यह तिलमिलाहट यूरोपीय संघ के विदेश नीति के प्रमुख जोसेप बोरेल के उस बयान से स्पष्ट झलकती है, जिसमें उन्होंने कहा…ईयू को मालूम है कि भारतीय रिफाइनरी कंपनियां भारी मात्रा में रूस से कच्चा तेल खरीद रही हैं। फिर इसे प्रोसेस कर यूरोप को बेच रही हैं। इस पर ईयू को कड़ा कदम उठाने की जरूरत है।
यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस पर प्रतिबंध लगाने के अपने फैसले के जाल में अब यूरोपीय संघ (ईयू) खुद ही फंस गया है। वजह है…कच्चा तेल। यह वही कच्चा तेल है, जिसे भारत रूस से सस्ती कीमत पर खरीदता है और रिफाइन कर यूरोपीय देशों को अधिक दाम पर बेचता है। इससे यूरोपीय संघ को भारी नुकसान हो रहा है, जिससे वह तिलमिला उठा है।यह तिलमिलाहट यूरोपीय संघ के विदेश नीति के प्रमुख जोसेप बोरेल के उस बयान से स्पष्ट झलकती है, जिसमें उन्होंने कहा…ईयू को मालूम है कि भारतीय रिफाइनरी कंपनियां भारी मात्रा में रूस से कच्चा तेल खरीद रही हैं। फिर इसे प्रोसेस कर यूरोप को बेच रही हैं। इस पर ईयू को कड़ा कदम उठाने की जरूरत है।
आंकड़ों से जानिए…बौखलाहट की वजह
ईयू ने 5 फरवरी, 2023 को रूसी तेल पर रोक के साथ प्राइस कैप भी लगा दिया। कहा, कोई भी देश 60 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा कीमत पर रूस से तेल खरीदता है, तो वह जी-7 के प्राइस कैप का उल्लंघन होगा।
पाबंदी से पूर्व की स्थिति
- 31 फीसदी कच्चा तेल रूस से खरीदता था यूरोपीय संघ।
- 13 फीसदी अमेरिका भी खरीदता था क्रूड मास्को से।
- 1.54 लाख बीपीडी डीजल व जेट ईंधन खरीदता था ईयू भारत से।
प्रतिबंध के बाद हालात…
- 02 लाख बीपीडी पेट्रोलियम उत्पाद खरीदने लगा ईयू भारत से।
- 16 फीसदी तक बढ़कर 1.50 से 1.67 लाख बीपीडी पहुंच गई यूरोप में भारतीय डीजल की बिक्री।
- 30 फीसदी पहुंच गया भारत का गैस निर्यात ईयू को, जो एक साल पहले 21 फीसदी था।
(सोर्स : वोर्टेक्सा और केप्लर)
जल्द सऊदी अरब को पीछे छोड़ देगा भारत
केप्लर के मुताबिक, भारत से यूरोप को कच्चा तेल निर्यात जल्द ही 3.60 लाख बीपीडी के स्तर पर पहुंच सकता है। यह आंकड़ा सऊदी अरब से थोड़ा ज्यादा है। वहीं, वोर्टेक्सा के मुताबिक, भारतीय रिफाइनरी कंपनियों ने दिसंबर, 2022 से अप्रैल, 2023 के बीच ईयू को औसतन 2.84 लाख बैरल प्रतिदिन (बीपीडी) क्रूड का निर्यात किया है। एक साल पहले यह आंकड़ा 1.70 लाख बीपीडी था।
भारतीय कंपनियां प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम, मुनाफे में इजाफा
भारतीय कंपनियां सस्ता रूसी तेल अधिक दाम पर ईयू को बेचती हैं। इससे इन कंपनियों का लाभ बढ़ा है। विदेशी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा में भी सक्षम हुई हैं।
ईयू के वन कटाई नियम से भारत को होगा 1.3 अरब डॉलर का नुकसान
ये कैसी नीति…यूरोपीय संघ ने पूर्व में जो काम खुद किया है, अब उससे दूसरे को रोकना चाहता है
असर…नए नियम से वैश्विक कृषि व्यापार से बाहर हो सकती हैं छोटी कंपनियां
यूरोपीय संघ (ईयू) के वन कटाई नियम से भारत को निर्यात के मोर्चे पर 1.3 अरब डॉलर का नुकसान होगा। कार्बन कर पेश करने के तीन सप्ताह के भीतर ईयू परिषद ने 16 मई को यूरोपीय संघ वन कटाई मुक्त उत्पाद नियमन (ईयू-डीआर) पेश किया है। इससे भारत से कॉफी, चमड़ा और पेपरबोर्ड जैसे उत्पादों का निर्यात प्रभावित होगा।
- ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने कहा, यूरोपीय संघ के नियम से लगता है कि वह अपने कृषि क्षेत्र के संरक्षण को प्राथमिकता देने के साथ निर्यात बढ़ाना चाह रहा है। अनुपालन लागत व जांच जैसी जरूरतें छोटी कंपनियों को वैश्विक कृषि व्यापार से बाहर कर सकती हैं।
ऐसे प्रभावित होगा निर्यात
उत्पाद नुकसान
कॉफी 43.54
चमड़ा 8.35
तेल की खली 17.45
कागज-पेपरबोर्ड 25.02
लकड़ी फर्नीचर 33.46
(आंकड़े : करोड़ डॉलर में)
बड़ी कंपनियों पर 18 महीने और छोटी पर 24 माह बाद नियम लागू
निर्यातकों को सुनिश्चित करना होगा कि ये उत्पाद उस जमीन से जुड़े हों, जहां 31 दिसंबर, 2020 के बाद वनों की कटाई नहीं हुई हो। नए नियम 18 माह के बाद बड़ी कंपनियों और 24 महीने बाद छोटी कंपनियों पर लागू होंगे।
व्यापार पर ईयू का हमला
यूरोपीय संघ का दावा है कि वह वनों की कटाई से मुक्त उत्पादों को बढ़ावा देकर वनीकरण में योगदान देना चाहता है, लेकिन यह सब कुछ और नहीं बल्कि भ्रमजाल है। यह कुल मिलाकर एक तरह से व्यापार पर यूरोपीय संघ का हमला है। -अजय श्रीवास्तव, सह-संस्थापक, जीटीआरआ