अध्ययन में विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि बच्चों के कैंसर चिकित्सा के मामले में केंद्र स्तर पर नीति बननी चाहिए, जिस पर सभी राज्यों के साथ मिलकर काम करना चाहिए।
देश के 60 फीसदी अस्पतालों में बाल कैंसर विभाग नहीं है। वहीं, 10 में से सिर्फ दो अस्पतालों में पेट स्कैन की सुविधा है। यह बात देश के 229 अस्पतालों में किए गए एक सर्वे में सामने आई है। नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) का यह संयुक्त अध्ययन 30 राज्यों के सरकारी, निजी और एनजीओ संचालित अस्पतालों में किया गया। इसके अनुसार, 10 में से चार अस्पतालों में ही बाल कैंसर विभाग पाए गए। द लांसेट साउथ ईस्ट मेडिकल जर्नल में प्रकाशित सर्वे आधारित इस अध्ययन को दिल्ली एम्स और आईसीएमआर के अलावा 32 अन्य अस्पतालों ने पूरा किया है, जिसमें अध्ययनकर्ताओं ने कहा है कि देश के नौनिहालों में कैंसर चिंता के रूप में उभर रहा है। इन बच्चों की समय रहते जांच और उपचार को लेकर अस्पतालों की स्थिति चिंताजनक है, जिसमें तत्काल सुधार होना चाहिए।
क्या कहते हैं आंकड़े
अध्ययन में विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि बच्चों के कैंसर चिकित्सा के मामले में केंद्र स्तर पर नीति बननी चाहिए, जिस पर सभी राज्यों के साथ मिलकर काम करना चाहिए। अध्ययन के अनुसार, 26 राज्य और चार केंद्र शासित प्रदेशों के 137 तृतीयक स्तर और 92 माध्यमिक स्तर के अस्पतालों में सर्वे किया गया। इस दौरान 41.6 फीसदी तृतीयक स्तर के सरकारी अस्पतालों में ही बाल कैंसर विभाग मिला। वहीं, दूसरी ओर 48.6 फीसदी निजी और 64 फीसदी एनजीओ संचालित अस्पतालों में एक समर्पित बाल चिकित्सा कैंसर विभाग उपलब्ध था। इसी तरह, माध्यमिक स्तर के 92 में से 36 (39 फीसदी) अस्पतालों में ही कैंसर चिकित्सा की सेवा उपलब्ध पाई गईबड़े अस्पताल में कर देते हैं रेफर
अध्ययन में बताया गया कि जब बच्चों के कैंसर चिकित्सा को लेकर अस्पतालों से बातचीत की गई तो ज्यादातर माध्यमिक स्तर के अस्पतालों ने कहा कि जब उनके यहां ऐसा कोई मरीज आता है तो वह सीधा उसे बड़े अस्पताल के लिए रेफर कर देते हैं। उनके यहां इसका इलाज उपलब्ध नहीं है।