हरड़ (हरीतकी) की मांग न मिलने से इसकी बिक्री में भारी कमी आई है। इससे इसके दामों में भी कमी आई है। पिछले दो साल से सिरमौर की हरड़ की मांग काफी घट चुकी है। पाकिस्तान के साथ व्यापार बंद है जबकि, अफगानिस्तान से भी इसकी मांग नहीं आई है। पहले कोरोना महामारी का असर इसकी बिक्री पर पड़ा। कई औषधीय गुणों से भरपूर हरड़ की मांग मुस्लिम देशों में सबसे ज्यादा रहती है। इसका असर जयपुर, दिल्ली, अमृतसर और होशियार जैसी हरड़ की बड़ी मंडियों पर भी पड़ा है। यहां से भी इसकी मांग नहीं मिल रही है।
इसके चलते कारोबारियों के पास हजारों क्विंटल स्टॉक जमा पड़ा है। सिरमौर के पच्छाद इलाके में सबसे ज्यादा हरड़ का उत्पादन होता है। सैनधार इलाके के जंगलों में भी हरड़ के पेड़ काफी संख्या में पाए जाते हैं। यह पौधा प्रकृति की देन है, जो जंगलों में खुद तैयार होता है। वन परिक्षेत्राधिकारी सराहां (पच्छाद) सतपाल शर्मा ने बताया कि जंगलों में काफी मात्रा में हरड़ का उत्पादन होता है। पिछले दो-तीन साल से किसी भी व्यापारी ने इसके परमिट के लिए आवेदन नहीं किया। सरकार की ओर से इसकी 500 रुपये प्रति क्विंटल परमिट फीस निर्धारित की गई है।
मांग न मिलने से गिरे दाम
हरड़ कारोबारी गुमान सिंह ठाकुर, हरियाणा के मोरनी विकास खंड के राजी टिकरी निवासी के नीटू, सदानंद और ओम प्रकाश ने बताया कि इन दिनों हरड़ पककर तैयार है, लेकिन इसकी मांग बेहद कम है। पाकिस्तान के साथ व्यापार बंद होने का असर हरड़ की मांग पर पड़ा है। इस समय किसानों से हरी हरड़ 20 रुपये और भूनी हरड़ 70-80 रुपये प्रति किलो के हिसाब से खरीदी जा रही है। जबकि, तीन-चार साल पहले भूनी हरड़ के दाम 500 रुपये तक थे।
इन दवाओं में होता है इस्तेमाल
हरड़ का आयुर्वेदिक नाम हरीतकी है। यह एक प्रसिद्ध जड़ी-बूटी है। ये त्रिफला में पाए जाने वाले तीन फलों में से एक है। यह पित्त के संतुलन को तो बनाए रखता ही है, साथ ही यह कफ और वात संतुलन को भी बनाकर रखता है। ये पाचन से जुड़ीं समस्याओं, गैस, अपच और कब्ज जैसी पेट की कई समस्याओं में कारगर माना गया है।