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हाईकोर्ट से सभी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने पर भी बहस होगी

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समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई होगी। इस दौरान अलग-अलग हाईकोर्ट से सभी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने की याचिकाओं पर भी बहस होगी। मामले पर पिछली सुनवाई 14 दिसंबर 2022 को हुई थी। इस दौरान कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मान्यता देने की नई याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा था।

इससे पहले भी इससे पहले 25 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने एक और समलैंगिक जोड़े की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया था और 4 सप्ताह में केंद्र से जवाब मांगा था। वरिष्ठ वकील आनंद ग्रोवर ने इस मामले की सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग करने की मांग कर रहे हैं। इस पर CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि जब सुनवाई होगी तो हम इस पर विचार करेंगे।

पहली याचिका
पहली जनहित याचिका सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डांग ने दायर की है। वे लगभग 10 सालों से एक साथ रह रहे हैं। कोरोना महामारी के दौरान दोनों नजदीक आए। दूसरी लहर में दोनों COVID पॉजिटिव हो गए। जब ठीक हुए, तो उन्होंने परिवार के साथ अपने रिश्ते का जश्न मनाने के लिए मैरिज कम कमिटमेंट सेरेमनी आयोजित करने का फैसला किया।अब, वे चाहते हैं कि उनकी शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मान्यता दी जाए।

दूसरी याचिका
दूसरी जनहित याचिका पार्थ फिरोज मेहरोत्रा और उदय राज आनंद ने दायर की है, जो पिछले 17 सालों से एक-दूसरे के साथ रिलेशनशिप में हैं। उनका दावा है कि वे दो बच्चों की परवरिश एक साथ कर रहे हैं, लेकिन कानूनी रूप से उनकी शादी पूरी नहीं हुई है। इसके चलते ऐसी स्थिति पैदा हो गई है, जहां वे अपने बच्चों के साथ कानूनी संबंध नहीं रख सकते हैं।

दिल्ली-केरल हाई कोर्ट में दायर 9 याचिकाएं
स्पेशल मैरिज एक्ट, फॉरेन मैरिज एक्ट और हिंदू मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट और केरल हाईकोर्ट में 9 याचिकाएं दायर हैं। याचिकाकर्ताओं के वकील ने बेंच को केरल हाईकोर्ट में दिए गए केंद्र के बयान के बारे में बताया कि वह सभी मामलों को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने के लिए कदम उठा रहा है।

याचिका में स्पेशल मैरिज एक्ट के सेक्शन 4 का जिक्र
याचिकाकर्ताओं के वकील ने बताया कि यह मुद्दा समलैंगिक जोड़ों के ग्रेच्युटी, गोद लेने, सरोगेसी जैसे मूल अधिकारों को प्रभावित करता है। यहां तक ​​कि उन्हें ज्वाइंट अकाउंट खोलने में भी मुश्किल होती है। याचिका में कहा गया है कि स्पेशल मैरिज एक्ट का सेक्शन 4 किसी भी दो व्यक्तियों को विवाह करने की इजाजत देता है, लेकिन सब-सेक्शन (C) की शर्तें सिर्फ पुरुषों और महिलाओं के लिए इसके आवेदन को प्रतिबंधित करती हैं। उनकी कोर्ट से मांग है कि कानून को जेंडर न्यूट्रल बनाया जाए।

भारत में शादी के लिए मौजूद कानून
भारत में धार्मिक आधार पर शादी की अनुमति देने वाले कानूनों के अलावा 2 स्पेशल कानून भी हैं:

हिंदू मैरिज एक्ट: इसके तहत हिंदू, बौद्ध, सिख, लिंगायत और जैन धर्म के कपल आपस में शादी कर सकते हैं

मुस्लिम मैरिज एक्ट: इस्लामी मान्यताओं के मुताबिक शादी की अनुमति

इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट: क्रिश्चियन कपल्स की शादी के लिए

स्पेशल मैरिज एक्ट: अलग-अलग धर्म के कपल्स की शादी के लिए

फॉरेन मैरिज एक्ट: विदेश में रहने वाले भारतीयों की शादी के लिए

हिंदू मैरिज एक्ट में समलैंगिक शादियों को शामिल करने का होता है विरोध

2020 में अभिजीत अय्यर-मित्रा ने दिल्ली हाईकोर्ट में सेम सेक्स मैरिज की मांग के लिए याचिका दायर की थी। अभिजीत ने अपनी याचिका में दावा किया था कि हिंदू मैरिज एक्ट में हेट्रोसेक्शुअल या होमोसेक्शुअल मैरिज का जिक्र नहीं है और कानून में सिर्फ दो हिंदुओं के शादी करने की बात लिखी गई है।

हालांकि, हिंदू मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक शादी को मान्यता देने के खिलाफ पहले से ही कई याचिकाएं अदालतों में दायर हैं। विरोध करने वालों का दावा है कि हिंदू धर्म में शादी स्त्री और पुरुष ही कर सकते हैं।

‘सेम सेक्स मैरिज को कानूनी दर्जा न देना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन’
अभिजीत ने याचिका में कहा था कि सेम सेक्स मैरिज को अनुमति न देना समानता के अधिकार, धार्मिक स्वंतत्रता के अधिकार और जीवन के अधिकार का उल्लंघन करना है। साथ ही समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा न मिलने से 2018 में नवतेज सिंह जोहार वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया केस में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन भी होता है।

इसी केस में फैसला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने डेढ़ सौ साल से ज्यादा पुराने समलैंगिकता विरोधी कानून को रद्द किया था।

कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस केएस पुट्टास्वामी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 24 अगस्त 2017 को निजता को मौलिक अधिकार माना था। अभिजीत की याचिका में कहा गया कि शादी भी ‘राइट टू प्राइवेसी’ के तहत आती है। हर व्यक्ति को अपना सेक्शुअल ओरिएंटेशन चुनने के साथ ही यह अधिकार भी है कि वह कहां रहे, किससे शादी करे। याचिका में समलैंगिक कपल्स को शादी की अनुमति न देना इसी ‘राइट टू प्राइवेसी’ के खिलाफ है।

LGBTQ एक्टिविस्ट्स का कहना है कि सेक्स के आधार पर सेम सेक्स मैरिज को कानूनी दर्जा न देना लैंगिक भेदभाव तो है ही, यह गरिमा के साथ जीने के अधिकार के भी विरुद्ध है। इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का भी उल्लंघन होता है।

सेम सेक्स मैरिज को कानूनी दर्जा देने की मांग उठाने वाली LGBTQ कम्यूनिटी को भी जानें…

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