बचपन से ही मुसीबतों से नहीं हारने वाली रिया ने जिम्मेदारियां संभालते हुए लड़ना सीखा। बदमाशों से लड़ते वक्त किसी भी तरह का डर का भाव नहीं दिखा। वे कहती हैं कि उस वक्त एक सेकेंड का समय व्यर्थ करना भी मुझे कठिनाई की ओर ले जाता। वे सीधा बदमाशों से भिड़ गईं और दादी के कुंडल छीन कर ही दम लिया।
लालकुर्ती निवासी रिया अग्रवाल की बहादुरी की आज हर कोई तारीफ कर रहा है। मजबूत जज्बे ने उनको बदमाशों से भिड़ने की हिम्मत दी। बचपन से ही रिया का जीवन संघर्ष भरा रहा है। 21 वर्ष की आयु में रिया घर की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। परिवार को संभालते हुए उन्होंने भविष्य तय कर लिया। सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर पुलिस अफसर बनने की ठानी है। उनका सपना पुलिस अफसर बन बदमाशों को वर्दी में सबक सिखाने का है।
घर की जिम्मेदारी कंधों पर ली
रिया अग्रवाल ने 11 वर्ष की उम्र में पिता विनायक अग्रवाल को खोया। हाल ही में बाबा ईश्वरचंद अग्रवाल की मृत्यु का संकट झेला। दादी संतोष अग्रवाल से उन्हें सबसे अधिक लगाव रहा। परिवार में बड़ी बहन की भूमिका निभाते हुए उन्होंने घर चलाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली।
बताया गया कि स्कूल में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी कर रिया पिछले एक साल से घर का खर्चा उठा रहीं हैं। माता विनीता अग्रवाल गृहिणी हैं और रिया की एकमात्र सहेली हैं।
दादी की लाडली है रिया
दादी संतोष अग्रवाल को पोती पर खूब फक्र है। रिया बचपन से ही उनकी लाडली रही है। वे कहती हैं कि बेटियां किसी से कम नहीं हैं। बेटियों को नारी शक्ति की मिसाल बन देश का नाम रोशन करना है। उन्होंने बताया कि कुंडल रिया के दादा ने मृत्यु से कुछ महीने पहले बनवाए थे। उनकी निशानी के रूप में उन्हें हमेशा पहनकर रखती हूं।