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कौन नीतीश कुमार को फिर ‘पलटी कुमार’ बनाने का भ्रम फैला रहा है?

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केसी त्यागी कहते हैं कि आजकल मीडिया की भी हालत अजीब हो गई है। कभी खबर फैलाता है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी टूट रही हैं, तो कभी समाजवादी पार्टी के शिवपाल की भाजपा में जाने की खबर चलाता रहता है। कभी किसी के एनडीए में जाने की अफवाह उड़ाता है, तो कभी किसी की भाजपा में जाने की लगातार खबरें चला देता है…

राजनीति में भ्रम और दुष्प्रचार का खेल निराला है। जद(यू) के नेता कहते हैं कि भाजपा और केंद्रीय मंत्री अमित शाह की मंडली दुष्प्रचार खड़ा करने में मास्टर है। इसके बिहार में कई राजनीतिक कुचक्र फेल हुए, तो अब यही मंडली बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को फिर ‘पलटी कुमार’ पैदा करने का भ्रम फैला रही है। जद(यू) महासचिव केसी त्यागी अपने बेबाक बयान के लिए जाने जाते हैं। खुलकर बोलते हैं। केसी त्यागी साफ कहते हैं कि नीतीश कुमार को फिर से ‘पलटी कुमार’ बनाने का भ्रम दिल्ली का भाजपा मुख्यालय और इसकी ‘डर्टी ट्रिक्स’ फैलाती है।

केसी त्यागी कहते हैं कि आजकल मीडिया की भी हालत अजीब हो गई है। कभी खबर फैलाता है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी टूट रही हैं, तो कभी समाजवादी पार्टी के शिवपाल की भाजपा में जाने की खबर चलाता रहता है। कभी किसी के एनडीए में जाने की अफवाह उड़ाता है, तो कभी किसी की भाजपा में जाने की लगातार खबरें चला देता है।

अब ‘इंडिया’ का साथ छोड़ा तो नरक में जाएंगे नीतीश- केसी त्यागी

केसी त्यागी के बेबाक बयान को देखिए। खुलकर कहते हैं कि नीतीश कुमार, राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस में तालमेल है। जल्द ही मंत्रिमंडल विस्तार होना है। बिहार में कांग्रेस और जद(यू) कोटे से मंत्रिमंडल में विस्तार होना है। जल्द ही इसे पूरा कर लिया जाएगा। त्यागी के मुताबिक एनडीए से बाहर आने के समय बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार वहां से हमेशा के लिए अपना दरवाजा बंद कर आए हैं। अब तो उनके लिए धरती पर कहीं जगह नहीं बची है। अब विपक्ष का साथ छोड़ा तो सीधे नरक में जाएंगे। यह केसी त्यागी का यह वक्तव्य विरोधियों और भ्रम फैलाने वालों का मुंह बंद करने तथा उनके गाल पर राजनीतिक तमाचे की तरह है। जद(यू) महासचिव साफ कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है, लेकिन विकल्प भी सीमित ही होते हैं। वह कहते हैं कि नीतीश कुमार ने जिस विपक्षी एकता के आधार को बनाया है, अब इसके लिए वह लड़ते-झगड़ते, कोशिश करते और हर हाल में इसे मजबूत करते रहेंगे।

क्यों भाजपा के साथ और एनडीए में नीतीश कुमार की वापसी संभव नहीं?

मुश्किल और असंभव कुछ भी नहीं, लेकिन केसी त्यागी के वक्तव्य में दम है। दरअसल नीतीश कुमार के प्रति प्रधानमंत्री मोदी कड़वा संदेश देते नहीं दिखाई देते, लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह उन्हें बख्शना भी नहीं चाहते। बिहार विधानसभा चुनाव 2021 और उसके बाद से ही नीतीश कुमार और अमित शाह में भोजपुरी की कहावत ‘तरे-तरे काटने’ (यानी, भीतर ही भीतर एक दूसरे को काटने) की प्रतिस्पर्धा चल रही थी। इस प्रतिस्पर्धा का पटाक्षेप नीतीश कुमार ने एनडीए का साथ छोड़कर कर दिया। अमित शाह ने भी पटना और दिल्ली से बयान देकर दरवाजे हमेशा के लिए बंद करने का संकेत दे दिया। हालांकि इससे पहले जब भी बिहार के भाजपा नेताओं का प्रतिनिधि मंडल (कभी शहनवाज हुसैन के साथ तो कभी अन्य के साथ) अमित शाह के पास आया था, शाह ने केवल उसे सुना और बिना किसी निर्णय के लौटाया था। इसी के साथ नीतीश कुमार की बिहार के तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा या फिर बिहार के भाजपा अध्यक्ष समेत कुछ को बदले जाने की मांग को भी अनसुना कर दिया था। लेकिन दोनों एक दूसरे के लिए राजनीति की उलझनें बढ़ा रहे थे। यह उलझन कभी आरसीपी सिंह के बहाने बढ़ी, तो कभी लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के नेता चिराग पासवान के बहाने। विधानसभा चुनाव 2021 में चिराग पासवान की भूमिका सबको याद है। नीतीश के लिए राजनीतिक दर्द भी। उनकी पहले नंबर की राजनीतिक पार्टी तीसरे नंबर पर आ गई थी। इसे चिराग पासवान के ताजा बयान से समझा जा सकता है। चिराग लगातार कहते हैं कि उन्होंने एक व्यक्ति (संकेत नीतीश कुमार) के कारण एनडीए के साथ चुनाव नहीं लड़ा था। अब उस व्यक्ति के कारण एनडीए में आए हैं।

दूसरी तरफ नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ सरकार बनाकर, राजनीति में विपक्षी एकता का कदम बढ़ाकर आगे निकल गए हैं। अब पलटी कुमार बनने का मतलब है कि शारीरिक और राजनीतिक रूप से बूढ़े हो चुके नीतीश कुमार का राजनीतिक तौर पर आत्महत्या कर लेना। हालांकि राजनीति में कुछ भी मुश्किल और असंभव नहीं।

नीतीश कुमार को ‘पलटी कुमार’ बनाने की कहां से मिल रही है संजीवनी?

भ्रम और अफवाह बिना किसी आधार के नहीं फैलते। जैसे धुआं उठा है तो कुहीं चिंगारी जरूर फूटी होगी। यही भ्रम की स्थिति नीतीश कुमार के बारे में है। भ्रम में केंद्र में राज्य सभा के उप सभापति हरिवंश से नीतीश कुमार की भेंट को भी प्रमुख कारण में गिना जा रहा है। दूसरा कारण विपक्ष की एकता बैठक और उसमें उनकी भूमिका। बेंगलुरु में विपक्ष की एकता बैठक में नीतीश कुमार चाटर्ड प्लेन से गए थे। उनके साथ उपमुख्यमंत्री तेजस्वी और राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव भी थे। सब साथ गए और साथ पटना लौट आए। कर्नाटक के एयरपोर्ट से लेकर पटना के एयरपोर्ट तक नीतीश कुमार ने मीडिया से भी कोई बात नहीं की। पहले लालू प्रसाद और तेजस्वी को उनके घर छोड़ा और खुद सीएम आवास चले गए। नीतीश की यह वापसी संयुक्त प्रेसवार्ता से पहले हो गई और बिहार भाजपा ने इसे उनकी विपक्षी एकता की बैठक से नाराजगी के तौर पर प्रचारित कर दिया। भाजपा के नेता इसका तर्क देते हुए कहते हैं कि कांग्रेस द्वारा विपक्षी एकता को हाईजैक कर लेने, कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के सक्रिय हो जाने और नीतीश कुमार को कम भाव मिलने से उन्होंने (नीतीश कुमार) ने नाक भौं सिकोड़ा है। इसके पीछे की वजहों में एयरपोर्ट से बेंगलुरु में बैठक स्थल तक नीतीश कुमार को सबसे गैर भरोसे का प्रधानमंत्री बताने वाले 20 से अधिक पोस्टरों को बताया जा रहा है। कहते हैं कि विपक्षी एकता की बैठक में नीतीश को बैठने के लिए सम्मानित लोगों की कतार में नहीं रखा गया। शरद पवार, ममता बनर्जी को तुलना में अधिक सम्मान और विपक्षी एकता को दर्शाने वाले टाइटल शीर्षक में भी उनकी (नीतीश) नहीं चल पाना। नीतीश कुमार ने इस शीर्षक को एनडीए के सामानांतर भ्रम फैलाने वाला बताया था।

क्या है सच्चाई?

राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश से नीतीश कुमार के रिश्ते काफी समय से हैं। अलग धरातल के हैं। हरिवंश जब प्रभात खबर समूह के संपादक थे, वरिष्ठ पत्रकार थे, उस जमाने से हैं। इससे पहले भी जेपी आंदोलन के वक्त से उनके करीबी संबंध रहे हैं। नीतीश कुमार ने ही पहल करके हरिवंश को राज्यसभा में भेजा था। जब नीतीश कुमार एनडीए से पहली बार अलग हुए थे, तब भी उन्होंने इसको लेकर हरिवंश पर कोई दबाव नहीं बनाया था। जद(यू) के अंदरखाने के नेता कहते हैं कि हरिवंश नीतीश के बीच में औपचारिक और शिष्टाचार के संवाद कभी बंद नहीं हुए। हरिवंश की पटना यात्रा और भेंट इसी का हिस्सा थी। हालांकि हरिवंश का राज्यसभा में उपसभापति के तौर पर बने रहने को नीतीश कुमार द्वारा एनडीए में एक खिड़की बनाए रखने के तौर पर माना जाता रहा है। कहते हैं 2016 में राजद, कांग्रेस के साथ महागठबंधन के बैनर तले नीतीश कुमार चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बने थे। बाद में एनडीए के साथ चले गए थे। तब लालू प्रसाद यादव ने उनपर पलटू कुमार का ताना मारा था। कहा जाता है कि तब हरिवंश की भी नीतीश को राय देने में भूमिका थी। हालांकि इस बारे में वास्तविक सच्चाई नीतीश कुमार और हरिवंश को ही पता है।

अभी विपक्षी एकता को छोड़ना नीतीश कुमार के लिए मुमकिन नहीं

केसी त्यागी का राजनीतिक वक्तव्य और तर्क बेहद मजबूत है। नीतीश कुमार विपक्ष में नेताओं से अपनी लड़ाई लड़ते-झगड़ते आगे बढ़ते रहेंगे, लेकिन बने रहेंगे। नीतीश कुमार ने भी पटना लौटने के बाद राजगीर में इसको लेकर सफाई दी थी। दूसरे इस विपक्षी एकता के बड़े सूत्रधार में लालू प्रसाद यादव भी हैं। लालू प्रसाद यादव बड़े पैमाने पर तालमेल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। नीतीश और लालू का रिश्ता भी समझ के स्तर पर अच्छा बताया जा रहा है। तेजस्वी यादव नीतीश कुमार के साथ अपने व्यवहार को सामंजस्यपूर्ण बनाकर चल रहे हैं। ऐसे में अभी नहीं लगता कि नीतीश कुमार कुछ और सोच सकते हैं। अभी उनके सामने 2024 में प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को करारी राजनीतिक शिकस्त देकर अपनी अहमियत बताना सबसे अहम है। नीतीश के एक प्रमुख रणनीतिकार कहते हैं कि पटना की बैठक में 15 दल थे। बेंगलुरू में 26। सवाल पूछते हैं कि बढ़े या घटे? इससे कौन घबराया? जो इसे फोटो सेशन बता रहा था उसने कितने जुटाए? 38 राजनीतिक दल। किसकी देन है? नीतीश कुमार की ही है न। वरिष्ठ पत्रकार संजय वर्मा कहते हैं कि मुझे यह मानने में संकोच नहीं है कि कांग्रेस राजनीति का वटवृक्ष है। नीतीश कुमार को सिर पर तो नहीं बिठाएगी? लेकिन विपक्षी एकता है, रहेगी और 2024 में भाजपा को कड़ी टक्कर देगी।

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