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पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के लोगों को मिलने लगा पीओजेके का डोमिसाइल, मूल गांव पता अंकित

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जम्मू कश्मीर सरकार की ओर से जारी डोमिसाइल में पीओजेके का स्थायी निवासी होने के साथ ही वर्तमान पते का भी जिक्र किया गया है। इसका फायदा फिलहाल जम्मू-कश्मीर के बाहर रहने वाले लोगों को मिल रहा है। बताया जाता है कि इससे पांच लोगों को फायदा होगा।

पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू कश्मीर (पीओजेके) के लोगों को पीओजेके का डोमिसाइल दिया जा रहा है। जम्मू कश्मीर सरकार की ओर से जारी डोमिसाइल में पीओजेके का स्थायी निवासी होने के साथ ही वर्तमान आवासीय पते का भी जिक्र है। इसका फायदा जम्मू-कश्मीर के बाहर रहने वाले लोगों को फिलहाल मिल रहा है।

इनकी संख्या लगभग पांच लाख बताई जा रही है। सबसे बड़ा फायदा यह है कि उन्हें पहचान मिली है। सूत्रों के अनुसार गिलगित बालटिस्तान, मुजफ्फराबाद, मीरपुर आदि इलाकों के स्थायी निवासियों को सरकार की ओर से जारी डोमिसाइल में स्थायी आवास तथा वर्तमान पते का दो कॉलम है।स्थायी पता में गांव का नाम, तहसील, जिला व पिन कोड का भी जिक्र है। परिवार के सदस्यों की संख्या, नाम तथा उनकी जन्म तिथि का भी प्रमाणपत्र पर उल्लेख है। सूत्रों ने बताया कि 1947 के बाद जम्मू-कश्मीर के अलावा विभिन्न राज्यों में बसे 5300 परिवारों का पंजीकरण किया गया था।

इसके अलावा 9400 परिवार पंजीकृत नहीं हो पाए थे। इसके पीछे वजह यह है कि 1947 से 1954 के बीच आने वालों को ही विस्थापित की श्रेणी में माना गया। इसमें कई परिवार ऐसे थे जिनके मुखिया पाकिस्तान की जेलों में बंद थे। वहां से 1954 या उसके बाद छूटने के बाद वह यहां आए।

उस परिवार का भी पंजीकरण नहीं हुआ जिनके मुखिया यहां नहीं आए। ऐसे परिवारों के मुखिया की कबायलियों ने हत्या कर दी थी। वैसे लोगों गा भी पंजीकरण नहीं किया गया जो सरकारी कैंपों में नहीं रहे। जम्मू कश्मीर में पीओजेके के लगभग 12 लाख लोग रह रहे हैं।

लोगों को माटी से जुड़ने का मिला मौकाः चूनी

पीओजेके विस्थापितों की संस्था एसओएस इंटरनेशनल के चेयरमैन राजीव चूनी ने बताया कि सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है। इससे कम से कम पीओजेके के लोगों को पहचान मिली है। उन्हें अपनी माटी से जुड़ने का मौका मिला है। वैसे तो देश के सभी  राज्यों में पीओजेके के लोग रहते हैं, लेकिन पंजाब, दिल्ली व महाराष्ट्र में इनकी संख्या सबसे अधिक है।

सरकार को चाहिए कि अब इन्हें राजनीतिक रूप से भी सशक्त किया जाए। विधानसभा में कम से कम आठ सीटों पर इनका मनोनयन किया जाए। इससे इस समाज के लोगों को भी अपनी आवाज उठाने का मौका मिल सकेगा। 

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