वन हेल्थ पर भारत का यह राष्ट्रीय संस्थान आगामी दिनों में प्रवासी पक्षी, चिड़ियाघर और पक्षी विहार से सैंपल लेकर समय-समय पर जांच करेगा ताकि यह पता चल सके कि किस तरह का विषाणु इन जीवों में प्रसारित हो रहा है।
इंसानों से जूनोटिक बीमारियों को दूर रखने के लिए भारत ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। इसी साल के अंत में नागपुर में ग्लोबल साउथ का पहला वन हेल्थ पर राष्ट्रीय संस्थान शुरू होगा, जो न सिर्फ इंसान बल्कि पक्षी, पेड़-पौधे और जलवायु परिवर्तन पर काम करेगा। अभी तक यह एक विभाग के तौर पर आईसीएमआर के अधीन संचालित हो रहा था, लेकिन जी-20 राष्ट्राध्यक्षों के आगे भारत ने वन हेल्थ विषय पर प्रस्ताव रखा तो सभी ने इस पर सहमति दी है।वन हेल्थ पर भारत का यह राष्ट्रीय संस्थान आगामी दिनों में प्रवासी पक्षी, चिड़ियाघर और पक्षी विहार से सैंपल लेकर समय-समय पर जांच करेगा ताकि यह पता चल सके कि किस तरह का विषाणु इन जीवों में प्रसारित हो रहा है। इससे न सिर्फ भारत बल्कि दूसरे देशों को भी क्या जोखिम हो सकता है? यह सभी अध्ययन और उसके परिणाम जी-20 देशों के साथ भी साझा किए जाएंगे। दरअसल, जूनोज शब्द का इस्तेमाल जूनोटिक रोग के लिए किया जाता है, जो आमतौर पर एक संक्रमण है जो जानवरों से मनुष्यों में फैलता है।
राष्ट्रीय संस्थान को मिलेगी पूरी ताकत
राष्ट्रीय संस्थान के लिए आईसीएमआर, राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी), जैव प्रौद्योगिकी विभाग, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अलावा पशु और वन्य जीवों व जलवायु परिवर्तन पर शोध करने वाले संस्थानों के वैज्ञानिक शामिल होंगे। फार्मा कंपनियों के साथ भी इनका संपर्क रहेगा ताकि जांच, दवा या फिर टीका इत्यादि के उत्पादन में व्यावसायिक समझौते किए जा सकें। सेंटर की मदद से विदेशों से भारत आने वाली बीमारियों खासतौर पर श्वसन तंत्र से जुड़े संक्रमण और विषाणुओं को पहचानने में भी मदद मिलेगी। इसमें जैव सुरक्षा स्तर बीएसएल-चार प्रयोगशालाएं होगीं।