संत शिरोमणि श्री गुरु रविदास महाराज की आज 646वीं जयंती है। इस मौके पर काशी का सीर गोवर्धनपुर मिनी पंजाब में तब्दील हो गया है। यहां कनाडा-हॉलैंड समेत दुनियाभर से करीब 2 लाख भक्त पहुंचे हैं। शाम तक यह आंकड़ा 5 लाख तक पहुंच सकता है। CM योगी ने संत रविदास मंदिर पहुंचकर संत शिरोमणि की प्रतिमा पर माल्यार्पण के बाद शीश नवाया।
ऐसा चाहूं राज मैं, जहां मिले सबन को अन्न- CM
इस दौरान सीएम ने प्रधानमंत्री मोदी का संदेश पढ़ा। कहा, “ऐसा चाहूं राज मैं, जहां मिले सबन को अन्न, छोट-बड़ों सब सम बसे, रविदास रहे प्रसन्न’। समाज में सकारात्मक परिवर्तन के लिए उन्होंने सौहार्द की भावना पर बल दिया। सबका साथ, सबका विश्वास के मंत्र पर आज हम आगे बढ़ रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि इसमें रविदास के कालजयी विचार विद्यमान हैं। हम लोग संत रविदास के दिखाए मार्ग पर भारत को वैश्विक पटल पर काफी ऊंचाई तक लेकर जाएंगे। केंद्र सरकार और राज्य सरकार की ओर उपस्थित श्रद्धालुजनों को लख-लख बधाई। इस दौरान वहां मौजूद सेवादारों ने जो बोले सो निहाल का जयघोष भी किया।
हॉलैंड से आईं महिला भक्त बोली- गुरुजी से युवाओं को सीख लेनी चाहिए
हॉलैंड से आईं महिला भक्त चैरन बदनबंगा ने गुरु रविदास महाराज के दर पर शीश नवाया। उन्होंने कहा, “हमारे पेरेंट्स के ग्रांड पेरेंट्स भी इस धरती और गुरु जी के साथ जुड़े हैं। हम सभी उनके फॉलोअर्स और न्यू जनरेशन हैं।
उनसे सीख कर और इन्सपायर होकर यहां गुरु जी का जन्मदिन मनाने आते हैं। भक्तों की संगत बढ़ती जा रही है। क्योंकि, इंडिया और पूरे वर्ल्ड में लोगों को पता चल रहा है कि यहां गुरु जी का जन्म हुआ था। गुरुजी की कहानी पढ़कर हमें पता चलता है कि कैसे उन्होंने हम सबके लिए संघर्ष किया। युवाओं को उनसे सीख लेनी चाहिए।”
- देखते हैं कुछ तस्वीरें…
15 करोड़ लोगों ने अपनाया रविदासिया धर्म
रविवार को रविदासिया धर्म संगठन और डेरा सचखंड बल्लां के प्रमुख संत 108 निरंजन दास ने स्वर्ण पालकी में विराजमान संत रविदास की अरदास की। पूरी दुनिया में करीब 15 करोड़ लोगों ने रविदासिया धर्म अपनाया है। ज्यादातर सिख से अलग हुए हैं। इस धर्म का जीवनकाल महज 14 साल पुराना है।
क्यों 600 सालों तक यह मंदिर रहा लापता
करीब 600 साल तक रविदास जन्मस्थली कहीं गुम रही। लिट्रेचर में तो यह था कि संत रविदास काशी में ही जन्मे थे, मगर यहां पर कहां? इसकी कोई जानकारी नहीं थी। जन्म स्थल की खोज में पंजाब से निकले संत पिपल दास, संत सरवण दास, संत हरिदास और संत गरीब दास को साल 1964 में सफलता मिली। संत रैदास के जीवन काल के करीब 600 साल बाद यहां पर इमली के उस ठूठे की खोज की गई, जिसके नीचे बैठ रैदास उपदेश दिया करते थे।
इसके बाद यहां पर खुदाई का काम कराया गया, तो यहां से संत रैदास की चमड़े की कठौती मिल गई। संत रविदास इसी कठौती में चमड़े का काम करते थे। मंदिर के बेसमेंट में रखी संत रविदास की यह कठौती बेहद खास है। यहां आने वाले श्रद्धालु कठौती का दर्शन करते हैं। कठौती को बुलेट प्रूफ कांच में रखकर चबूतरे से मढ़ा गया है।
इस तरह रही मंदिर की विकास यात्रा
- जून 1965 को संत रविदास मंदिर के नींव की पहली ईंट रखी गई थी। फरवरी, 1974 में संत रविदास की मूर्ति स्थापित हुई।
- 7 अप्रैल, 1994 को कांशीराम ने पहला स्वर्ण कलश मंदिर पर लगाया।
- साल 2008 में पंजाब से स्वर्ण पालकी काशी लाई गई। इसका लोकार्पण तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने किया था।
- 30 जनवरी, 2010 को काशी से रविदासिया धर्म की स्थापना हुई और अमृतवाणी का ऐलान किया गया।
- 2012 में मंदिर का सबसे बड़ा शिखर स्वर्ण मंडित कराया गया।
- 2015 से मंदिर में चौबीसों घंटे लगातार अखंड स्वर्ण दीप जल रहा है।
- PM नरेंद्र मोदी द्वारा 2019 में मंदिर के सुंदरीकरण और विस्तारीकरण की आधारशिला रखी।
- CM योगी आदित्यनाथ ने साल 2023 में 24 करोड़ रुपए से संत रविदास म्यूजियम बनाने की घोषणा की।