावा आप ने भी 10 चुनावी गारंटियां घोषित की हैं।
इस बार कितने अलग समीकरण?
2018 के बाद से इस चुनाव के आने तक प्रदेश की सियासत में बहुत कुछ बदल चुका है। सबसे बड़ा बदलाव ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं, जो अबकी बार भाजपा के साथ हैं। पिछली बार जब विधानसभा चुनाव हुए थे तब सिंधिया कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल थे। सिंधिया के साथ ग्वालियर चंबल के कई बड़े नेता और विधायक इस चुनाव में भाजपा का हिस्सा हैं।
वहीं कांग्रेस की बात करें तो इसका कुनबा भी मजबूत हुआ है। पिछले कुछ महीनों में भाजपा के 30 से ज्यादा बड़े नेता कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। इनमें कई सिंधिया समर्थक नेता भी हैं। सबसे बड़े चेहरों की बात करें तो इनमें पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी, शिवपुरी की कोलारस सीट से विधायक वीरेंद्र रघुवंशी, पूर्व विधायक भंवर सिंह शेखावत, खरगोन से पूर्व सांसद मलखान सिंह सोलंकी भी शमिल हैं।
पिछली बार कब हुए थे चुनाव?
मध्यप्रदेश में पिछला विधानसभा चुनाव 28 नवंबर 2018 को हुआ था, जबकि नतीजे 11 दिसंबर को आए थे। यह कई मायनों में बेहद रोमांचक रहा था। 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को बहुमत से दो कम 114 सीटें मिलीं थीं। वहीं, भाजपा 109 सीटों पर आ गई। हालांकि, यह भी दिलचस्प था कि भाजपा को 41% वोट मिले जबकि कांग्रेस को 40.9% वोट मिला था। बसपा को दो जबकि अन्य को पांच सीटें मिलीं। नतीजों के बाद कांग्रेस ने बसपा, सपा और अन्य के साथ मिलकर सरकार बनाई। इस तरह से राज्य में 15 साल बाद कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनी और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने।
चुनाव के बाद कांग्रेस से सिंधिया की बगावत
दिसंबर 2018 में कांग्रेस सरकार बनने के करीब 15 महीने बाद मार्च 2020 को मध्य प्रदेश के सियासी ड्रामा हो गया। 22 सिंधिया समर्थक विधायकों ने पार्टी से बगावत कर ली। इस बीच 10 मार्च 2020 को कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मिलने दिल्ली आए। इस मुलाकात के बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया। अगले दिन यानी 11 मार्च को सिंधिया ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की उपस्थिति में भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया।
विधायकों के लगातार इस्तीफे के बाद कांग्रेस ने यहीं से अपनी हार मान ली और 20 मार्च को दोपहर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपना इस्तीफा सौंप दिया। अगले दिन 21 मार्च को दिल्ली में जेपी नड्डा की उपस्थिति में विधायकी से इस्तीफा दे चुके सभी 22 बागी भाजपा में शामिल हो गए। इसके साथ ही दोबारा राज्य में भाजपा की सरकार आई गई जिसके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह बनाए गए।
सरकार गिरने के बाद भी कांग्रेस में इस्तीफे का दौर नहीं थमा। 23 जुलाई 2020 को पार्टी के अन्य तीन विधायकों ने कांग्रेस को अलविदा कह भाजपा का दामन थाम लिया। इसके अलावा, तीन सीटें (जौरा, आगर और ब्यावरा) अपने संबंधित मौजूदा विधायकों के निधन के कारण खाली हो गईं। तीन नवंबर 2020 को सभी 28 खाली सीटों को भरने के लिए उपचुनाव कराया गया। इस उपचुनाव में 28 में से भाजपा को 19 और कांग्रेस को नौ सीटें मिलीं।