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सऊदी देगा 5 अरब डॉलर, लेकिन खर्च करने के लिए नहीं; जिनेवा से 10 अरब डॉलर मिलने का भरोसा

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दिवालिया होने की कगार पर खड़े पाकिस्तान को एक बार फिर दुनिया ने बचा लिया है। 2 दिन में पाकिस्तान को राहत देने वाली 2 खबरें मिलीं। पहली- जिनेवा में हुई क्लाइमेट समिट में फ्लड रिलीफ प्रोजेक्ट्स के तहत पाकिस्तान को 10 अरब डॉलर देने का भरोसा दिलाया गया है। दूसरी- सऊदी अरब ने पाकिस्तान के आर्मी चीफ से वादा किया है कि वो 5 अरब डॉलर देगा। हालांकि, यह सिर्फ रिजर्व डिपॉजिट होगा। इसे खर्च नहीं किया जा सकेगा। सऊदी सरकार 36 घंटे के नोटिस पर यह पैसा वापस ले सकती है।

पाकिस्तान के नए आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर सऊदी क्राउन प्रिंस सलमान के साथ।
पाकिस्तान के नए आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर सऊदी क्राउन प्रिंस सलमान के साथ।

पहला डेवलपमेंट
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री क्लाइमेट समिट में हिस्सा लेने के लिए जिनेवा गए थे। वहां उन्होंने दुनिया से एक बार फिर बाढ़ राहत के लिए फंड्स की अपील दोहराई। अब तक की जानकारी के मुताबिक, वर्ल्ड फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन्स ने पाकिस्तान को 10 अरब डॉलर देने का भरोसा दिलाया है। खास बात यह है कि इसमें IMF और वर्ल्ड बैंक शामिल नहीं हैं।

इस मामले में भी एक पेंच है। ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ के मुताबिक- अब तक यह तय नहीं है कि यह 10 अरब डॉलर किस तरह पाकिस्तान को मिलेंगे। मसलन- क्या NGOs के जरिए यह फंड्स दिए जाएंगे या कोई वर्ल्ड मॉनिटरिंग बॉडी इनके खर्च की निगरानी करेगी। इसकी वजह यह है कि कोविड-19 के दौरान तब की इमरान सरकार को दुनिया ने मदद भेजी थी और इसमें 42 करोड़ रुपए का घोटाला खुद वहां की सरकार ने माना था।

वैसे इस मामले में पाकिस्तान सरकार की इच्छा पूरी नहीं हुई। इसकी वजह यह है कि शाहबाज शरीफ सरकार ने दुनिया को बताया था कि बाढ़ से 30 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है। उन्होंने पहली किश्त के तौर पर 16 अरब डॉलर मांगे थे, लेकिन मिले सिर्फ 10 अरब डॉलर। अब शरीफ सरकार की दिक्कत यह है कि वो पुराने कर्जों की किश्तें भरे या ऑयल और गैस इम्पोर्ट करे। दूसरी तरफ, जो फंड्स देने जा रहे हैं उन्हें बाढ़ राहत पर किए खर्च का हिसाब भी देना है।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के साथ सऊदी क्राउन प्रिंस और PM सलमान।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के साथ सऊदी क्राउन प्रिंस और PM सलमान।

दूसरा डेवलपमेंट

  • पाकिस्तान में जब भी कोई नया आर्मी चीफ या प्रधानमंत्री बनता है तो वो पहला विदेशी दौरा सऊदी अरब का करता है। यह एक तरह से परंपरा बन गई है। जनरल कमर जावेद बाजवा की जगह जनरल आसिम मुनीर आर्मी चीफ बने तो वो भी सबसे पहले रियाद पहुंचे।
  • यहां क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान (MBS) ने दो वादे किए। पहला- पाकिस्तान के फॉरेक्स रिजर्व में 5 अरब डॉलर डिपॉजिट कराए जाएंगे। दूसरा- सऊदी अरब सरकार पाकिस्तान में 10 अरब डॉलर इन्वेस्ट करने पर विचार करेगी।
  • अब इन दोनों वादों की हकीकत भी समझ लीजिए। ये सही है कि सऊदी सरकार पाकिस्तान को 5 अरब डॉलर देगी, लेकिन इसमें एक बड़ा पेंच तकनीकि पेंच है। दरअसल, यह 5 अरब डॉलर बतौर जमानत राशि (फॉरेक्स डिपॉजिट) दिए जाएंगे। पाकिस्तान सरकार इन्हें खर्च नहीं कर सकेगी। पाकिस्तान के खजाने में फिलहाल, 5.4 अरब डॉलर हैं। इनमें 3 अरब डॉलर सऊदी और 2 अरब डॉलर चीन के हैं। खुद पाकिस्तान का कुछ भी नहीं।
  • 2020 में जब सऊदी ने पाकिस्तान को 3 अरब डॉलर और उधार पर तेल दिया था, तब एक शर्त रखी थी और एक मुल्क के लिए यह शर्मिंदगी वाली बात थी। सऊदी ने कहा था कि वो 36 घंटे के नोटिस पर यह पैसा वापस ले सकते हैं, पाकिस्तान को ब्याज भी चुकाना होगा और यह सिर्फ गारंटी मनी होगी। मतलब, पाकिस्तान इसे खर्च नहीं कर सकेगा। इस बार भी शर्तों में बदलाव नहीं हुआ है। लिहाजा, साफ है कि पुरानी शर्तें ही जारी रहेंगी।
  • 2019 में सऊदी क्राउन प्रिंस सलमान पाकिस्तान दौरे पर आए थे। तब इमरान खान प्रधानमंत्री थे और उन्होंने खुद कार ड्राइव की थी। तब भी सलमान ने पाकिस्तान में 10 अरब डॉलर इन्वेस्ट करने का वादा किया था। 3 साल बाद भी वादा पूरा नहीं हुआ। हां, एक बार फिर क्राउन प्रिंस ने 10 अरब डॉलर इन्वेस्टमेंट की बात दोहराई है।
पाकिस्तान में पिछले साल आई बाढ़ में 1600 लोगों की मौत हुई थी।
पाकिस्तान में पिछले साल आई बाढ़ में 1600 लोगों की मौत हुई थी।

इससे फायदा क्या होगा
दो बातें होंगी। पहली- IMF की अगली किश्त (1.2 अरब डॉलर) का इंतजार किए बिना शाहबाज शरीफ सरकार खर्च चला सकेगी। दूसरी- खजाने में फॉरेक्स रिजर्व रहेगा तो ऑयल, गैस और गेहूं इम्पोर्ट किया जा सकेगा।

अक्टूबर-नवंबर में इलेक्शन शेड्यूल्ड हैं। अगर अंदरूनी हालात ठीक रहे तो चुनाव कराए जा सकते हैं। वरना सियासी हालात बिगड़ सकते हैं। एक नई बात मुल्क में चल पड़ी है और वो है ‘टेक्नोक्रेट गवर्नमेंट’ की। टेक्नोक्रेट गवर्नमेंट का मतलब है कि फाइनेंशियल और दूसरे मामलों के एक्सपर्ट्स सरकार चलाएं। दूसरे शब्दों में नेताओं को इसमें जगह नहीं दी जाएगी। यह मांग कुछ पूर्व ब्यूरोक्रेट कर रहे हैं। इसको लेकर बहस जारी है।

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