उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद द्वारा संचालित गीता शोध संस्थान में ब्रज की लोक कला: कल आज और कल विषय पर परिचर्चा व संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कवि स्वर्गीय छैल बिहारी उपाध्याय की स्मृति में आयोजित संगोष्ठी में ब्रज के लोक गायन व लोक विधाओं के संरक्षण और संबर्धन पर गहन मंथन हुआ। कलाकारों ने गायन,मंचन व वेशभूषा की परंपरा में नयापन लाने व उसे सुधारने का संकल्प लिया।
ब्रज की कलाओं को बचाने और संरक्षण पर होना चाहिए कार्य
ब्रज संस्कृति विशेषज्ञ डॉ उमेश चंद्र शर्मा ने कहा कि ब्रज की लोक कलाओं को बचाने और उनके संरक्षण के गंभीर प्रयास होने चाहिए कला के साथ न्याय हो। कलाकार की मंचन प्रस्तुति में नयापन हो। ऐसा तभी होगा जब कलाकार मंच पर पूरी तैयारी के साथ पहुंचे। इससे आने वाले समय में ब्रज की मंचीय कलाओं को बचाया जा सकेगा।
ब्रज साहित्य मर्मज्ञ कपिल देव उपाध्याय ने कहा कि वृंदावन शुरू से ही रासलीला का केंद्र रहा है लेकिन अब यह परंपरा बहुत कम रह गई है। गीता शोध संस्थान वृंदावन की रासलीला को बचाने में अहम भूमिका निभाए। आज सपेरों के बीन, चित्रकला आदि कई तरह की विधाएं खत्म हो रही हैं। इन्हे बचाने की जरूरत है।
अभिभावक बच्चों को सिखाएं ब्रज भाषा
संगोष्ठी की अध्यक्षता ब्रज निधि प्रेमी जी महाराज ने की। उन्होंने कहा कि अभिभावक अपने बच्चों को ब्रजभाषा सिखाएं।
बच्चे-बच्चियां ब्रज के लोकगीत सीखें। दुर्भाग्य है कि ब्रज भाषा सिखाने वाला कोई भी शिक्षण संस्थान आगे नहीं आ रहा।संगोष्ठी के समन्वयक अरुण रावल ने आसरा जहां का मिले या न मिले” गीत प्रस्तुत किया।
गायक ओम प्रकाश डागुर ने कहा कि ढोला व आल्हा आज बचाने की जरूरत है। भारती शर्मा ने कलाकार द्वारा तैयारी के साथ मंच पर जाने की जरूरत पर बल दिया।
कलाकारों ने दी प्रस्तुति
सुप्रसिद्ध कलाकार डॉ सीमा मोरवाल ने कहा कि कला वही है जो समय के साथ प्रखर होती जाए। लोक कला बचाने को आज ब्रज के गीतों का संरक्षण आवश्यक है। कार्यक्रम में कलाकार होतीलाल ने नौटंकी शैली में गायन प्रस्तुत किया। अमर सिंह ने भजन, पूनम और पूजा ने रसिया सुनाएं।
उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद के पर्यावरण विशेषज्ञ मुकेश शर्मा समेत कई वक्ताओं ने ब्रज की लोककला पर व्याख्यान दिए।
संचालन उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद के ब्रज संस्कृति विशेषज्ञ डॉ उमेश चंद्र शर्मा ने किया। माल्यार्पण कर मंचस्थ अतिथियों का अभिनंदन व अतिथि परिचय “गीता शोध संस्थान” के समन्वयक चंद्र प्रताप सिंह सिकरवार ने किया। दीपक शर्मा आदि ने व्यवस्थाएं संभालीं।