अधिवक्ताओं ने की ‘शोक सभा’
-पहाड़ी राज्य की अवधारणा व सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ मंशा पर उठाए सवाल
उत्तराखंड उच्च न्यायालय के नैनीताल से अन्यत्र स्थानांतरित किए जाने की सुगबुगाहट के बीच अचानक जिला मुख्यालय नैनीताल से एक न्यायिक अदालत हल्द्वानी स्थानांतरित हो गई है। शनिवार को जैसे ही यह जानकारी जिला बार नैनीताल के अधिवक्ताओं को लगी। उन्होंने इस मुद्दे पर अपना बैंड व कोट उतारकर विरोध जताया। कहा कि वह न्यायालय के बाहर जाने का ‘शोक’ मना रहे हैं।
संचालन करते हुए जिला बार के सचिव दीपक रुवाली ने कहा कि जिला न्यायालय से कुमाऊं मंडल के छह जनपदों की एकमात्र पीसी एक्ट की यानी विशेष न्यायाधीश-भ्रष्टाचार निवारण की अदालत का हल्द्वानी स्थानांतरण कर दिया गया है। जबकि विशेष न्यायाधीश-भ्रष्टाचार निवारण के रूप में भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई जिला न्यायाधीश की अदालत में होती है। लेकिन अब इन मामलों में द्वितीय अपर जिला जज के द्वारा सुना जाएगा।
इससे पहले ही एनएच-74 के करोड़ों रुपए के घोटाले के मामले को सुन रही और अब तक गवाहों की गवाही न करा पाई सरकार की भ्रष्टाचार के विरुद्ध रवैये पर भी प्रश्न खड़े होते हैं। इसके अलावा पहाड़ से न्यायालय को मैदानों में भेजना पर्वतीय राज्य की अवधारणा के भी खिलाफ है।
अन्य आक्रोशित अधिवक्ताओं ने कहा कि नैनीताल मुख्यालय से एक-एक कर धीरे-धीरे कर न्यायालयों को हल्द्वानी भेजा जा रहा है। इस कारण उन्हें शोक सभा आयोजित करने को बाध्य होना पड़ा है। कहा कि यदि इसी तरह नैनीताल से न्यायालयों का स्थानांतरण मैदान में किया जाता रहा तो पहाड़ी राज्य के विकास की मूल अवधारणा कभी सफल नही हो पायेगी व यह पहाड़ पर चोट करने सरीखा होगा।
इस मामले में अधिवक्ताओं ने प्रदेश के राज्यपाल सहित मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री को भी पत्र लिखा है। कहा कि आने वाली 19 अक्टूबर को जिला बार द्वारा एक बड़ी बैठक आयोजित की गयी है, जिसमें सभी अधिवक्ताओं से राय लेकर आगे कठोर कदम उठाया जायेगा।
इस दौरान जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष नीरज साह, वरिष्ठ उपाध्यक्ष संजय सुयाल, मनीष मोहन जोशी, ज्योति प्रकाश, अरुण बिष्ट, राजेन्द्र पाठक, मनीष कांडपाल, उमेश कांडपाल, किरन आर्य, राजेश त्रिपाठी, गंगा सिंह बोरा, कविता जोशी, जया आर्य, अलीजा अली, सरिता बिष्ट व गौतम कुमार आदि अधिवक्ता मौजूद रहे।