जी-20 के विस्तार के लिए भारत ने इसी तर्ज पर जापान, अमेरिका, यूरोपीय यूनियन, ब्रिटेन जैसे सदस्य देशों को साधने के बाद एयू को इस समूह में शामिल करने का प्रस्ताव रखा। सरकारी सूत्रों का कहना है कि भारत के प्रस्ताव पर अमेरिका सैद्धांतिक तौर पर सहमत था।
जी-20 शिखर सम्मेलन में अफ्रीकन यूनियन (एयू) के समूह में शामिल होने की पूरी संभावना है। रूस-चीन कूटनीतिक मजबूरी में एयू को शामिल करने पर राजी हुए हैं। जी-20 के विस्तार के लिए भारत ने वही कूटनीतिक तरीका अपनाया जो तरीका चीन ने ब्रिक्स के विस्तार को ले कर अपनाया था। चीन ने रूस, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका को साधने के बाद ब्रिक्स के विस्तार का प्रस्ताव रखा और अपनी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में शामिल देशों अर्जेंटीना, मिस्र, इथियोपिया, सऊदी अरब और ईरान को इस समूह में शामिल कराने का प्रस्ताव रखा। चूंकि इन देशों से भारत की अदावत नहीं है, ऐसे में भारत को प्रस्ताव का समर्थन करना पड़ा, हालांकि भारत ने संयुक्त अरब अमीरात का नाम शामिल कराने में सफलता हासिल की।जी-20 के विस्तार के लिए भारत ने इसी तर्ज पर जापान, अमेरिका, यूरोपीय यूनियन, ब्रिटेन जैसे सदस्य देशों को साधने के बाद एयू को इस समूह में शामिल करने का प्रस्ताव रखा। सरकारी सूत्रों का कहना है कि भारत के प्रस्ताव पर अमेरिका सैद्धांतिक तौर पर सहमत था। चूंकि एयू ग्लोबल साउथ में है और चीन दक्षिणी गोलार्ध में पकड़ मजबूत करने की कोशिश में है, इसलिए वह प्रस्ताव को न नहीं कर सका।
श्रेय लेने की कोशिश में बीजिंग-मॉस्को
एयू को जी-20 में शामिल करने का प्रस्ताव हालांकि भारत का था, मगर कूटनीतिक कारणों से चीन और रूस इसका श्रेय लेना चाहते हैं। दोनों देशों ने कहा है कि वे इसके लिए पहले से ही सहमत थे। चीन ने तो इसके लिए चीन-अफ्रीका लीडर्स संवाद का हवाला दिया और कहा कि उसने इसी संवाद में एयू को जी-20 में शामिल करने की वकालत की थी।