दिल्ली नगर निगम के चुनाव नतीजे आ चुके हैं। 15 साल से एमसीडी पर काबिज भारतीय जनता पार्टी चुनाव हार गई। अब एमसीडी पर भी आम आदमी पार्टी का कब्जा हो चुका है। पंजाब विधानसभा चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी की ये दूसरी बड़ी जीत है।
एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत ने सियासी हलचल तेज कर दी है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के लिए ये बड़ा झटका माना जा रहा है। सवाल उठ रहा है कि आखिर क्या कारण है कि जहां भी अरविंद केजरीवाल पैर जमा लेते हैं, वहां वह भाजपा-कांग्रेस को आसानी से मात दे देते हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद भाजपा का जादू नहीं चल पाता है? इस एमसीडी चुनाव ने राजनीतिक दलों को क्या संदेश दिया? इसके मायने क्या हैं? आइए समझते हैं…
पहले जानिए चुनाव के नतीजे क्या निकले?
दिल्ली नगर निगम में कुल 250 वार्ड हैं। इनपर चार दिसंबर को मतदान हुआ था। इस बार कुल 50.47 प्रतिशत लोग ही वोट डालने पहुंचे। चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो 250 में से 134 वार्डों में आम आदमी पार्टी की जीत हुई है। भारतीय जनता पार्टी को 104 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। कांग्रेस के खाते में नौ सीटें गईं। तीन सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार ने भी चुनाव में जीत हासिल की है। वोट शेयर के हिसाब से देखें तो एमसीडी में आम आदमी पार्टी को 42.20% वोट मिले। भारतीय जनता पार्टी के खाते में 39.02% वोट गए। कांग्रेस को 11.68% वोट मिले। 3.42 फीसदी लोगों ने निर्दलीय प्रत्याशियों को वोट किया।
दिल्ली नगर निगम में कुल 250 वार्ड हैं। इनपर चार दिसंबर को मतदान हुआ था। इस बार कुल 50.47 प्रतिशत लोग ही वोट डालने पहुंचे। चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो 250 में से 134 वार्डों में आम आदमी पार्टी की जीत हुई है। भारतीय जनता पार्टी को 104 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। कांग्रेस के खाते में नौ सीटें गईं। तीन सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार ने भी चुनाव में जीत हासिल की है। वोट शेयर के हिसाब से देखें तो एमसीडी में आम आदमी पार्टी को 42.20% वोट मिले। भारतीय जनता पार्टी के खाते में 39.02% वोट गए। कांग्रेस को 11.68% वोट मिले। 3.42 फीसदी लोगों ने निर्दलीय प्रत्याशियों को वोट किया।
भाजपा को मात देकर कैसे जीत गई आप?
इसे समझने के लिए हमने राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय कुमार सिंह से बात की। उन्होंने कहा, ‘पिछले 15 साल से नगर निगम में भाजपा की सत्ता थी। हमेशा से दिल्ली एमसीडी की लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच ही हुआ करती थी, लेकिन आठ साल पहले आम आदमी पार्टी की एंट्री ने दोनों पार्टियों की मुसीबत बढ़ा दी। साल के साथ- साथ आम आदमी पार्टी का रुतबा भी बढ़ता गया और अरविंद केजरीवाल एक ब्रांड के तौर पर दिल्ली में उभर गए। 2020 दिल्ली विधानसभा और इस साल हुए पंजाब विधानसभा चुनाव के नतीजों ने भी ये साबित कर दिया। भाजपा के खिलाफ अरविंद केजरीवाल विपक्ष का एक मजबूत चेहरा बन चुके हैं।’
इसे समझने के लिए हमने राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय कुमार सिंह से बात की। उन्होंने कहा, ‘पिछले 15 साल से नगर निगम में भाजपा की सत्ता थी। हमेशा से दिल्ली एमसीडी की लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच ही हुआ करती थी, लेकिन आठ साल पहले आम आदमी पार्टी की एंट्री ने दोनों पार्टियों की मुसीबत बढ़ा दी। साल के साथ- साथ आम आदमी पार्टी का रुतबा भी बढ़ता गया और अरविंद केजरीवाल एक ब्रांड के तौर पर दिल्ली में उभर गए। 2020 दिल्ली विधानसभा और इस साल हुए पंजाब विधानसभा चुनाव के नतीजों ने भी ये साबित कर दिया। भाजपा के खिलाफ अरविंद केजरीवाल विपक्ष का एक मजबूत चेहरा बन चुके हैं।’
प्रो. सिंह के अनुसार, ‘एमसीडी के चुनावों में भी अरविंद केजरीवाल का चेहरा काफी हद तक काम आया। 15 साल के एंटी इनकम्बेंसी से जूझ रही भाजपा के खिलाफ अरविंद केजरीवाल ने नई मुहिम चला दी। चुनाव के शुरुआत में आम आदमी पार्टी ने ‘एमसीडी में भी केजरीवाल’ का नारा दिया था, लेकिन बाद में इसे बदलकर ‘केजरीवाल की सरकार, केजरीवाल का पार्षद’ कर दिया। इसके जरिए वह यह कहना चाहते थे कि दिल्ली में पूरी तरह से अगर आप को ताकत मिल गई तो वह साफ-सफाई और लोगों के रोजमर्रा की जरूरतों का भी ख्याल रख सकेंगे। केजरीवाल अपनी इस प्लानिंग में कामयाब भी हुए।’
उन्होंने आगे बताया कि 15 साल से भाजपा एमसीडी पर काबिज थी। गंदगी, कूड़े के ढेर, निगम में भ्रष्टाचार समेत कई मुद्दों से भाजपा लगातार घिरती गई। आम आदमी पार्टी ने इसे आधार बना लिया। भाजपा इसका जवाब देने की बजाय आम आदमी पार्टी के ऊपर ही आरोप लगाती रही। शराब घोटाला, सत्येंद्र जैन के मसाज वाले वीडियो, ईडी की छापेमारी को भी आम आदमी पार्टी ने काफी भुनाया। केजरीवाल ने जनता को संदेश दिया कि आम आदमी पार्टी के नेताओं को जानबूझकर परेशान किया जा रहा है। ऐसे में एक तरफ भाजपा को लेकर लोगों में एंटी इनकम्बेंसी और दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल को लेकर जनता की सहानुभूति ने आप को काफी आगे बढ़ा दिया।
