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मणिपुर में कमल खिलाने वाले मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह शीर्ष नेतृत्व के लिए बन रहे गले की हड्डी

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कांग्रेस नेता करते हैं कि उन्हें यह कहने में संकोच नहीं होता कि 3 मई से मणिपुर में भड़की हिंसा के जारी रहने में एन बिरेन सिंह की भूमिका की जांच होनी चाहिए। महत्वाकांक्षी एन. बिरेन सिंह की बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के हितों की राजनीति ने अब इंफाल के पूरे माहौल को एक अजीब मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है…

मणिपुर जातीय हिंसा की आग में धधक रहा है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और मंत्रालय के अधिकारी हर संभव उपाय के बाद भी वहां सुकून लौटाने का भरोसा देने में नाकाम हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने भी मोर्चा संभाला, पूरा प्रयास कर रहे हैं। वह पूर्वोत्तर में उग्रवाद के मामले में काफी महारथ रखते हैं, लेकिन अभी उम्मीद की किरण थोड़ा दूर दिखाई दे रही है। अब इसकी लपटों में मिजोरम को भी अपनी चपेट में तेजी से लेना शुरू किया है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का कहना है कि जब तक मुख्यमंत्री नोंगथोम्बम बिरेन सिंह पद से हटाए नहीं जाते तब तक शांति की आशा नहीं है। दूसरी तरफ भाजपा के पास एन. बिरेन सिंह का कोई विकल्प नहीं है। गृहमंत्री अमित शाह को भी पता है कि बहुसंख्यक मैतेई समुदाय से आने वाले एन बिरेन सिंह को हटाने का अंजाम क्या होगा?

कांग्रेस नेता करते हैं कि उन्हें यह कहने में संकोच नहीं होता कि 3 मई से मणिपुर में भड़की हिंसा के जारी रहने में एन बिरेन सिंह की भूमिका की जांच होनी चाहिए। इसके समानांतर एन. बिरेन सिंह भाजपा और शीर्ष नेतृत्व के लिए गले की हड्डी बनते जा रहे हैं। महत्वाकांक्षी एन. बिरेन सिंह की बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के हितों की राजनीति ने अब इंफाल के पूरे माहौल को एक अजीब मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। रक्षा मंत्रालय में तैनात मणिपुर के एक अधिकारी कहते हैं कि उन्हें तो काफी बुरे सपने आ रहे हैं। राज्य के हालात बहुत बदतर हुए जा रहे हैं।

कौन हैं नोंगथोम्बम बिरेन सिंह

नोंगथोम्बम बिरेन सिंह मैतेई समुदाय से आते हैं। इंफाल में ही शिक्षा-दीक्षा हुई है। 62 साल के एन बिरेन सिंह राष्ट्रीय स्तर के फुटबालर रहे हैं। मणिपुर में उन्हें जानने वाले महत्वाकांक्षी नेता के तौर पर जानते हैं। घरेलू टीम में फुटबाल खेलते हुए वह सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में चयनित हुए। बाद में उन्होंने बीएसएफ से इस्तीफा दे दिया। मणिपुर से ही 1992 में नाहरोलगी थोडांग नामक एक स्थानीय दैनिक अखबार निकाला। पत्रकार बने। मणिपुर में अपनी पत्नी के साथ सामाजिक क्षेत्र में काम किया और 2001 तक अपने अखबार के संपादक रहे। 2002 में बिरेन सिंह ने डेमोक्रेटिक रिवोल्यूशनरी पीपुल्स पार्टी ज्वाइन की और 2002 के विधानसभा चुनाव में हिंगैंग विधानसभा से चुनाव लड़े और जीते। पहली बार एमएलए बने। चुनाव के बाद उनके दल ने सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी में विलय कर लिया। यह ओकाराम इबोबी सिंह की सरकार थी। ओकाराम इबोबी सिंह ने एन बिरेन सिंह को अपने मंत्रिमंडल में जगह दी और उन्हें सतर्कता आयुक्त मंत्री बनाया। 2007 के विधानसभा चुनाव में बिरेन सिंह फिर जीते। मंत्री बने। सिचाई, बाढ़ नियंत्रण, युवा और खेल मंत्रालय के विभागों में रहे। बिरेन सिंह के बारे में कहा जाता है कि मणिपुर पब्लिक स्कूल को आगे बढ़ाने में उनका योगदान रहा। सामाजिक कार्यों में रुचि लेते थे। इसके चलते जनता में लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ रही थी। लेकिन 2012 में उनकी मुख्यमंत्री ओकाराम इबोबी सिंह से खटक गई। मुख्यमंत्री ने बिरेन सिंह को अपने मंत्रिमंडल से निष्कासित कर दिया। मणिपुर के मुख्यमंत्री के रूप में ओकाराम इबोबी सिंह पहले ऐसे मुख्यमंत्री रहे, जिन्होंने 2002 से 15 मार्च 2017 तक एक सफल मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा किया था।

पूर्वोत्तर में मणिपुर अकेला राज्य जहां खिला ‘कमल’

17 अक्तूबर 2016 ने एन बिरेन सिंह ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा का पटका पहन लिया है। बताते हैं भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पूर्वोत्तर में पार्टी की पकड़ बनाने के लिए एन बिरेन सिंह को आगे बढ़ाया। वह (बिरेन) असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा से पहले कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में आने वाले नेता थे। एन बीरेन सिंह ने अपने राजनीतिक कौशल से मैतेई समुदाय में अच्छी पैठ बनाई। कांग्रेस के ओकाराम इबोबी सिंह भी मैतेई हैं। लेकिन कहते हैं कि एन बीरेन सिंह ने भाजपा के साथ जुड़कर मैतेई समुदाय और मणिपुर में राजनीतिक दांव खेला और 2017 के विधानसभा चुनाव में पहली बार भाजपा की सरकार बनी। एन बीरेन सिंह 15 मार्च 2017 को पहली बार और मणिपुर के 12 वें मुख्यमंत्री बने। इस चुनाव में विधानसभा की 60 सीटों में से बिरेन सिंह सरकार के हिस्से में 33 सीटें आईं। इसके बाद 2022 का चुनाव भी भाजपा ने एन बिरेन सिंह के चेहरे पर लड़ा और बिरेन सिंह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं। इस समय मैतेई समुदाय में एन बिरेन सिंह की लोकप्रियता शीर्ष पर है। उनके मुकाबले भाजपा के पास कोई नेता नहीं है। मणिपुर की 60 सदस्यीय विधानसभा में 40 विधायक मैतई ही हैं। मैतेई जनसंख्या के लिहाज से शीर्ष पर हैं। दूसरे नंबर पर कुकी, नगा और अन्य हैं। पहाड़ी इलाके में करीब 33 जनजातियां हैं। इनमें मैतेई बहुसंख्यक हिंदू परंपरा को मानने वाले हैं। इनकी मणिपुर की कुल आबादी में हिस्सेदारी 53 फीसदी की है। कुकी में ईसाई धर्म को मामने वालों की संख्या अधिक है। ऐसे में भाजपा और शीर्ष नेतृत्व को ऐसे संवेदनशील समय में एन बिरेन सिंह और मणिपुर के हालात से पार पाने में कठिन दौर से गुजरना पड़ रहा है।

सवाल केवल मणिपुर का नहीं है, आग में पूर्वोत्तर के अन्य राज्य भी

मणिपुर का भूगोल लगभग गोल है। इसके केंद्र में राजधानी इंफाल घाटी है। इंफाल घाटी पूरे मणिपुर का कोई 10 फीसदी हिस्सा है। इंफाल घाटी में पूरे प्रदेश की लगभग 56-57 फीसदी आबादी रहती है। शेष राजधानी के चारों तरफ पहाडी क्षेत्र है। 89-90 फीसदी इस क्षेत्र में सूबे की शेष आबादी रहती है। पहाड़ी क्षेत्रों में कुकी, नगा आदि हैं। वहां 33 जनजातियां पाई जाती हैं। इन जनजातियों का रिश्ता सटे हुए राज्य मिजोरम आदि में है। कुकी और नगा के मिजोरम से घनिष्ठ रिश्ते हैं। यही कारण है कि मणिपुर की आग मिजोरम पहुंच रही है और वहां के लोग मैतेई को राज्य छोड़कर जाने के लिए कह रहे हैं। मैतेई दहशत में हैं और मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह ने इन्हें मणिपुर लाने के लिए हवाई सुविधा देने तक का भरोसा दिया है। दरअसल एक भयानक स्थिति यह भी है कि मिजोरम के मैतेई प्राण रक्षा में सुरक्षित इंफाल तक नहीं पहुंच सकते। रास्ते में कुकी और अन्य जन जातियों से सामना होगा। सुरक्षा बलों के सूत्र बताते हैं कि मैतेई और कुकी ने मणिपुर में बाकायदा अपने क्षेत्र में मोर्चेबंदी कर रखी है। वहां स्थिति से निपटने के लिए स्थाई बंकर तक बनाए जा चुके हैं। माना जा रहा है कि इस हिंसा को भड़काने में सीमापार से भी मदद मिल रही है। ऐसे में मणिपुर की स्थिति बहुत जटिल होती जा रही है।

मणिपुर की यह आग कब बुझेगी?

बड़ा संवेदनशील सवाल है मणिपुर की आग कब बुझेगी? इसका जवाब अभी फिलहाल किसी के पास नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के पास हालात बहुत जल्द पटरी पर आने का कूटनीतिक भरोसा देने के अलावा कोई चारा नहीं है। मणिपुर में ओकाराम इबोबी सिंह पहले ऐसे मुख्यमंत्री थे, जो वहां के जटिल हालात से निपट पाए और 2002 से 2007 तक पहला 5 साल का कार्यकाल पूरा किया। उनके ऊपर मुख्यमंत्री आवास में भी दो बार जानलेवा हमले हुए। हालांकि एन बिरेन सिंह के दौर में अभी तक यह स्थिति नहीं आई। मणिपुर से लौटकर आए विपक्षी नेताओं का कहना है कि कुकी और अन्य में मुख्यमंत्री बिरेन सिंह के खिलाफ काफी गुस्सा है। बिरेन सिंह के बारे में खबर आई थी कि उन्होंने अपने पद से जुलाई महीने में इस्तीफा दे दिया था। हालांकि बाद में यह भी खबर आई कि समर्थकों के दबाव में इस्तीफा न देने का फैसला किया है। मणिपुर के उत्तर में नगालैंड, दक्षिण में मिजोरम, पश्चिम में असम है। पूर्वी हिस्सा म्यांमार और कुछ चीन से सटा है। मणिपुर में 8 फीसदी के करीब मुसलमान हैं। बहुसंख्यक आबादी हिंदू परंपरा को मानने वाले मैतेई और इसके बाद कुकी, नगा और 33 जनजातियों की है। इसमें मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा नहीं मिला है। जिसके कारण मणिपुर के 90 फीसदी क्षेत्र में मैतेई न जमीन आदि ले सकते हैं और न स्थायी रूप से बस सकते हैं। जबकि जनजातियों के लिए पूरे मणिपुर में इस तरह की कोई रोक-टोक नहीं है। इस बार आपस में टकराव और हिंसा की आग कुछ ज्यादा भड़क गई है। इसका शिकार दोनों समुदाय महिलाओं, बच्चों आदि को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।

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