नाम मुलायम सिंह यादव। जिंदगी और सियासत का मूलमंत्र संघर्ष। सियासी सफर में कई ऐसे पड़ाव आए जब वे समझौता कर सफलता के नए रास्ते तलाश सकते थे, खलनायक का तमगा पाने की जगह नायक की भूमिका चुन सकते थे… मगर रास्ता चुना तो संघर्ष का। कई ऐसी घटनाएं हैं, फैसले हैं, जिनके जिक्र के बिना न तो मुलायम को समझा जा सकता है और न ही देश-प्रदेश में हुए सियासी बदलाव को और न ही कांग्रेस के पतन व भाजपा के उभार को। एक नहीं, अनेक ऐसे प्रसंग हैं जो उनकी दृढ़ता और जुझारूपन का प्रमाण हैं।
सियासत का अयोध्या कांड… ‘मुल्ला’ बनकर हुए मजबूत
बात 1990 के दशक की है। विश्व हिंदू परिषद के श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के खिलाफ प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के कड़े तेवरों और अयोध्या में किसी परिंदा को भी पर न मारने देने की घोषणा तो दूसरी तरफ विहिप एवं श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के हर हाल में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए अयोध्या पहुंचने के आह्वान तथा कारसेवा करने की घोषणा ने माहौल को तनावपूर्ण बना दिया था। पूरे प्रदेश में कर्फ्यू और बड़े पैमाने पर कारसेवकों की गिरफ्तारियां। बावजूद इसके हजारों कारसेवकों की हर हाल में श्रीराम जन्मभूमि पहुंचने की जिद में अयोध्या पहुंच तो गए पर, सुरक्षा बलों से संघर्ष के बीच की गई फायरिंग से कई की मौत हो गई ।
जिस दांव से कांग्रेस कहीं की न रही
बोफोर्स तोप एवं पनडुब्बी खरीद घोटालों के विरोध में चल रहे आंदोलन से नायक बनकर उभरे मुलायम को इस घटना ने ज्यादातर हिंदुओं की नजर में खलनायक बना दिया । सुरक्षा बलों के गोली चलाने और कारसेवकों की मौत से नाराज तमाम लोगों ने मुलायम के नाम के आगे मुल्ला जोड़ दिया। उन्हें हिंदुओं का विरोधी और मुसलमानों का हितैषी बताया जाने लगा । पर, मुलायम ने चतुराई से इन आलोचनाओं को भी अपना वोट बैंक मजबूत करने का राजनीतिक हथियार बना डाला। वरिष्ठ पत्रकार वीरेन्द्र भट्ट कहते हैं कि इस घटना से देश की सियासत में हुई वोटों की नई गोलबंदी ने सिर्फ भाजपा को ही मजबूत नहीं किया बल्कि नाम के आगे जुड़े मुल्ला शब्द ने मुलायम को भी मुसलमानों के बीच मजबूत कर दिया। उन्हें मुसलमानों का खुलेआम महबूब नेता बताया जाने लगा । उधर, कारसेवकों पर गोली चलाने के विरोध में भाजपा ने मुलायम सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो हिंदुओं की नाराजगी की अनदेखी करते हुए कांग्रेस ने उस सरकरा जिस तरह समर्थन दिया उसने हिंदुओं के बड़े वर्ग को उससे नाराज कर दिया । शिलान्यास को अनुमति से लेकर अयोध्या आंदोलन के अन्य घटनाक्त्रस्म पर कांग्रेस की तत्कालीन केंद्र एवं मुलायम से पहले प्रदेश की राज्य सरकार के एक कदम आगे और दो कदम पीछे की नीति से मुसलमान तो पहले ही उससे नाराज थे । कांग्रेस से हिंदू और मुसलमान दोनों छिटक गए । मुलायम ने फिर एक दांव चला और कुछ ही महीने बाद अचानक एक दिन अपनी सरकार का त्यागपत्र देकर कांग्रेस को एक और झटका दे दिया । जिस कारण अयोध्या आंदोलन का घटनाक्त्रस्म प्रदेश की सियासत का टर्निंग प्वाइंट बन गया और मुलायम प्रदेश की राजनीति के अहम किरदार बन गए । यादव जातीय आधार पर मुलायम से जुड़े तो मुसलमानों की लामबंदी ने %नेता जी% को किसी दूसरे नेता के नेतृत्व वाली पार्टी में रहकर सांसद, विधायक बनने के बजाय समाजवादी पार्टी बनाने का रास्ता दिखा दिया । नतीजा कांग्रेस सिफर पर, समाजवादी पार्टी शिखर पर।
अकेला चना भी फोड़ सकता है भाड़
स्टेट गेस्ट हाउस कांड
बसपा को ला दिया भाजपा के नजदीक
घटना के प्रत्यक्षदर्शी अमित पुरी बताते हैं कि मायावती ने खुद को कमरे में बंद कर लिया । सपा कार्यकर्ताओं ने उस कमरे का दरवाजे का भी तोड़ने की कोशिश की । भीड़ के कुछ लोग गैस सिलेंडर भी लिए थे । पुलिस मूकदर्शक बनी थी । भाजपा के वरिष्ठ नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी तभी स्टेट गेस्ट हाउस पहुंचे और उन्होंने भीड़ को ललकारते हुए मायावती को बचाया । उधर, भाजपा ने राजभवन के अंदर भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष कलराज मिश्र के नेतृत्व में धरना शुरू हो गया।
इसलिए है यह घटना अहम
यहीं से बसपा और भाजपा के गठबंधन की शुरुआत हुई । मायावती पहली बार भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बनीं । मुलायम सिंह को लेकर इस घटना का जिक्र इसलिए भी ज्यादा प्रासंगिक है क्योंकि इस कांड के चलते ही मुलायम और कांशीराम का पिछड़ों व दलितों के साथ मुस्लिम वोटों को जोड़कर सत्ता पर कब्जा करने का फारमूला भी बिखर गया और इस कांड ने पलट दी यूपी की सियासी बाजी ।
रामपुर तिराहा कांड और हल्ला बोल
नेता जी के दांव से कांग्रेस फिर बेहाल
प्रदेश के दो प्रमुख हिंदी अखबारों में इस घटना की रिपोर्टिंग से नाराज सपा कार्यकर्ताओं ने %नेता जी% के आह्रावान पर इनके खिलाफ %हल्ला बोल% आंदोलन शुरू कर दिया । पर, मुलायम ने राजनीतिक कौशल से घटना का रुख कांग्रेस की ओर मोड़ दिया । उन्होंने केंद्र की तत्कालीन नरसिम्हाराव सरकार पर आरोप लगाया कि उसकी तरफ से प्रदेश सरकार को सूचना दी गई थी कि दो अक्टूबर को दिल्ली प्रदर्शन करने आ रहे लोगों के पास बड़ी संख्या में घातक हथियार हैं । इसलिए उन्हें किसी भी स्थिति में रोका जाए।
खत्म करा दी अंग्रेजी की अनिवार्यता
जब पुलिस कप्तान से भिड़ लखनऊ बंद कराया
इशारों से समझा देते थे मुलायम
विवादों से परहेज न विरोधियों से …
भाजपा नेताओं को दे दिया राज्य अतिथि का दर्जा
बात 2006 की है । लखनऊ में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक थी । प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सरकार ने 60 से ज्यादा भाजपा नेताओं को राज्य अतिथि का दर्जा देकर सियासी गलियारों में नई चर्चा छेड़ दी । कारण, राज्य अतिथि का दर्जा पाने वालों में कई नियमानुसार इस श्रेणी में नहीं आते थे । इसी तरह जब उन्होंने अपनी सरकार में भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं तथा पूर्व मंत्रियों के बंगलों को बरकरार रखा तो भी भाजपा को सफाई देते नहीं बना था ।
यूं ही नहीं थे धरती पुत्र
विदेशी नागरिकता के जिस मुद्दे को उठाकर मुलायम सिंह अर्थात नेता जी ने सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने की राह में रोड़ा खड़ा किया उन्हीं सोनिया के नेतृत्व वाली कांग्रेस को न्यूकिलयर डील पर समर्थन देकर उसकी सरकार भी बचाई । यही वह कारण थे जिनके कारण लोगों ने उन्हें नेता जी या धरती पुत्र नाम दिया था ।
विरोध जताने गए भाजपा नेताओं को रसगुल्ला
फूलन से अंबानी तक रिश्तों पर गुरेज न हिचक
बचपन की चवन्नी की टीस ने खत्म करा दी चुंगी
ये फैसले भी बने यादगार
नकल विरोधी कानून किया खत्म
एक बार जो मिला वह उनका और वह उसके हो गए
मुलायम परिश्रमपूर्वक साधारण से असाधारण नेता बने, लेकिन लोकव्यवहार में हमेशा साधारण ही बने रहे। अकेले दम पर पार्टी बनाई। कई बार मुख्यमंत्री रहे। रक्षा मंत्री रहे, लेकिन यारी-दोस्ती और मित्रता में अपने-पराए में भेद नहीं किया। विपक्ष में भी जिससे दोस्ती हुई, उससे आजीवन निभाया। यारों के यार थे मुलायम सिंह। उनकी प्रीति और राजनीति दोनों में आक्रामकता थी। निजी जीवन में प्रेम और सद्भाव की प्रीतिपूर्ण आक्रामकता और राजनीति में विरोधी पक्ष पर प्रहार।
मैं विधान सभा (1985) का सदस्य था। मैंने यूपी में कृषि की बदहाली पर सवाल उठाया। सत्ताधारी कांग्रेस ने प्रश्नोत्तर में टालू रवैया अपनाया तो मुलायम ने हस्तक्षेप किया। विषय की महत्ता बताई। कांग्रेस पर आक्रामक हुए। उनके हस्तक्षेप से सार्थक बहस हुई। मुझसे कहा गया कि ऐसे गंभीर विषय पर पहले परामर्श ठीक रहता है। वे विधानसभा के नए सदस्यों का हौसला बढ़ाते थे। वे आक्रामक विपक्षी नेता थे। नारायण दत्त तिवारी विनम्र मुख्यमंत्री थे। मुलायम उनका अतिरिक्त आदर करते थे। उन्होंने तिवारीजी के अंतिम दिनों तक उनका साथ दिया। एक बार मुख्यमंत्री मुलायम सचिवालय एनेक्सी से कार में बैठे निकल रहे थे। मैं पैदल एनेक्सी में प्रवेश कर रहा था। उन्होंने कार रोकी, उतरे। मुझे जुकाम था, खांसी भी थी। बोले, ‘अपना इलाज किसी बड़े अस्पताल में कराओ। धन की चिंता न करो। उसका बंदोबस्त हो जाएगा’। मैंने कहा- मैं बीमार नहीं हूं, केवल सर्दी जुकाम ही है। वे कार में बैठे और चले गए। मैं उनकी शैली और व्यवहार पर लगातार सोचता रहा। ऐसी घटनाएं बहुत सारे मित्रों के जेहन में भी हैं। मुलायम का निधन संघर्षशील राजनीति की अपूरणीय क्षति है। -हृदय नारायण दीक्षित, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष