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ट्रूडो के रहते सामान्य नहीं हो पाएंगे संबंध, विशेषज्ञ बोले- वोट बैंक के कारण रिश्ते खराब करने को अमादा

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विदेश संबंधों के अध्येता रोबिंदर सचदेव ने कहा कि पीएम ट्रूडो पर खालिस्तानी समर्थकों का भारी दबाव है और वोटबैंक को साधने की मजबूरी में कनाडा के हितों को दरकिनार करते हुए भारत के साथ रिश्तों को खराब करने पर आमादा हैं।

हालिया घटनाक्रम के बाद भारत-कनाडा के रिश्ते तब-तक सामान्य होते नजर नहीं आते हैं, जब तक ट्रूडो कनाडा में सत्ता के शीर्ष पर हैं। कनाडा में प्रधानमंत्री के तौर पर जस्टिन ट्रूडो का कार्यकाल अक्तूबर 2025 तक शेष है। विदेश संबंधों के अध्येता रोबिंदर सचदेव कहते हैं कि जिस तरह से जस्टिन ट्रूडो खालिस्तानी आतंक के मुद्दे को संभाल रहे हैं, उसे देखते हुए दोनों देशों कि रिश्ते जल्द सामान्य होने के आसार नहीं हैं।

ट्रूडो ने जिस अंदाज में भारत पर आरोप लगाए और जल्दबाजी में भारतीय राजनयिक को निष्कासित किया, उससे यह साफ हो जाता है कि उनके ऊपर कनाडा के खालिस्तानी समर्थकों का भारी दबाव है और वोटबैंक को साधने की मजबूरी में कनाडा के हितों को दरकिनार करते हुए भारत के साथ रिश्तों को खराब करने पर आमादा हैं। ट्रूडो यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि महज किसी आरोप के चलते भारत जैसे देश के राजनयिक को निष्कासित किए जाने पर उसे भी समान कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।

अगर कनाडाई पीएम के पास आरोपों को साबित करने वाले सबूत थे, तो उन्हें जी-20 की बैठक से इतर इन सबूतों को पीएम मोदी के सामने पेश कर राजनयिक को कनाडा से भारत वापस बुलाने की मांग की जा सकती थी। भारत और कनाडा लंबे समय से करीबी सहयोगी रहे हैं। दोनों देशों के बीच मित्रवत संबंध रहे हैं, ऐसे में अचानक इस तरह का कदम उठाया जाना कनाडाई पीएम की तरफ से दूरदर्शिता के अभाव को दर्शाता है।

भारत सबूत के साथ कर रहा बात
भारत की तरफ से जब कनाडाई पीएम के सामने उनके देश में भारत विरोधी खालिस्तानी आतंकियों का मुद्दा उठाया गया, तो सबूतों के साथ बात रखी गई। भारत ने इंटरपोल से लेकर कनाडाई सुरक्षा बलों तक को कनाडा में भारत विरोधी गतिविधियों के सबूत सौंपे। जी-20 में भी पीएम मोदी ने ट्रूडो से सबूतों के आधार पर कनाडा में भारत विरोधी गतिविधियों पर लगाम लगाने की मांग की थी।

द्विपक्षीय मुद्दे पर अन्य देशों को घसीटा
कनाडाई पीएम की दूरदर्शिता और मुद्दों को अपने स्तर पर निपटाने की क्षमता को लेकर पहले भी सवाल उठे हैं। लेकिन, निज्जर की हत्या के मामले को ट्रूडो ने अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के सामने उठाकर साबित किया है कि वे कनाडा के द्विपक्षीय मसलों को अपने स्तर पर हल करने में पूरी तरह से नाकाम हैं।

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