दिल्ली नगर निगम के चुनाव नतीजे आ चुके हैं। 15 साल से एमसीडी पर काबिज भारतीय जनता पार्टी चुनाव हार गई। अब एमसीडी पर भी आम आदमी पार्टी का कब्जा हो चुका है। पंजाब विधानसभा चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी की ये दूसरी बड़ी जीत है।
एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत ने सियासी हलचल तेज कर दी है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के लिए ये बड़ा झटका माना जा रहा है। सवाल उठ रहा है कि आखिर क्या कारण है कि जहां भी अरविंद केजरीवाल पैर जमा लेते हैं, वहां वह भाजपा-कांग्रेस को आसानी से मात दे देते हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद भाजपा का जादू नहीं चल पाता है? इस एमसीडी चुनाव ने राजनीतिक दलों को क्या संदेश दिया? इसके मायने क्या हैं? आइए समझते हैं…
प्रो. सिंह के अनुसार, ‘एमसीडी के चुनावों में भी अरविंद केजरीवाल का चेहरा काफी हद तक काम आया। 15 साल के एंटी इनकम्बेंसी से जूझ रही भाजपा के खिलाफ अरविंद केजरीवाल ने नई मुहिम चला दी। चुनाव के शुरुआत में आम आदमी पार्टी ने ‘एमसीडी में भी केजरीवाल’ का नारा दिया था, लेकिन बाद में इसे बदलकर ‘केजरीवाल की सरकार, केजरीवाल का पार्षद’ कर दिया। इसके जरिए वह यह कहना चाहते थे कि दिल्ली में पूरी तरह से अगर आप को ताकत मिल गई तो वह साफ-सफाई और लोगों के रोजमर्रा की जरूरतों का भी ख्याल रख सकेंगे। केजरीवाल अपनी इस प्लानिंग में कामयाब भी हुए।’
उन्होंने आगे बताया कि 15 साल से भाजपा एमसीडी पर काबिज थी। गंदगी, कूड़े के ढेर, निगम में भ्रष्टाचार समेत कई मुद्दों से भाजपा लगातार घिरती गई। आम आदमी पार्टी ने इसे आधार बना लिया। भाजपा इसका जवाब देने की बजाय आम आदमी पार्टी के ऊपर ही आरोप लगाती रही। शराब घोटाला, सत्येंद्र जैन के मसाज वाले वीडियो, ईडी की छापेमारी को भी आम आदमी पार्टी ने काफी भुनाया। केजरीवाल ने जनता को संदेश दिया कि आम आदमी पार्टी के नेताओं को जानबूझकर परेशान किया जा रहा है। ऐसे में एक तरफ भाजपा को लेकर लोगों में एंटी इनकम्बेंसी और दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल को लेकर जनता की सहानुभूति ने आप को काफी आगे बढ़ा दिया।