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ब्रिटेन में सुनक की सख्त इमीग्रेशन पॉलिसी का असर:वीसा का संकट तो शरण मांगने वाले बढ़े, भारतीय तीसरे नंबर पर

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ब्रिटेन में प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की सरकार की ओर से अप्रवासियों को वीसा नियमों में सख्ती का असर भारतीयों पर भी पड़ रहा है। एंटी इमीग्रेशन पॉलिसी के कारण आसानी से वीसा न मिलने से अब भारतीय शरण मांग कर यहां प्रवेश चाह रहे हैं। यही नहीं, शरण पाने के लिए भारतीय अप्रवासी इंग्लिश चैनल को पार करने का जानलेवा जोखिम भी उठा रहे हैं।

नावों में सफर कर ब्रिटेन में अवैध रूप से आने वाले भारतीयों में सबसे ज्यादा संख्या छात्रों की है। 2022 के दौरान 233 भारतीय नावों के जरिए ब्रिटेन में आए थे, जबकि जनवरी, 2023 के एक ही महीने में 250 भारतीय पहुंचे और शरण की गुहार कर रहे हैं। शरण मांगने वालों में पहले नंबर पर अफगान, दूसरे पर सीरियाई और तीसरे नंबर पर भारतीय हैं।

दरअसल, प्रधानमंत्री बनने के बाद सुनक ने आश्वासन दिया था कि वीसा मांगने वालों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ब्रिटेन के मानवाधिकार कानून के तहत किसी को शरण मांगने से इनकार नहीं किया जा सकता। शरणार्थी को कोर्ट की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही शरण देने अथवा वापस मूल देश भेजने का फैसला किया जाता है।

अब शरणार्थियों के इस अधिकार को भी खत्म करने की तैयारी है। भारत और ब्रिटेन के बीच बहुप्रतीक्षित फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर अभी वार्ता का दौर ही चल रहा है। पिछले साल दिवाली तक इस पर मुहर लगने की संभावना थी। इसमें वीसा में आसानी सबसे बड़ा मुद्दा था। लेकिन हाल में भारत दौरे पर गईं ब्रिटेन की व्यापार मंत्री केमी बेडनोच ने कहा था कि भारतीयों को आसान वीसा देने पर फिलहाल विचार ही चल रहा है।

जबकि जून, 2022 में 1.03 लाख भारतीयों को वर्क वीसा मिला था। लेकिन अब सख्त इमीग्रेशन पॉलिसी के कारण अक्टूबर, 2022 के बाद इसमें गिरावट आने की आशंका है। दरअसल वीसा पर ओवर स्टे करने वाले भारतीयों के कारण इस पर फैसला नहीं हो पा रहा है।

टॉप यूनिवर्सिटी में प्रवेश पर ही आश्रितों को ब्रिटेन ला सकेंगे

अप्रवासियों को ब्रिटेन में आने से रोकने के लिए ब्रिटेन सरकार ने एक और प्रस्ताव तैयार किया है। इसके तहत जिन प्रवासी छात्रों को टॉप यूनिवर्सिटी में प्रवेश मिलेगा वे ही अपने आश्रितों को ब्रिटेन में ला सकेंगे। ब्रिटेन में आने वाले ज्यादातर भारतीय छात्र टू और थ्री टीयर यूनिवर्सिटी में प्रवेश ले पाते हैं। इसका मतलब है कि ज्यादातर भारतीय छात्र आश्रितों को नहीं ला पाएंगे। सरकार का मानना है कि आश्रित उनके सिस्टम पर बोझ बनते हैं।

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