शीर्ष अदालत ने अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के समन आदेश को चुनौती देने वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक अदालत को किसी अभियुक्त को सिर्फ कुछ साक्ष्य रिकॉर्ड पर रखे जाने के आधार पर समन करने के लिए मशीन की तरह काम नहीं करना चाहिए। शीर्ष अदालत ने इसके साथ अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के समन आदेश को चुनौती देने वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस पंकज मित्थल की पीठ ने कहा, भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 319 में समन का आदेश जारी करने से पहले अदालत को यह देखना चाहिए कि उसके समक्ष रखे गए साक्ष्य मामला दर्ज करते वक्त प्रथम दृष्टया साक्ष्यों से अधिक पुष्ट हैं। साथ ही, उनमें इस हद तक संतुष्टि होनी चाहिए कि साक्ष्य अकाट्य हैं और दोषसिद्धि का कारण बन सकते हैं।
यह है धारा 319
सीआरपीसी की धारा 319, अदालत को किसी भी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ केस चलाने का अधिकार देती है, जिसे आरोपी के रूप में नहीं दिखाया गया। पर साक्ष्य इस बात का इशारा करते हैं कि अपराध में वह शामिल है। पीठ ने कहा, ऐसे में यह जरूरी है कि इस शक्ति का इस्तेमाल करते वक्त पूरी तरह संतुष्ट हुआ जाए कि साक्ष्य पुष्ट हैं और व्यक्ति ने अपराध किया है।