Search
Close this search box.

नेताजी, संघर्ष और दांव..इनका जिक्र ही मुलायम होना है; संघर्ष से निखरते गए नेताजी

Share:

नाम मुलायम सिंह यादव। जिंदगी और सियासत का मूलमंत्र संघर्ष। सियासी सफर में कई ऐसे पड़ाव आए जब वे समझौता कर सफलता के नए रास्ते तलाश सकते थे, खलनायक का तमगा पाने की जगह नायक की भूमिका चुन सकते थे… मगर रास्ता चुना तो संघर्ष का। कई ऐसी घटनाएं हैं, फैसले हैं, जिनके जिक्र के बिना न तो मुलायम को समझा जा सकता है और न ही देश-प्रदेश में हुए सियासी बदलाव को और न ही कांग्रेस के पतन व भाजपा के उभार को। एक नहीं, अनेक ऐसे प्रसंग हैं जो उनकी दृढ़ता और जुझारूपन का प्रमाण हैं।

सियासत का अयोध्या कांड… ‘मुल्ला’ बनकर हुए मजबूत
बात 1990 के दशक की है।  विश्व हिंदू परिषद के श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के खिलाफ प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के कड़े तेवरों  और अयोध्या में किसी परिंदा को भी पर न मारने देने की घोषणा तो दूसरी तरफ विहिप एवं श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के हर हाल में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए अयोध्या पहुंचने के आह्वान तथा कारसेवा करने की घोषणा ने माहौल को तनावपूर्ण बना दिया था। पूरे प्रदेश में कर्फ्यू और बड़े पैमाने पर कारसेवकों की गिरफ्तारियां। बावजूद इसके  हजारों कारसेवकों की हर हाल में श्रीराम जन्मभूमि पहुंचने की जिद में  अयोध्या पहुंच  तो गए पर, सुरक्षा बलों से संघर्ष के बीच की गई फायरिंग से कई की मौत हो गई ।

जिस दांव से कांग्रेस कहीं की न रही
बोफोर्स तोप एवं पनडुब्बी खरीद घोटालों के विरोध में चल रहे आंदोलन से नायक बनकर उभरे मुलायम को इस घटना ने ज्यादातर हिंदुओं की नजर में खलनायक बना दिया । सुरक्षा बलों के गोली चलाने और कारसेवकों की मौत से नाराज तमाम लोगों ने मुलायम के नाम के आगे मुल्ला जोड़ दिया। उन्हें हिंदुओं का विरोधी और मुसलमानों का हितैषी बताया जाने लगा । पर, मुलायम ने चतुराई से इन आलोचनाओं को भी अपना वोट बैंक मजबूत करने का राजनीतिक हथियार बना डाला। वरिष्ठ पत्रकार वीरेन्द्र भट्ट कहते हैं कि  इस घटना से देश की सियासत में हुई वोटों की नई गोलबंदी ने सिर्फ भाजपा को ही मजबूत नहीं किया बल्कि नाम के आगे जुड़े मुल्ला शब्द ने मुलायम को भी मुसलमानों के बीच मजबूत कर दिया। उन्हें मुसलमानों का खुलेआम महबूब नेता बताया जाने लगा । उधर,  कारसेवकों पर गोली चलाने के विरोध में  भाजपा ने मुलायम सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो हिंदुओं की नाराजगी की अनदेखी करते हुए  कांग्रेस ने उस सरकरा जिस तरह  समर्थन दिया उसने हिंदुओं के बड़े वर्ग को उससे नाराज कर दिया  । शिलान्यास को अनुमति से लेकर अयोध्या आंदोलन के अन्य घटनाक्त्रस्म पर कांग्रेस की तत्कालीन केंद्र एवं मुलायम से पहले प्रदेश की राज्य सरकार के एक कदम आगे और दो कदम पीछे की नीति से मुसलमान तो पहले ही उससे नाराज थे । कांग्रेस से हिंदू और मुसलमान दोनों छिटक गए । मुलायम ने फिर एक दांव चला और कुछ ही महीने बाद अचानक एक दिन अपनी सरकार का त्यागपत्र देकर कांग्रेस को एक और झटका दे दिया ।  जिस कारण अयोध्या आंदोलन का घटनाक्त्रस्म प्रदेश की सियासत का टर्निंग प्वाइंट बन गया और मुलायम प्रदेश की राजनीति के अहम किरदार बन गए । यादव जातीय आधार पर मुलायम से जुड़े तो मुसलमानों की लामबंदी ने %नेता जी%  को किसी दूसरे नेता के नेतृत्व वाली पार्टी में रहकर सांसद,  विधायक बनने के बजाय  समाजवादी पार्टी बनाने का रास्ता दिखा दिया । नतीजा कांग्रेस सिफर पर, समाजवादी पार्टी शिखर पर। 

अकेला चना भी फोड़ सकता है भाड़

मुलायम सिंह की यादें
आमतौर पर कहा जाता है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। मतलब वह कुछ नहीं कर सकता। पर, मुलायम ने अपने दांव से इस कहावत को भी झुठला दिया। मंदिर आंदोलन के विरोध मुस्लिम एवं यादवों की गोलबंदी  के फारमूले पर वोटों की गणित की ताकत से खुद को सियासी तौर पर प्रासंगिक बनाए रखने की रणनीति के तहत  मुलायम सिंह यादव ने 4 अक्टूबर 1992 को समाजवादी पार्टी नाम से नया दला बना डाला ।  प्रो. ए.पी. तिवारी कहते हैं कि  राजनीतिक इतिहास के विद्यार्थियों के लिए मुलायम लंबे समय तक प्रासंगिक बने रहेंगे । जिनके जीवन की घटनाएं और प्रसंग लोगों को समझाएंगे कि 90 के दशक में कैसे एक सामान्य परिवार के व्यक्ति ने अपने दांव से प्रदेश की सियासत का चरित्र ही बदल दिया और देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का बिस्तर समेट दिया । वह भी उस जिले इटावा से आए किसी शख्स ने जहां के जिलाधिकारी रहे ए.ओ. ह्रयूम ही कांग्रेस पार्टी के प्रमुख संस्थापकों में  थे।

स्टेट गेस्ट हाउस कांड

मुलायम सिंह की यादें
बात 1993 की है । अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाने से हिंदुओं के बड़े वर्ग के बीच खलनायक बनकर उभरे मुलायम सिंह यादव ने भाजपा के हिंदुओं को एकजुट करने के अभियान को असफल करने के लिए दलित-पिछड़ों का नया समीकरण बनाते हुए  बसपा से गठजोड़ किया ।  सपा-बसपा गठबंधन ने कांग्रेस से समर्थन ले भाजपा को सत्ता में आने से रोक दिया । मुलायम दूसरी बार मुख्यमंत्री बने । पर, एक साल बीतते-बीतते सपा और बसपा बीच रिश्ते बिग़ड़ने लगे। मायावती  बसपा की ताकतवर नेता मानी जाने लगी थी । मायावती और भाजपा के कुछ नेताओं के बीच बातचीत ने राजधानी के सियासी गलियारों की तपिश बढ़ा दी । तारीख 2 जून 1995 की दोपहर जब मायावती स्टेट गेस्ट हाउस में बसपा के कुछ नेताओं तथा विधायकों के साथ बैठक कर रही थीं । तभी चर्चा फैली कि बसपा,  सपा सरकार से समर्थन वापस लेने जा रही है । अचानक सपा के सैकड़ों कार्यकर्ताओं और कुछ नेता बसपा के खिलाफ नारेबाजी करते स्टेट गेस्ट हाउस पहुंच गए । इस भीड़ ने बसपा के नेताओं तथा वहां मौजूद विधायकों को मारना -पीटना बंधक बनाना शुरू कर दिया ।

बसपा को ला दिया भाजपा के नजदीक
घटना के प्रत्यक्षदर्शी अमित पुरी बताते हैं कि मायावती ने खुद को कमरे में बंद कर लिया । सपा कार्यकर्ताओं ने  उस कमरे का दरवाजे का भी तोड़ने की कोशिश की । भीड़ के कुछ लोग गैस सिलेंडर भी लिए थे । पुलिस मूकदर्शक बनी थी । भाजपा के वरिष्ठ नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी तभी  स्टेट गेस्ट हाउस पहुंचे और उन्होंने भीड़ को ललकारते हुए मायावती को बचाया । उधर, भाजपा ने राजभवन के अंदर भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष कलराज मिश्र के नेतृत्व में धरना शुरू हो गया।

इसलिए है यह  घटना अहम
यहीं से बसपा और भाजपा के गठबंधन की  शुरुआत हुई । मायावती पहली बार भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बनीं ।  मुलायम सिंह को लेकर इस घटना का जिक्र इसलिए भी ज्यादा प्रासंगिक है क्योंकि इस कांड के चलते ही मुलायम और कांशीराम का पिछड़ों  व दलितों के साथ मुस्लिम वोटों को जोड़कर सत्ता पर कब्जा करने का फारमूला भी बिखर गया और इस कांड ने पलट दी यूपी की सियासी बाजी ।

रामपुर तिराहा कांड और हल्ला बोल

मुलायम सिंह यादव
पत्रकारों और अखबार निकालने वाले घरानों से घनिष्ठ निजी रिश्ते रखने के लिए मशहूर मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक सफर में अयोध्या आंदोलन, स्टेट गेस्ट हाउस घटना की तरह ही रामपुर तिराहा कांड तथा उनका हल्ला बोल आह्वान भी काफी महत्व रखता है ।   ये घटनाएं बसपा के सपा सरकार से समर्थन वापस लेने अर्थात स्टेट गेस्ट हाउस वाली घटना से पहले की हैं। उन दिनों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा था । पर, गढ़वाल, मसूरी, नैनीताल जैसे पहाड़ी स्थानों के लोग पृथक उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर आंदोलन चला रहे थे। इस आंदोलन को लेकर तथा अलग राज्य की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर दो अक्टूबर 1994 को प्रदर्शन की घोषणा हुई । प्रदर्शन करने जा रहे आंदोलनकारियों की मुजफ्परनगर के रामपुर तिराहा पर पुलिस से भिड़ंत हो गई । पथराव में तत्कालीन जिलाधिकारी अंनत कुमार सिंह घायल हो गए थे। पुलिस ने जबरदस्त लाठीचार्ज एवं गोली चलाई जिससे कई आंदोलकारी मारे गए। पुलिस पर आंदोलनकारी महिलाओं से अभद्र व्यवहार तथा बलात्कार के भी आरोप लगे ।

नेता जी के दांव से कांग्रेस फिर बेहाल
प्रदेश के दो प्रमुख हिंदी अखबारों में इस घटना की रिपोर्टिंग से नाराज सपा कार्यकर्ताओं ने %नेता जी% के आह्रावान पर इनके खिलाफ %हल्ला बोल% आंदोलन शुरू कर दिया । पर, मुलायम ने राजनीतिक कौशल से घटना का रुख कांग्रेस की ओर मोड़ दिया । उन्होंने केंद्र की तत्कालीन नरसिम्हाराव सरकार पर आरोप लगाया कि  उसकी तरफ से प्रदेश सरकार को सूचना दी गई थी कि दो अक्टूबर को दिल्ली प्रदर्शन करने आ रहे लोगों के पास बड़ी संख्या में घातक हथियार हैं । इसलिए उन्हें  किसी भी स्थिति में रोका जाए।

खत्म करा दी अंग्रेजी की अनिवार्यता

भदोही में जनसभा को संबोधित करते क मुलायम सिंह यादव
मुलायम सिंह यादव का जब-जब उल्लेख होगा तो उनके हिंदी प्रेम का जिक्त्रस् किए बिना यह पूरा नहीं होगा । डॉ. राममनोहर लोहिया और रामसेवक यादव का यह शिष्य तथा डॉ. लोहिया की तरफ से चलाए गए अंग्रेजी हटाओ आंदोलन में सक्त्रिस्य भूमिका निभाने वाले मुलायम ने हमेशा हिंदी के  लिए जब भी मौका मिला उसे   भरपूर सम्मान दिलाने की कोशिश की। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर के सहयोगी रहे सूर्यकुमार सिंह बताते हैं कि मुलायम सिंह जब वह 1989 में पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने एक आदेश जारी कर दूसरे राज्यों से होने वाले पत्राचार को अनिवार्य रूप से हिंदी में करने की व्यवस्था लागू कराई । हिंदी के साथ अन्य भारतीय भाषाओं का सरकारी कामकाज में चलन बढ़ाने के लिए उन्होंने दूसरे राज्यों के पत्रों का जवाब हिंदी के साथ-साथ उनके राज्य की भाषा जैसे मलयालम, कन्नड़, उड़िया, तमिल, बंगाली, पंजाबी आदि में भी भेजने का आदेश दिया । गांव के युवाओं को राहत देने के लिए  उन्होंने उत्तर प्रदेश की पीसीएस परीक्षाओं में अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म कर दी । गहरी राजनीतिक समझ रखने वाले मुलायम ने हिंदी के साथ उर्दू को भी प्रदेश में बढ़ावा दिया।

जब पुलिस कप्तान से भिड़ लखनऊ बंद कराया

महराजगंज में मुलायम सिंह यादव। (File)
बात 88 की । बोफोर्स तोप और पनडुब्बी खरीद में घोटाला के आरोपों ने मिस्टर क्लीन के नाम से चर्चित राजीव गांधी की छवि धूमिल करनी शुरू कर दी  थी । कांग्रेस के विरुद्ध लगभग पूरा विपक्ष जिसमें भाजपा भी थी एकजुट था । संयुक्त विपक्ष ने राजीव गांधी सरकार के विरुद्ध भारत बंद का आह्वान किया था । बंद की अपील करने वाले जत्थे में उस समय शामिल भाजपा के नेता अमित पुरी बताते हैं कि लखनऊ बंद कराने की अपील करने के लिए चंद्रशेखर तथा मुलायम सिंह के नेतृत्व में विपक्ष के नेता बाजारों में निकले । बात लखनऊ के हजरतगंज की है । कांग्रेसी रुझान के कुछ लोगों ने एक जगह चंद्रशेखर पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी कर दी । %नेता जी% मुलायम सिंह जी ने उसे ऐसी झाड़ लगाई जो देखने वाली थी । हम लोगों के साथ रघुनंदन काका, डी.पी. बोरा, रविदास मेहरोत्रा आदि थे । तत्कालीन प्रदेश सरकार ने पूरी तैयारी की कि इस  बंद को फेल कर दिया जाए । मुलायम के घर के आसपास घेराबंदी कर दी गई । पर, जुझारू तेवर के मुलायम उस दिन घर पर ही नहीं थे । उन्होंने सबको बुलाया और अचानक हजरतगंज चौराहे पहुंच गए । मुलायम को सड़कों पर देखकर बंद समर्थकों का हौसला बढ़ गया । बाजार भी बंद हो गए और कुछ ही मिनटों में भीड़ नेता जी के पीछे हो ली । लखनऊ के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो वह उनसे सामान्य कार्यकर्ता की तरह भिड़ गए । अंतत: प्रशासन झुका । विपक्ष की सभा  हुई,   बंद सफल हुआ और मुलायम देश भर की खबरों में सुर्खियों में भी रहे ।

इशारों से समझा देते थे मुलायम

अमर सिंह, अमिताभ, जया, मुलायम सिंह
मुलायम सिंह यादव रिश्तों को किसी भी स्तर तक जाकर निभाते थे । इस काम में न  तो प्रोटोकॉल को आड़े आने देते थे और न वह इससे घबड़ाते थे कि लोग क्या कहेंगे । बात 2004 की है । लोकसभा चुनाव चल रहे थे । आचार संहिता लागू थी । प्रदेश के एक भाजपा नेता जो उस समय विधानसभा में विपक्ष के नेता भी थे । उनका जन्मदिन था । उनके कुछ उत्साही समर्थकों ने महानगर में गरीब महिलाओं को साड़ी वितरण का कार्यक्त्रस्म रखा । पर, इस कार्यक्त्रस्म में भगदड़ मच गई।  कई महिलाएं गिर पड़ी । कई कुचल गई । इसमें 22 महिलाओं की मृत्यु हो गई । तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष सहित कार्यक्रम के आयोजकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज  हो गया । सपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं की तरफ से इस घटना को मुद्दा बनाया जाने लगा । पर,उसी दिन शाम को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव तत्कालीन भाजपा नेता और नेता प्रतिपक्ष के घर उनसे मिलने पहुंच गए । सपा कार्यकर्ताओं और प्रशासन को भी इशारा मिल गया कि इस मामले में क्या रवैया अपनाना है । मुलायम ने इस मामले में पूछे गए सवाल पर कहा भी कि हादसा कभी और कहीं हो सकता है।

विवादों से परहेज न विरोधियों से …

मुलायम सिंह यादव, बेनी प्रसाद वर्मा व राज बब्बर (फाइल फोटो)
मुलायम सिंह यादव ऐसे बिरले नेता थे जिन्हें न तो विवादों से परहेज रहा और न विरोधियों से। उन्हें जो अच्छा लगा वही किया। उनकी  अगली चाल के बारे में बड़े-बड़े राजनीतिक विश्लेषकों के लिए भी अंदाज लगाना मुश्किल होता था ।  रामजन्मभूमि आंदोलन के दौरान जिस भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा विश्व हिंदू परिषद से उनका टकराव रहा उसके  प्रमुख लोगों से भी उनकी गहरी दोस्ती की एक नहीं अनेक कहानियां अतीत के पन्नों में दर्ज हैं । जिसे वह गाहे-बगाहे सांप्रदायिक बताते नहीं थकते थे । पर, वक्त आने पर यह कहने से भी गुरेज न करे, मोदी जी हम चाहते हैं कि आप फिर से देश के प्रधानमंत्री बने  । जो मंदिर आंदोलन के दौरान अशोक सिंहल, लालकृष्ण आडवाणी का विरोध भी करे और कार्यकर्ताओं को इनसे समर्पण तथा सेवा का भाव सीखने की नसीहत भी दे । जो  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सार्वजनिक रूप से घोर आलोचना करे । पर, उसी संगठन के प्रमुख किसी सरसंघचालक का अपने आवास पर स्वागत करने से भी गुरेज न करे ।

भाजपा नेताओं को दे दिया राज्य अतिथि का दर्जा
बात 2006 की है । लखनऊ में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक थी । प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सरकार ने 60 से ज्यादा भाजपा नेताओं को राज्य अतिथि का दर्जा देकर सियासी गलियारों में नई चर्चा छेड़ दी । कारण, राज्य अतिथि का दर्जा पाने वालों में कई नियमानुसार इस श्रेणी में नहीं आते थे । इसी तरह जब उन्होंने अपनी सरकार में भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं तथा पूर्व मंत्रियों के बंगलों को बरकरार रखा तो भी भाजपा  को सफाई देते  नहीं बना था ।

यूं ही नहीं थे धरती पुत्र
विदेशी नागरिकता के जिस मुद्दे को उठाकर मुलायम सिंह अर्थात नेता जी ने सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने की राह में रोड़ा खड़ा किया उन्हीं सोनिया के नेतृत्व वाली कांग्रेस को न्यूकिलयर डील पर समर्थन देकर उसकी सरकार  भी बचाई ।   यही वह कारण थे जिनके कारण लोगों ने उन्हें नेता जी या धरती पुत्र नाम दिया था ।

विरोध जताने गए भाजपा नेताओं को रसगुल्ला

मुलायम सिंह यादव (फाइल फोटो)
मुलायम सरकार की नीतियों के विरोध में भाजपा ने राजधानी प्रदर्शन किया । पुलिस ने भाजपा की रैली पर जबरदस्त लाठीचार्ज किया । कई बड़े नेता भी चोट खा गए । प्रदेश भाजपा के एक बड़े नेता के नेतृत्व में उच्चस्तरीय प्रतिनिधि मंडल तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव से विरोध दर्ज कराने गया । पहले तो मुलायम ने भाजपा नेताओं से घर पर मुलाकात की और ऊपर से उनकी इतनी आवभगत की । साथ ही प्रत्येक नेता को रसगुल्ला खिलाया । विरोध तो किनारे गया । पर, मुलायम की तरफ से भाजपा नेताओं के आवभगत की बाहर आईं तस्वीरों ने उल्टे भाजपा नेताओं को सफाई देने पर मजबूर कर दिया । व्यक्ति  शरीर पर वार से ठीक हो सकता था लेकिन  मुलायम वार से उबरना आसान नहीं था । वह अपने इसी वार से विरोधियों को असमंजस में डाल देते और उन्हें सफाई देते  नहीं बनता।

फूलन से अंबानी तक रिश्तों पर गुरेज न हिचक

मुलायम सिंह यादव इंदौर के पूर्व सांसद कल्याण जैन के यहां दाल-बाफले का लुत्फ उठाते हुए।
मुलायम सिंह यादव किस तरह रिश्तों को सबसे ऊपर रखते थे । इसके कई उदाहरण हैं । समाजवादी आंदोलन तथा पूंजीवाद विरोधी विचारों से प्रशिक्षित मुलायम ने जीवन भर व्यावहारिक राजनीति की । । संजय डालमिया और अनिल  अंबानी जैसे उद्योगपतियों से दोस्ती निभाई । इन्हें राज्यसभा भी भेजा । 1994 में चर्चा तो यह भी फैली थी कि 1993 में सपा और बसपा के बीच गठबंधन के लिए  मुलायम और कांशीराम की मुलाकात कराने में संजय डालमिया की भूमिका थी । डालमिया ने यह काम अपने करीबी दूसरे उद्योगपित जयंत मल्होत्रा के जरिये किया था । जो कांशीराम के नजदीक थे । मल्होत्रा बसपा तथा संजय डालमिया को सपा से राज्यसभा भेजा गया । सपा ने अपना समर्थन देकर एक और उद्योगपति अनिल अंबानी को भी राज्यसभा भेजा ।  अमर सिंह को लेकर तमाम विवाद हुए लेकिन मुलायम सिंह यादव ने उनसे रिश्ते निभाने में कोई हिचक नहीं दिखाई । यहां तक कि सपा से अलग होने के बाद जब वह फिर पार्टी में लौटे तो उन्हें फिर राज्यसभा भिजवाया । जिस दौर में लोग फूलन देवी से नजदीकी से घबराते थे क्योंकि चंबल में लंबे समय तक आतंक का पर्याय रही फूलन के  सिर पर 22 ठाकुरों सहित अन्य कई हत्याओं लूटपाट का आरोप भी था ।  राजनीतिक दल तो इसलिए भी कि कौन उन्हें साथ ले एक वर्ग का विरोध ले । पर, यह मुलायम सिंह ही थे  जिन्होंने सरकार बनने पर 1994  में न सिर्फ फूलन को जेल से बाहर निकाला बल्कि उन्हें दो बार पार्टी से टिकट देकर लोकसभा का चुनाव लड़ा सांसद बनाया । उन्होंने  यह भी कहा कि सरेंडर की शर्तों के अनुसार फूलन को 8 साल ही जेल में रखना था पर, 11 साल हो गए । वहीं समाज में गैर बराबरी का विरोध करने वाले  मुलायम ने अमर सिंह की दोस्ती से भी परहेज नहीं किया ।

बचपन की चवन्नी की टीस ने खत्म करा दी चुंगी

मुलायम सिंह यादव
मुलायम सिंह यादव पहली बार मंत्री  बने तो उन्होंने एक झटके में प्रदेश भर में चुंगी खत्म करने का फैसला कर दिया ।  दरअसल, चुंगी खत्म करने के फैसले के पीछे मुलायम से जुड़ा दिलचस्प किस्सा है । जो यह बताता है कि वे ऐसे नेता थे जो सत्ता में शीर्ष पर पहुंचने के बावजूद गांव, गरीबों तथा किसानों की उन दुष्वारियों को जीवन भर नहीं भूले। भाजपा नेता अमित पुरी बताते हैं कि नेता जी अर्थात मुलायम सिंह यादव के लंबे समय तक काम कर चुके भगवती सिंह ने एक बार उन्हें यह किस्सा सुनाया था । उन्होंने बताया था, मुलायम सिंह जी किशोर थे । एक दिन बैलगाड़ी पर धान लादकर शहर में एक व्यापारी के यहां बेचने जा रहे थे । जब वह शहर के नजदीक पहुंचे तो चुंगी चौकी पर रोक लिए गए । वहां के कर्मचारियों ने उनसे चुंगी शुल्क के रूप में चवन्नी (25 पैसे) की मांग की । मुलायम ने कहा, अभी पैसे नहीं है । व्यापारी के यहां धान बेचकर लौटते वक्त दे दूंगा । पर, कर्मचारी अड़ गया । मुलायम सिंह जी बैलगाड़ी वहीं छोड़कर व्यापारी के यहां गए और उससे चवन्नी उधार मांगी । लौटकर चुंगी चुकाई । धान लेकर व्यापारी के यहां पहुंचे । वहीं पर बैठे कई किसानों  तथा व्यापारियों के सामने उन्होंने ऐलान किया, मै जिस दिन मुख्यमंत्री बनूंगा तो इन चुंगियों को खत्म कर दूंगा । लोगों ने किशोर मुलायम की यह बात सुनी और हंस दिए । पर, मुलायम को यह बात याद रही । अगस्त 1990 में चुंगी समाप्त करने का आदेश जारी हो गया।

ये फैसले भी बने यादगार

मुलायम सिंह यादव और पीएम नरेंद्र मोदी
वर्ष 1991 में प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद  जब वह विपक्ष में थे  तब उन्होंने व्यापारियों से जुड़े मुद्दे उठाते हुए सरकार पर कई आरोप लगाए । साथ बिक्री कर वसूली की आड़ में हो रहे उत्पीड़न की बात कहते हुए इसे रोकने की मांग की । भाजपा के आरोपों का जवाब देते हुए उन्होंने घोषणा की कि वे सत्ता में लौटे तो बिक्री कर खत्म कर देंगे। उन्होंने बिक्री कर समाप्त कर उसकी जगह व्यापार कर की व्यवस्था लागू की । साथ ही आवश्यक वस्तु अधिनियम  पर रोक लगाते हुए इस कानून के तहत किसी के खिलाफ मुकदमा दर्ज न करने का आदेश दिया।

नकल विरोधी कानून किया खत्म

बेटे अखिलेश, भाईयों और रिश्तेदारों के साथ मुलायम सिंह यादव
याद दिला दें कि वर्ष 1991 में प्रदेश की सत्ता में आई कल्याण सिंह सरकार के तत्कालीन शिक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नकल को संज्ञेय अपराध घोषित कर दिया था । इसके तहत नकल करने या कराने वालों पर आपराधिक धाराओं में मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तारी का प्रावधान था । कई लोगों की गिरफ्तारी भी हुई । मुलायम सिंह इस कानून के विरोधी थे। उन्होंने  इसे राजनीतिक हथियार बनाया । घोषणा की कि वे सत्ता में लौटे तो इस कानून को खत्म कर देंगे । वर्ष 1993 में जब वह बसपा से गठबंधन के बाद सत्ता में लौटे तो उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के 20 मिनट के भीतर न सिर्फ इस कानून को खत्म कर दिया बल्कि भाजपा शासन में छात्र-छात्राओं पर दर्ज मुकदमे भी खत्म कर दिए । साथ ही नकल विरोधी कानून के तहत घेरे में आए छात्रों के दो साल परीक्षा में बैठने पर लगे प्रतिबंध को भी समाप्त कर दिया।

एक बार जो मिला वह उनका और वह उसके हो गए

मुलायम सिंह यादव और साधना गुप्ता
वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल बताते हैं कि आमतौर पर धारणा है कि  सत्ता से बाहर रहने पर नेता लोगों को जितना पहचानता है सत्ता में पहुंचने पर नहीं । पर, मुलायम सिंह जी ऐसे नहीं थे । उनके जिनसे रिश्ते रहे वह जीवन भर रहे । मिलने वाले पर कोई आरोप लगा । लोगों  ने उसे कुछ भी कहा लेकिन नेता के लिए वह हमेशा प्रिय रहा । उन्होंने बिना कहे अपने लोगों  का ख्याल रखा । वह दुख और कष्ट में लोगों को छोड़ देने वाले नेता नहीं थे । प्रदेश की नौकरशाही में तमाम ऐसे अफसर रहे जिनकी छवि पर सवाल थे। बावजूद इसके मुलायम सिंह ने कभी उनसे अपने संबंध नहीं छिपाए । मुख्यमंत्री हुए तो उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी  भी दी । यही वह खूबी थी जो मुलायम सिंह जी को दूसरे नेताओं से अलग करती थी । ऐसा ही संगठन में भी था । उन्होंने हर जिले में मिनी मुलायम सिंह खड़े कर रखे थे। अधिकारियों से लेकर पार्टी के लोगों को भी पता था कि उसके जिले के अमुक नेता का मतलब क्या है । लिहाजा अफसर भी उसकी सुनते थे और वह भी कार्यकर्ताओं की सुनकर पार्टी की जड़ों को मजबूती तथा विस्तार देता था ।

नेता असाधारण, व्यवहार साधारण
मुलायम परिश्रमपूर्वक साधारण से असाधारण नेता बने, लेकिन लोकव्यवहार में हमेशा साधारण ही बने रहे। अकेले दम पर पार्टी बनाई। कई बार मुख्यमंत्री रहे। रक्षा मंत्री रहे, लेकिन यारी-दोस्ती और मित्रता में अपने-पराए में भेद नहीं किया। विपक्ष में भी जिससे दोस्ती हुई, उससे आजीवन निभाया। यारों के यार थे मुलायम सिंह। उनकी प्रीति और राजनीति दोनों में आक्रामकता थी। निजी जीवन में प्रेम और सद्भाव की प्रीतिपूर्ण आक्रामकता और राजनीति में विरोधी पक्ष पर प्रहार।

मैं विधान सभा (1985) का सदस्य था। मैंने यूपी में कृषि की बदहाली पर सवाल उठाया। सत्ताधारी कांग्रेस ने प्रश्नोत्तर में टालू रवैया अपनाया तो मुलायम ने हस्तक्षेप किया। विषय की महत्ता बताई। कांग्रेस पर आक्रामक हुए। उनके हस्तक्षेप से सार्थक बहस हुई। मुझसे कहा गया कि ऐसे गंभीर विषय पर पहले परामर्श ठीक रहता है। वे विधानसभा के नए सदस्यों का हौसला बढ़ाते थे। वे आक्रामक विपक्षी नेता थे। नारायण दत्त तिवारी विनम्र मुख्यमंत्री थे। मुलायम उनका अतिरिक्त आदर करते थे। उन्होंने तिवारीजी के अंतिम दिनों तक उनका साथ दिया। एक बार मुख्यमंत्री मुलायम सचिवालय एनेक्सी से कार में बैठे निकल रहे थे। मैं पैदल एनेक्सी में प्रवेश कर रहा था। उन्होंने कार रोकी, उतरे। मुझे जुकाम था, खांसी भी थी। बोले, ‘अपना इलाज किसी बड़े अस्पताल में कराओ। धन की चिंता न करो। उसका बंदोबस्त हो जाएगा’। मैंने कहा- मैं बीमार नहीं हूं, केवल सर्दी जुकाम ही है। वे कार में बैठे और चले गए। मैं उनकी शैली और व्यवहार पर लगातार सोचता रहा। ऐसी घटनाएं बहुत सारे मित्रों के जेहन में भी हैं। मुलायम का निधन संघर्षशील राजनीति की अपूरणीय क्षति है। -हृदय नारायण दीक्षित, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष

 

Leave a Comment

voting poll

What does "money" mean to you?
  • Add your answer

latest news