राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह कार्यवाह डा. कृष्ण गोपाल ने कहा कि वेदों से हमें समानता, वसुधैव कुटुम्बकम की सीख मिली है। जिसकी महत्ता के कारण हम बहुभाषा-भाषी होने के बाद भी साथ-साथ चल रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह सब भारत में ही संभव है और इसका श्रेय हमारे वेदों को जाता है।
डा. कृष्ण गोपाल ने यह उक्त उद्गार श्री सूरत गिरि बंगला गिरिशानंदाश्रम में चल रहे त्रि दिवसीय क्षेत्रीय वैदिक सम्मेलन के दूसरे दिन बतौर मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए। उन्होंने वेदों को जटा, घन आदि के साथ कैसे पढ़ा जाए, इसकी विस्तृत व्याख्या की। वेदों के ज्ञान को हम जीवन में कैसे उतारें, इसके संबंध में भी कई उदाहरण देकर समझाया। उन्हाेंने कहा कि वेदों के द्वारा हमें समानता की सीख मिलती है। भारत में अनेक भाषा-भाषी हैं। इसके बावजूद हम समानता के साथ जी रहे हैं। यह सब वेदों के ज्ञान के द्वारा ही संभव हो रहा है। अन्य देशों में ऐसा नहीं है। वहां एक भाषी होने के बाद भी आपस में झगड़ा रहता है।
उन्होंने कहा कि हम वेदों के ज्ञान के साथ आगे बढ़ रहे हैं और इस दिशा में अभी और बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि बहुभाषी होने के साथ वेदों की संस्कृति को साथ लेकर जीवन में उतारें और समृद्ध राष्ट्र का निर्माण कर भारत को पुनः विश्व गुरु बनाने में अपना योगदान दें।
महर्षि वाल्मीकि विश्वविद्यालय के प्रो. रामेश्वर प्रसाद मिश्र ने वेदों की उपादेयता की विस्तृत व्याख्या की। महामण्डलेश्वर स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरि महाराज के पावन सानिध्य में कार्यक्रम की अध्यक्षता महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान उज्जैन के प्रो. विरूपाक्ष वि. जड्डीपाल ने व संचालन दामोदर परगाई ने किया। इस अवसर पर लाल बहादुर शास्त्री विवि के प्रो. डा. गोपाल शर्मा ने भी वेदों की महत्ता पर अपना व्याख्यान दिया।
कार्यक्रम में महामण्डलेश्वर आचार्य स्वामी विश्वेश्वरांनंद गिरि महाराज, वेदस्थली शोध संस्थान हरिद्वार के सचिव विनय वासिनकर, कोठारी स्वामी उमाकांतानंद गिरि, स्वामी कमलानंद गिरि, आचार्य शिवपूजन, मुम्बई भाजपा के उपाध्यक्ष पवन त्रिपाठी, राहुल पाण्डेय, बालकृष्ण त्रिपाठी आदि अनेक विद्वान उपस्थित रहे।