26 साल में पहली बार किसी भारतीय पीएम के मिस्र जाने के कई मायने हैं। एक ओर जहां काहिरा को भारत से निवेश बढ़ने और ब्रिक्स में जगह मिलने की उम्मीद है। वहीं दूसरी ओर भारत के पास वैश्विक-दक्षिण की मुखर आवाज बनने का मौका है।
भारत और मिस्र के द्विपक्षीय संबंधों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दो दिवसीय मिस्र का दौरा गेम चेंजर साबित हो सकता है। भारत इस उत्तरी-अफ्रीकी देश में निवेश बढ़ा सकता है और इसे ब्रिक्स में शामिल करवाने में मदद भी कर सकता है। दूसरी ओर, भारत को भी वैश्विक-दक्षिण में मजबूत आवाज बनने के साथ अफ्रीका, अरब एवं यूरोप के बाजारों में पैठ और गहरी करने के लिए एक और दरवाजा मिलने की उम्मीद है। दौरा कई मायनों में दोनों देशों के लिए अहम है।
एफटीए की उठी मांग
मोदी के दौरे के बीच मिस्र के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) की मांग उठी है। विशेषज्ञों की मानें तो इस देश में कृषि व इस्पात उत्पादों और हल्के वाहन जैसे क्षेत्रों में घरेलू उद्योग के लिए बड़ी संभावनाएं हैं। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन (फियो) के महानिदेशक अजय सहाय ने कहा कि भारत व मिस्र के बीच ऐतिहासिक व्यापार संबंध हैं, जो मजबूत व काफी संतुलित हैं। मिस्र अफ्रीका व यूरोप का प्रवेश द्वार है। कृषि, जैव प्रौद्योगिकी, औषधि, नवीकरणीय ऊर्जा में सहयोग के अलावा, भारत को मिस्र के साथ लॉजिस्टिक्स में साझेदारी की संभावनाएं तलाशनी चाहिए।
व्यापार 15 अरब डॉलर तक बढ़ाने पर बल
सहाय ने यह भी कहा है कि हमें मिस्र के साथ व्यापार को आगामी तीन वर्षों में 6 अरब डॉलर से बढ़ाकर 15 अरब डॉलर करने की जरूरत है।
वैश्विक परिदृश्य में दोनों देशों के अपने हित
मिस्र का है रसूख बढ़ाने का लक्ष्य
- मिस्र को इस दौरे से पश्चिमी ब्लॉक के अलावा अपने अंतरराष्ट्रीय संबंध पुख्ता करने का मौका मिल रहा है। भारत से होने वाला निवेश और ब्रिक्स की सदस्यता तो उसके ध्यान में है ही।
- ब्रिक्स से जुड़ने पर वह खुद को दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ उस मंच पर देख सकेगा, जिसमें रूस, भारत, चीन और ब्राजील शामिल हैं।
- मिस्र ने कुछ वर्षों में फिलिस्तीन, इथियोपिया और कुछ अन्य अफ्रीकी देशों के मामलों में अपना दबदबा गंवाया है। यही वजह है कि वह इसे फिर से मजबूत करना चाहता है। भारत से संबंध बढ़ाकर उसे यह मजबूती हासिल हो सकती है।
- क्षेत्रीय मामलों के अलावा अब मिस्र अफ्रीकी महाद्वीप से बाहर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपना महत्व बढ़ाने के रास्ते देख रहा है। इसमें भी भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती छवि से उसे मदद मिल सकती है।
कारोबार में मजबूती चाहता है भारत
- भारत काहिरा के रास्ते अरब और उत्तरी अफ्रीकी क्षेत्र में अपनी पैठ गहरी करना चाहता है। जेएनयू में मिडिल-ईस्ट स्टडीज पढ़ा रहे आफताब कमाल पाशा बताते हैं कि दोनों देश ऐतिहासिक रूप से मित्र रहे हैं। खाड़ी सहयोग परिषद से पीएम मोदी को सीमित सफलता की उम्मीद है, इसलिए भी मिस्र का रुख करना जरूरी है।
- मिस्र के ब्रिक्स में आने से भारत भी चीन के सामने संतुलन साध सकेगा, जो इसमें पाकिस्तान को शामिल करने पर तुला है।
- अरब और अफ्रीकी देशों में मिस्र सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। यहां मौजूद स्वेज नहर से दुनिया का 12 फीसदी कारोबार होता है। काहिरा से अफ्रीका और यूरोप के बड़े बाजारों का दरवाजा भारत के लिए खुल सकता है।
- एक और अहम तथ्य चीन का मिस्र में बढ़ता प्रभाव भी है, जिसे संतुलित रखना भारत के लिए जरूरी है।
अफ्रीकी देश में 50 भारतीय कंपनियां
लुधियाना स्थित इंजीनियरिंग निर्यातक व हैंड टूल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एससी रल्हन का सुझाव है कि मिस्र को भारत के साथ घरेलू मुद्रा में व्यापार शुरू करने पर विचार करना चाहिए। मिस्र में फिलहाल लगभग 50 भारतीय कंपनियां काम कर रही हैं।
भारत से बढ़ा निर्यात
भारत का मिस्र में निर्यात 2021-22 में 3.74 अरब डॉलर था, जो 2022-23 के दौरान बढ़कर 4.1 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया। लेकिन, वहां से आयात 2021-22 में 3.5 अरब डॉलर से घटकर करीब 2 अरब डॉलर रह गया।
इनका होता है आयात और निर्यात
भारत मिस्र से उर्वरक, कच्चा तेल, रसायन, कच्चा कपास और कच्ची खालों का आयात करता है वहीं, गेहूं, चावल, सूती धागा, पेट्रोलियम, मांस, फ्लैट-रोल्ड उत्पाद, फेरोलॉयल (लोहे से संबंधित) और हल्के वाहन का निर्यात करता है।
बतौर पीएम नरेंद्र मोदी का पहला मिस्र दौरा
बता दें कि बतौर पीएम यह नरेंद्र मोदी का पहला मिस्र दौरा है। 1997 के बाद पहली बार कोई भारतीय पीएम यहां आए। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची के अनुसार, पीएम मोदी पारस्परिक दौरे पर मिस्र गए हैं ताकि न केवल दोनों देशों के बढ़ते रिश्तों की गति बनी रहे, बल्कि उन्हें ऐसी उम्मीद और विश्वास है कि ये रिश्ते अब कारोबार और आर्थिक संबंधों के नए क्षेत्रों में भी आगे बढ़ेंगे।
पुराने और प्रगाढ़ हैं संबंध
इस दौरे पर पीएम मोदी मिस्र में मौजूद भारतीय समुदाय और देश के प्रमुख नेताओं से भी मुलाकात की। शीत युद्ध के दौरान जब दुनिया अमेरिका और सोवियत रूस के दो धड़ों में बंट रही थी, भारत और मिस्र ने मिलकर 1961 में गुट निरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी थी। दुनिया के इस शक्तिशाली धड़े से 120 विकासशील देश जुड़े। मिस्र के राष्ट्रपति अल-सिसी तीन बार भारत आ चुके हैं। इस वर्ष गणतंत्र दिवस पर मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी नई दिल्ली के मेहमान बने थे। यह सम्मान पाने वाले वह मिस्र के पहले राष्ट्रपति हैं।