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महिलाओं ने रखा पति की दीर्घायु के लिए वट सावित्री व्रत, जानिए इसका महत्व

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प्रबंधक गीता प्रेस डॉ लाल मणि तिवारी ने कहा कि सिर्फ वट सावित्री ही नहीं सभी तरह के व्रत और त्योहार हमारी जिंदगी, समाज और राष्ट्र के लिए मायने रखते हैं। वट सावित्री का व्रत पति-पत्नी के बीच में विश्वास को बढ़ाता है। आज के समय में जब रिश्ते कमजोर हो रहे हैं तो ये तीज-त्योहार इसे और मजबूती देते हैं।

वट सावित्री व्रत शुक्रवार को मनाया जा रहा है। महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए व्रत रख विधि-विधान से पूजन-अर्चन कीं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, माता सावित्री अपने पति के प्राणों को यमराज से छुड़ाकर ले आई थीं। ऐसे में महिलाएं अपनी पति की लंबी आयु के लिए इस व्रत को रखती हैं।

वट सावित्री व्रत का महत्व
पंडित डॉ. जोखन पांडेय शास्त्री के अनुसार, वट सावित्री व्रत में प्राचीन समय से बरगद के पेड़ की पूजा करने की परंपरा चली आ रही है। इसमें एक पौराणिक कथा भी जुड़ी है। मान्यता है कि वट वृक्ष ने ही सत्यवान के मृत शरीर को अपनी जटाओं के घेरे में सुरक्षित रखा था, जिससे कोई उसे नुकसान न पहुंचा सके। इसलिए वट सावित्री व्रत में प्राचीन समय से बरगद की पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि बरगद के वृक्ष में भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का वास होता है। इसकी पूजा करने से पति के दीर्घायु होने के साथ ही उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

वट सावित्री व्रत पूजन विधि
पंडित शरद चंद्र मिश्र के अनुसार, इस दिन बांस की दो टोकरी लें। उनमें सप्तधान्य (गेहूं, जौ, चावल, तिल, कांगुनी, सॉवा, चना) भर लें। उन दोनों में से एक पर ब्रह्मा और सावित्री व दूसरी टोकरी में सत्यवान और सावित्री की प्रतिमा स्थापित करें। यदि उनकी प्रतिमाएं न हो तो मिट्टी या कुश में ही परिकल्पित कर स्थापित करें। वट वृक्ष के नीचे बैठकर ब्रह्मा-सावित्री का, उसके बाद सत्यवान और सावित्री का पूजन करें। सावित्री के पूजन में सौभाग्य वस्तुएं चढ़ाएं। अब माता सावित्री को अर्घ्य दें। इसके बाद वट वृक्ष का पूजन करें। वट वृक्ष के पूजन के बाद उसकी जड़ों में प्रार्थना के साथ जल अर्पण करें। वट वृक्ष की परिक्रमा करते हुए उसके तने पर 108 बार कच्चा सूत लपेटें। यदि इतना न कर सकें, तो 28 बार अवश्य परिपालन करें। पूजा के अंत में वट सावित्री व्रत की कथा सुनें।

व्रत से मिलती है आत्म संतुष्टि

तिवारीपुर निवासी उमा देवी ने कहा कि परंपरा का निर्वहन हम सभी का कर्तव्य है। शादी करके जब ससुराल गई तो मेरी सास वट सावित्री व्रत रखती थीं। उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए मैंने भी इस व्रत रखना शुरू किया। व्रत से आत्म संतुष्टि मिली। अब मेरी बहू भी इस व्रत को रखती है।

बशारतपुर निवासी रीता ने कहा कि वट सावित्री व्रत पति के प्रति सम्मान प्रकट करने का माध्यम है। साथ ही व्रत से हम अपनी परंपरा को भी आगे बढ़ाते हैं। सुहाग की लंबी आयु के लिए वट सावित्री व्रत रखा जाता है। व्रत को रखने से मन को शांति भी मिलती है। आने वाली पीढ़ी को भी इस व्रत को करना चाहिए।

महिलाएं बोलीं
गोरखनाथ निवासी डॉ. पारुल पांडेय ने कहा कि पति की लंबी उम्र को देखते हुए इस व्रत को रखने की परंपरा है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि बरगद के पेड़ में त्रिदेव का वास होता है। त्रिदेव से अपने पति की लंबी उम्र की कामना के साथ ये व्रत शादी के बाद से ही रख रही हूं।

प्रबंधक गीता प्रेस डॉ लाल मणि तिवारी ने कहा कि सिर्फ वट सावित्री ही नहीं सभी तरह के व्रत और त्योहार हमारी जिंदगी, समाज और राष्ट्र के लिए मायने रखते हैं। वट सावित्री का व्रत पति-पत्नी के बीच में विश्वास को बढ़ाता है। आज के समय में जब रिश्ते कमजोर हो रहे हैं तो ये तीज-त्योहार इसे और मजबूती देते हैं। पति-पत्नी के बीच विश्वास बढ़ता है तो उसका सकारात्मक असर पूरे परिवार पर पड़ता है। आने वाली पीढ़ी यानी बेटे-बेटियां भी जब रिश्तों की इस मजबूती को करीब से महसूस करते हैं तो उन्हें भी इसके मायने समझ आते हैं। आगे चलकर जब वे भी मुखिया की भूमिका में आते हैं तो ये संस्कार, अपने बच्चों को हस्तांतरित करते हैं।

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