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अब पूर्व मेवाड़ राजघराने की भी नजर, कटारिया के बाद BJP की बढ़ी चुनौती

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राजस्थान के नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया को राज्यपाल बनाया गया है। अब वह जल्द ही नेता प्रतिपक्ष और विधायक के पद से इस्तीफा देने वाले हैं। कटारिया राजस्थान में उदयपुर शहर सीट से विधायक हैं। उनके इस्तीफे से उदयपुर शहर सीट खाली हो जाएगी। माना जा रहा है कि इस सीट पर अब उपचुनाव नहीं होंगे। मगर 2023 विधानसभा चुनाव के दौरान यह सीट अब कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित होगी।

कटारिया 2003 से लगातार इस सीट से जीत रहे हैं। इस बीच प्रदेश में 2 बार कांग्रेस की सरकार आई, लेकिन वह हर बार जीते। पिछली बार तो उन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस की कद्दावर नेता डॉ. गिरिजा व्यास को भी हरा दिया। 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए भी इसे बीजेपी के लिए सेफ सीट माना जा रहा था। पर कटारिया के जाने के बाद यहां सियासी समीकरण बदल सकते हैं।

कांग्रेस भी मानती है उदयपुर सीट को बड़ी चुनौती
कांग्रेस उदयपुर शहर सीट को अपने लिए सबसे चुनौतीपूर्ण सीटों में से एक मानती है। इसकी वजह भी है। 1980 से बीजेपी नई पार्टी बनने के बाद अबतक इस सीट पर कांग्रेस सिर्फ 2 बार जीत हासिल कर पाई है। वर्ष 1985 से 1990 में डॉ. गिरिजा व्यास और फिर 1998 से 2003 में त्रिलोक पूर्बिया, केवल दो कांग्रेस प्रत्याशी ही यहां चुनाव जीत सके।

कभी कांग्रेस की मजबूत सीट थी उदयपुर
उदयपुर पर आज बीजेपी की मजबूत पकड़ है। मगर कभी यह कांग्रेस की मजबूत सीट थी। राजस्थान में सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहे मोहनलाल सुखाड़िया उदयपुर शहर सीट से ही विधायक रहे थे। 1951 में राम राज्य परिषद पार्टी के देवी सिंह के बाद 1957 से 1972 तक मोहनलाल सुखाड़िया लगातार यहां से विधायक रहे। इस दौरान 14 साल तक वे सीएम भी रहे। मगर उनके सीट छोड़ने के बाद कांग्रेस सिर्फ 2 बार ही चुनाव जीत सकी।

सुखाड़िया के सीट छोड़ने के बाद भारतीय जन संघ से भानू कुमार शास्त्री ने 1972 का विधानसभा चुनाव जीता। तब राजस्थान में कांग्रेस की ही सरकार बनी थी। इसके बाद 1977 में पहली बार गुलाबचंद कटारिया ने इस सीट से चुनाव जीता। तब वे जनता पार्टी से विधायक बने थे। इसके बाद 1980 में जब बीजेपी बनी तो उसी के बैनर तले कटारिया ने दोबारा यहां चुनाव जीता। खास बात यह रही कि 16 साल से ज्यादा समय तक जिस सीट से कांग्रेस के मोहनलाल सुखाड़िया मुख्यमंत्री रहे, उस सीट को बीजेपी ने पूरी तरह कब्जा जमा लिया।

15 चुनावों में से 7 चुनाव बीजेपी, 5 चुनाव कांग्रेस ने जीते
उदयपुर शहर उन चुनिंदा सीटों में से है, जिनपर ओवरऑल बीजेपी ने कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा समय तक राज किया है। अबतक हुए 15 विधानसभा चुनावों में से 7 बार इसपर बीजेपी ने कब्जा किया। जबकि कांग्रेस सिर्फ 5 बार ही जीत सकी। इसके अलावा 1-1-1 बार जनसंघ, जनता पार्टी और राम राज्य परिषद ने चुनाव जीता।

43 साल पहले बीजेपी बनी, उदयपुर में 33 साल से सत्ता में
उदयपुर में बीजेपी की पकड़ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1980 में पार्टी बनने के बाद बीजेपी 33 साल यहां सत्ता में रही। बीजेपी से गुलाबचंद कटारिया और शिव किशोर सनाढ्य इस दौरान सत्ता में रहे। जबकि कांग्रेस से सिर्फ दो विधायक ही चुनाव जीत सके। 1980 से 85, 1990 से 1998 तक। फिर 2003 से अबतक यहां बीजेपी प्रत्याशी ने ही जीत दर्ज की।

उदयपुर में जैन-ब्राह्मण सबसे बड़ा वोटर
उदयपुर पूरी तरह जैन और ब्राह्मण डोमिनेंट सीट है। यही वजह है कि 1957 से लेकर अबतक एक मौके को छोड़ दिया जाए तो यहां जैन या ब्राह्मण नेता ही विधायक बना है। वर्ष 1951 में देवी सिंह के बाद यहां मोहनलाल सुखाड़िया और गुलाबचंद कटारिया के रूप में जैन विधायक रहे। वहीं भानू कुमार शास्त्री, डॉ. गिरिजा व्यास, शिवकिशोर सनाढ्य के रूप में ब्राह्मण विधायक बने। 1998 में कांग्रेस से विधायक बने त्रिलोक पूर्बिया कलाल समाज से आते हैं।

2023 में ये हैं प्रमुख दावेदार
2023 विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी और कांग्रेस दोनों ब्राह्मण चेहरों पर दावेदारी जता सकती है। बीजेपी से जहां जैन चेहरे के रूप में महिला बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष अल्का मूंदड़ा मजबूत दावेदार हैं। वहीं पूर्व मेयर रजनी डांगी, उपमहापौर पारस सिंघवी, ताराचंद जैन जैसे नेता भी दावेदारी कर रहे हैं। इसी तरह ब्राह्मण चेहरे के रूप में बीजेपी से जिलाध्यक्ष रविंद्र श्रीमाली के अलावा जिनेंद्र शास्त्री सहित कई और चेहरे भी दावेदारी कर रहे हैं। पूर्व राजघराने के लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ जरूर इस सीट से दावेदारी जता रहे हैं।

इसी तरह कांग्रेस से देखा जाए तो मुख्य रूप से पंकज शर्मा, दिनेश श्रीमाली, गोपाल शर्मा, सुरेश श्रीमाली जैसे दावेदार बताए जा रहे हैं। लालसिंह झाला और फतेह सिंह के रूप में राजपूत समाज से भी दावेदारी की जा रही है।

उदयपुर ने दिए हैं राजस्थान को बड़े नेता
उदयपुर वो जगह है जिसने राजस्थान को कई बड़े नेता दिए। खास बात यह रही कि राजस्थान में दोनों ही पार्टियों को उदयपुर ने बड़े नेता दिए।

मोहनलाल सुखाड़िया : इस लिस्ट में सबसे पहला नाम मोहनलाल सुखाड़िया का आता है। सुखाड़िया राजस्थान में सबसे ज्यादा समय तक रहे मुख्यमंत्री हैं। वे 4 विधानसभाओं में 16 साल से ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहे। आज से 50 साल पहले राजनीति छोड़ने के बावजूद उनका यह रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ पाया है। उनके बाद इस मामले में अशोक गहलोत आते हैं जो 14 साल से ज्यादा समय से सीएम हैं।

गुलाबचंद कटारिया : गुलाब चंद कटारिया को हाल ही में राज्यपाल बनाया गया है। इससे पहले वे सरकार में गृहमंत्री जैसे पद पर रहे। वहीं इसके अलावा नेता प्रतिपक्ष, प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष, सांसद और विधायक भी कटारिया रहे। वे 8 बार विधायक और 1 बार सांसद रहे। उदयपुर शहर से सबसे ज्यादा 28 साल तक विधायक रहने वाले नेता कटारिया हैं।

डॉ. गिरिजा व्यास : गिरिजा व्यास को कांग्रेस की कद्दावर नेताओं में गिना जाता है। वे दो बार केंद्रीय मंत्री के पद पर रह चुकी हैं। वहीं इसके अलावा में राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष और संगठन में प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष जैसे प्रमुख पदों पर भी रही हैं। वर्तमान में भी वे कांग्रेस की चीफ इलेक्शन कमेटी की भी सदस्य हैं।

रघुवीर मीणा : रघुवीर मीणा 4 बार के विधायक और 1 बार के सांसद हैं। वे कांग्रेस की सर्वोच्च वर्किंग कमेटी के 2 बार सदस्य रहे हैं। वर्तमान में वे स्टीयरिंग कमेटी के भी सदस्य हैं। इससे पहले वे राजस्थान सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं।

किरण माहेश्वरी : किरण माहेश्वरी भी उदयपुर से ही थी। वे राजस्थान में मंत्री रहीं। इसके अलावा बीजेपी के राष्ट्रीय महिला मोर्चा की अध्यक्ष रही। वहीं सांसद, विधायक और सभापति जैसे पदों पर भी रही।

भानू कुमार शास्त्री : भानू कुमार शास्त्री भी उदयपुर के जाने-माने नेता थे। वे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी थे। वे उदयपुर से सांसद और विधायक रहे। पहली वसुंधरा सरकार में वे खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे। जनसंघ के जमाने में वे जनसंघ राजस्थान के अध्यक्ष रहे थे। आरएसएस में उनका अच्छा होल्ड था।

मेवाड़ राजघराने के वशंज लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ की भी नजर अब उदयपुर सीट पर है। वे इस सीट से विधायक पद के लिए दावेदारी कर रहे हैं।
मेवाड़ राजघराने के वशंज लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ की भी नजर अब उदयपुर सीट पर है। वे इस सीट से विधायक पद के लिए दावेदारी कर रहे हैं।

कटारिया के जाने से दक्षिणी राजस्थान में बीजेपी पर पड़ेगा असर

गुलाबचंद कटारिया के राजस्थान की सक्रिय राजनीति से जाने का असर बीजेपी पर पड़ेगा। दक्षिणी राजस्थान में कटारिया गहरा प्रभाव रखते थे। उदयपुर, राजसमंद, डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ जिलों में कटारिया की अच्छी पकड़ थी। कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद अब मेवाड़ में बीजेपी का कोई कद्दावर नेता नहीं रह जाता। इससे पहले नंदलाल मीणा हुआ करते थे जो रिटायर हो गए। वहीं किरण माहेश्वरी भी कद्दावर नेता थी मगर उनका कोरोना काल में देहांत हो गया था। अब कटारिया भी राजस्थान से बाहर जा रहे हैं। ऐसे में दक्षिणी राजस्थान पर इसका असर पड़ सकता है।

दक्षिणी राजस्थान में बीजेपी मजबूत मानी जाती है। 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद भी मेवाड़ की 28 में से 15 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी। जबकि कांग्रेस 10 सीटें ही जीत पाई थी। उदयपुर में भी कटारिया का प्रभाव कुछ ऐसा था कि जिले की 8 में से 6 सीटों पर बीजेपी जीती थी। ऐसे में 2023 में बीजेपी के मजबूत गढ़ में कटारिया के नहीं होने का असर दिख सकता है। हालांकि उदयपुर शहर सीट पर बीजेपी अब भी अच्छी स्थिति में है।

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