कच्चे तेल की कीमतों में आई भारी कमी का फायदा तेल कंपनियां ग्राहकों को देने से बच रही हैं। पिछले 3 माह में कच्चा तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार में 26 डॉलर सस्ता हुआ है, पर कंपनियों ने तेल के भाव को स्थिर रखा है। इसका असर ग्राहकों की जेब पर हो रहा है।
जानकारों का मानना है कि अगर इस अनुपात के आधार पर तेल कंपनियां कीमतों में कमी करतीं तो पेट्रोल और डीजल 11.70 रुपये के करीब सस्ता हो सकते थे। 6 जून को कच्चा तेल 120 डॉलर प्रति बैरल था जबकि अब यह 94 डॉलर प्रति बैरल पर है।
पेट्रोल और डीजल की कीमतें 7 अप्रैल से स्थिर हैं यानी इनमें न तो बढ़ोतरी हुई और न ही गिरावट हुई। विश्लेषकों का कहना है कि आगे कच्चे तेल की कीमतें 80-85 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं।
एक डॉलर घटने या बढ़ने से 45 पैसे का होता है असर
एसएमसी ग्लोबल के एक रिसर्च हेड के मुताबिक, कच्चा तेल अगर एक बैरल पर एक डॉलर कम या ज्यादा होता है तो देश की तेल कंपनियों को एक लीटर पर 45 पैसे का असर होता है। इस तरह से देखा जाए तो 26 डॉलर के आधार पर 11.70 रुपये पेट्रोल और डीजल की कीमतें घटनी चाहिए थी। देश की तीन प्रमुख तेल कंपनियों बीपीसीएल, एचपीसीएल और इंडियन ऑयल को जून तिमाही में 18,480 करोड़ रुपये का भारी-भरकम नुकसान हुआ था।
2021-22 में 40,000 करोड़ का मुनाफा
तीन प्रमुख कंपनियों ने वित्त वर्ष 2021-22 में कुल 40,554 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया था। इसमें 24,184 करोड़ का मुनाफा इंडियन ऑयल का था जबकि एचपीसीएल का 9,076 और बीपीसीएल का 7,294 करोड़ रुपये था। इस दौरान इंडियन ऑयल ने 7.36 लाख करोड़ और एचपीसीएल ने 3.72 लाख करोड़ रुपये का राजस्व हासिल किया जो उनके इतिहास में पहली बार हुआ है। उस समय भी 4 नवंबर, 2021 से 22 मार्च, 2022 के बीच में चुनावी मौसम के कारण तेल कंपनियों ने तेल की कीमतें स्थिर रखी थीं।
एक साल में 30 फीसदी बढ़ा पेट्रोल का भाव
इस साल अप्रैल से पेट्रोल और डीजल के दाम स्थिर होने से पहले देखें तो एक साल में पेट्रोल की कीमतें 30 फीसदी और डीजल की 25 फीसदी बढ़ी थीं। 29 मार्च, 2021 को पेट्रोल 90.78 रुपये लीटर और डीजल 81 रुपये लीटर था। इस साल मार्च में पेट्रोल 116 रुपये और डीजल 100 रुपये को पार कर गया था।
तेल कंपनियों को सरकार देगी 20 हजार करोड़
उधर, सरकार तेल कंपनियों को 20 हजार करोड़ रुपये देने पर विचार कर रही है। हालांकि, पेट्रोलियम मंत्रालय ने 28,000 करोड़ रुपये की मांग की थी, पर वित्त मंत्रालय इसे 20 हजार करोड़ के बारे में सोच रहा है। कंपनियों ने हाल के समय में चुनावी मौसम और महंगाई की दरों को कम करने के लिए तेल की कीमतों को नहीं बढ़ाई हैं। जबकि भाव को बढ़ाना या घटाना इन्हीं के अधिकार क्षेत्र में है।