ब्रिटेन के मिक्सड मार्शल आर्ट खिलाड़ी जॉन हैथवे आठ साल बाद रिंग में वापसी कर रहे हैं। पेट में बड़ी आंत की जगह प्लास्टिक की थैली के साथ वह 17 जून को लड़ने के लिए तैयार हैं। उनका अगला मैच ओक्टागन 44 में पोलैंड के लुकास सिविएच से होगा। हैथवे ने अपने जीवन के सबसे आसान पल शायद रिंग के अंदर ही बिताए हैं, क्योंकि रिंग के बाहर उन्हें अक्सर चुनौतियों का सामना किया है, जिनके सामने आम लोग घुटने टेक देते हैं। हालांकि, अपने कभी हार नहीं मानने वाले रवैये के चलते हैथवे कुछ ऐसा कर चुके हैं, जिसके बारे में जानकर सभी प्रेरणा ले सकते हैं।
साल 2021-11 में जॉन हैथवे ब्रिटेन में उभरते हुए एमएमए फाइटर थे। उन्होंने 16 में से 15 फाइट जीती थीं और अपने करियर के चरम पर थे। उनमें नया सितारा साफ दिख रहा था। वह मैट ब्राउन के खिलाफ अपनी यूएफसी फाइट की तैयारी कर रहे थे, जब उन्हें अपने मल में खून दिखा। उन्होंने इसे हल्के में नहीं लिया और डॉक्टरों के पास जाकर जांच कराई। दो दिन तक उनके खून और मल के कई टेस्ट हुए। जांच के बाद डॉक्टर ने बताया कि हैथेव को क्रोहन नाम की गंभीर बीमारी है।
बीमारी के बावजूद दो फाइट जीतीं
क्रोहन से पीड़ित व्यक्ति के पाचन तंत्र के कुछ हिस्सों में सूजन हो जाती है। इसी वजह से हैथवे के मल में खून आ रहा था। इस बीमारी में वजन कम होने लगता है। इस बीमारी के बारे में जानकर हैथवे के पैरों तले जमीन खिसक गई। हालांकि, उन्होंने हार नहीं मानी और अपना इलाज कराने का फैसला किया। उन्हें कई दवाएं दी गईं, लेकिन यह बीमारी खत्म नहीं हो रही थी। इधर बीमार हैथवे ने दो और फाइट जीतीं, लेकिन तीन फाइनल उन्हें रद्द भी करनी पड़ी। उनका करियर लगभग खत्म हो चुका था।
हैथवे इतने पतले हो चुके थे, कि उनके शरीर में हड्डियों के अलावा कुछ नहीं दिखता था। यह सिर्फ आत्मविश्वास था, जिसकी वजह से वह ट्रेनिंग कर रहे थे और रिंग में वापसी का सपना देख रहे थे। इस बीच डॉक्टरों ने उनकी सर्जरी की और बड़ी आंत को शरीर से हटा दिया। इसकी जगह अलग थैली लगा दी। डॉक्टरों का काम खत्म हुआ और हैथवे अपने काम में लग गए। उन्होंने जमकर ट्रेनिंग की और 35 साल की उम्र में वापसी कर रहे हैं।
जियू जित्सू से मिली मदद
हैथवे बताते हैं कि 12 साल पहले जब उन्हें इस बीमारी का पता चला था, तब उन्होंने यह नहीं सोचा था कि यह बीमारी उनसे करियर के आठ कीमती साल छीन लेगी। उन्हें सर्जरी से पहले कई दवाएं दी गईं। कई दवाएं असर करती थीं तो कई नहीं करती थीं। कई दवाएं तीन-तीन महीने बाद असर करती थीं। कई बार तो शुरुआत में दवा असर करती थी, लेकिन बाद में असर करना बंद कर देती थी। कीहोल सर्जरी को लेकर उन्होंने बताया कि इससे उनके पेट में कई निशान बन गए थे, लेकिन उनके अंदर रिंग में वापसी करने की आग जिंदा थी। वह बहुत कमजोर थे, लेकिन उस हर जगह पर गए, जहां वह ट्रेनिंग कर सकते थे। अंत में उन्हें लगा कि जियू जित्सू ऐसी जगह है, जहां ट्रेनिंग करके वह वापसी कर सकते हैं। उन्होंने अपनी सोच में बदलाव किया है, वह इस खेल से जो भी हासिल कर सकते हैं, वह हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।