25 दिसंबर को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की 161वीं जयंती मनाई जाएगी। BHU में इसकी तैयारियां चल रहीं हैं। आज आपको BHU को जमीन कैसे मिली, इस पर चर्चा की जा रही है। मालवीय जी ने करीब 110 साल पहले 1164 एकड़ जमीन करीब 6 लाख रुपए में खरीदी थी।
अभी तक यही भ्रम फैलाया जाता था कि आज 1300 एकड़ में फैले काशी हिंदू विश्वविद्यालय को जमीन दान में मिली थी। स्थापक महामना पंडित मदन मोहन मालवीय को काशी राज ने दान में यह जमीन ली थी। कहा जाता है कि काशी नरेश ने शर्त दी थी कि सूर्यास्त से पहले जितनी जमीन पैदल चलकर वह नाप लेंगे, उतना भूखंड उन्हें दे दिया जाएगा। विद्वानों को समझ नहीं आता कि आखिरकार, राजा ने किस लॉजिक से यह शर्त दी थी।
बहरहाल, उन मिथकों को तोड़ते हुए हम सच की ओर चलते हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) स्थित मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र में बने महामना अभिलेखागार में भू अधिग्रहण से जुड़े सारे रिकॉर्ड्स जुटाए गए हैं। आइए, आज आपको सच्चाई से रूबरू कराते हैं कि कैसे अर्द्धचंद्राकार साइज का इतना बड़ा भूखंड प्राप्त किया गया था।
900 घरों और 7 हजार पेड़ों का हुआ अधिग्रहण
महामना अभिलेखागार के संयोजक और इतिहास विभाग के डॉ. ध्रुव कुमार सिंह और उनकी टीम ने इन अमूल्य दस्तावेजों को खोजकर सबके सामने लाया है। पहली बार यह पता लगा कि मालवीय जी ने यहां के 900 घरों, 7 हजार पेड़ों और कुछ खेती वाली जमीन का अधिग्रहण कराया था। बिल्कुल सरकारी व्यवस्था और उस समय के रेट के साथ पूरी जमीन खरीदी गई थी। 17 नवंबर, 1916 को यूनाइटेड प्रॉविंस के सचिव एसपी ओ-डॉनेल ने एक आदेश दिया था।
यही वो कॉपी जिससे तमाम भ्रांतियां खत्म होती हैं। उन्होंने काशी के कलेक्टर से 8 गांवों का जिक्र किया है। इसमें कुल 1164 एकड़ 1 हेक्टेयर और 21 एयर जमीन का अधिग्रहण करने की बात थी। इन गांवों में सबसे ज्यादा जमीन नरिया से 295 एकड़, उसके बाद सीर गोवर्धनपुर से 214 एकड़, छित्तूपुर से 191 एकड़, सुसुवाहीं से 133 एकड़, धनविजईपुर से 123 एकड़, भगवानपुर से 78 एकड़ और खिजरही से 52 एकड़ जमीन अधिग्रहित करने का खाका खींचा गया था। कुल 1164 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया था।
इससे पहले रेलवे को दी गई थी जमीन
दस्तावेजों के अध्ययन के बाद यह सामने आया है कि कानूनी तौर पर किया गया यह अधिग्रहण का पहला मामला था। एक चिट्ठी में उत्तर प्रदेश तात्कालिक यूनाइटेड प्रॉविंस के एक बड़े अधिकारी लिखते हैं कि इससे पहले गांवों ने रेलवे को जमीन दी थी। जो लंबी पट्टी जैसी थी। मगर, इस मामले में तीन गांव पूरी तरह से खाली हो जाएंगे। 1200 एकड़ क्षेत्रफल की यह जमीन लगभग डेढ़ मील लंबी और एक मील चौड़ी है।
जमीन लिया, मगर मंदिर का मालिकाना हक आज भी गांव वालों के पास
जमीन अधिग्रहण के दौरान पंडित मदन मोहन मालवीय सभी छोटे-बड़े मंदिरों को जस का तस छोड़ दिया। आज इन मंदिरों की देखरेख स्थानीय लोग ही करते हैं। मालवीय जी ने जिनकी जमीनें ली थीं, पहले उन परिवारों को BHU में नौकरी दी। आज भी उनके परिवार के लोग BHU में किसी न किसी पद पर कार्यरत हैं।