समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य मुलायम सिंह यादव को ‘नेताजी’ बनाने में गाजीपुर की बड़ी भूमिका रही। गाजीपुर में सीखे राजनीतिक दांव-पेच के जरिए पूर्व सीएम मुलायम सिंह ने पूर्वांचल से लेकर देश भर में अपनी अलग पहचान बनाई। पूर्वांचल के गांधी नाम से प्रसिद्ध इशोपुर निवासी रामकरन दादा को राजनीतिक गुरू माना और उनकी सलाह पर बड़े फैसले लिए। पूर्वांचल में लोग ‘नेता जी’ को ‘दादा’ का ‘भक्त’ कहते थे। पूर्व रक्षामंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव का गाजीपुर से से अटूट रिश्ता रहा है। रामकरन दादा के करीबी रहे मुलायम सिंह ने उनके पारिवारिक सदस्य की भूमिका में रहे। गाजीपुर में मुलायम का आना और रामकरन दादा के नेतृत्व में ही रहता था। उनके परिवार में हर मांगलिक कार्यक्रम में इशोपुर जरूर आते रहे है। पूर्व एमएलसी रामकरन दादा के पुत्र और पुत्री की शादी में शामिल होकर पारिवारिक दायित्वों को बखूबी निर्वहन किया था। मुलायम सिंह सहकारिता मंत्री, केंद्रीय रक्षा मंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहते हुए करीब दस बार से अधिक इशोपुर गांव आना हुआ था। रामकरन डिग्री कालेज इशोपुर का उद्घाटन करने वर्ष 2007 को मुलायम सिंह आखिरी बार इशोपुर आये थे। मुलायम सिंह जी हमेशा रामकरन दादा को अपने राजनीतिक गुरू के रूप में सम्मान देते रहे और अपने मुख्यमंत्री काल में भी उनके सुझाव को अपने कार्यशैली में अपनाते रहे। पूर्व एमएलसी और रामकरन दादा के पुत्र डॉ विजय यादव की माने तो 1 दिसंबर 2012 को पिता के जाने के बाद हमारे पारिवारिक अभिभावक की भूमिका निभाई। अंतिम दौर तक सुख दुख पूछा और हर संभव मदद भी की।
कैलाश यादव और कालीचरण भी रहे करीबी: गाजीपुर में पूर्व मंत्री कैलाश यादव और कालीचरण यादव को मुलायम सिंह के चुनिंदा सिपाहसालारों में माना जाता था। राजनीति के सितारों को रोशन करने में मुलायम सिंह यादव की बड़ी भूमिका थी। कई बार विधायक बने कैलाश यादव को दो बार सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया और इससे पहले पूर्वमंत्री स्वर्गीय कालीचरण यादव भी मुलायम सिंह के करीबी रहे। जिले में आगमन पर मुलायम सिंह इन नेताओं के साथ ही समीक्षा करते थे और जिले के हर कार्यकर्ता का फीडबैक लेते थे।