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नो मेंस लैंड पर गांव ही नहीं बसे, फसल भी लहलहा रही, दोनों ओर से आबादी हो रही सघन

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भारत-नेपाल सीमा से सटे तुरुषुमा इलाका में नो मेंस लैंड पर हो रही खेती व वहां गड़ा पिलर।
भारत-नेपाल बॉर्डर पर श्रावस्ती जनपद की 62 किलोमीटर सीमा नो मेंस लैंड से मिलती है। इस सीमा पर कहीं अवैध रूप से गांव बस गए हैं तो कहीं फसल लहलहा रही है। पहले यहां कुछ झोपड़ियां थीं। अब वहां पूरी आबादी बसी है। इस मामले में सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के अफसर कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं।

भारत व नेपाल ने सीमा निर्धारण के लिए पांच-पांच गज (दोनों ओर 4.57 मीटर) जमीन छोड़ी थी। यही क्षेत्र नो मेंस लैंड के रूप में दोनों देशों को अलग करता है। सीमा तय करने के लिए छोड़ी गई जमीन का अस्तित्व खतरे में है। इस पर तेजी से भारत और नेपाल दोनों ओर से अवैध कब्जा होता जा रहा है।

सीमा क्षेत्र के दोनों ओर किसानों ने भी जमीन पर कब्जा कर लिया है और खेती करते हैं। कुछ स्थानों पर बाग बगीचे लगे हैं। इसमें ककरदरी, घुड़दौरिया, रोशनगढ़ व भारतीय सुइया क्षेत्र व नेपाल की ओर से हुल्लासपुरवा, शंकरनगर कोटिया, नेपाली घुड़दौरिया, बनिया गांव महतिनिया व नेपाली सुइया गांव के तरफ की स्थिति भी चिंताजनक है। इस अतिक्रमण को हटाने के लिए अभी तक जिले में कोई भी पहल नहीं हुई। सीमा सुरक्षा के लिए तैनात एसएसबी अपने समय में कोई भी कब्जा नहीं होने की बात कह कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति ले रही है। अगर कब्जे रोके नहीं गए तो जल्द ही भारत-नेपाल की सीमा रेखा ही समाप्त हो जाएगी।

राप्ती के कटान में समा गए पिलन
श्रावस्ती जिले को नेपाल से अलग करने के लिए सागर गांव के पास पिलर संख्या 645/1 जो दूसरी ओर गंभिरवा नाका जो पिलर संख्या 616 (65) मेन पिलर है। इसी के बीच श्रावस्ती जिले की लगभग 62 किलोमीटर की सीमा है। जिले की इस सीमा क्षेत्र पर नेपाल राज्य का जिला बांके व डांग है। इनसे जिले के भिनगा तहसील की 27 ग्राम की सीमा जुड़ती हैं। अभी हाल में राप्ती नदी के कटान के कारण मुख्य पिलर संख्या 643, 642 ए गायब हो गया था। इससे पहले भी राप्ती के कटान के कारण कुछ मुख्य व कुछ सब पिलर गायब हैं।

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