फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ को लेकर जितनी उम्मीदें इसे बनाने वालों को रही हैं, उससे ज्यादा कहीं उम्मीदें इस फिल्म से हिंदी सिनेमा के सुधी दर्शक कई साल से लगाए बैठे हैं। सुशांत सिंह राजपूत की आकस्मिक मौत के बाद से हिंदी सिनेमा के बहिष्कार का जो सिलसिला चला है, वह शायद इस फिल्म पर आकर ठिठके क्योंकि फिल्म को लेकर जो उत्सुकता दर्शकों में रही है, उसने फिल्म का पहला दिन शानदार कर दिया है। किसी फिल्म की ऐसी ओपनिंग हाल के दिनों में हिंदी सिनेमा ने नहीं देखी। संकेत साफ है कि फिल्म के सोशल मीडिया पर बहिष्कार का असर फिल्म की एडवांस बुकिंग और पहले दिन की बुकिंग पर नहीं पड़ा। फिल्म की ये बंपर ओपनिंग फिल्म को लेकर दर्शकों का उत्साह जाहिर करती है। शनिवार और रविवार का कलेक्शन बताएगा कि दर्शकों के इस उत्साह को बनाए रखने में फिल्म कितनी कामयाब हो सकी। अयान मुखर्जी की 11 साल पहले सोची फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ तीन हिस्सों में बनना प्रस्तावित है। इस कहानी का पहला हिस्सा अयान ने फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र: पार्ट वन शिवा’ के रूप में बनाया है। इसकी अगली कड़ी फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र: पार्ट टू देवा’ के रूप में बनाने घोषणा भी अयान ने फिल्म के क्लाइमेक्स में की है। जिस मोड़ पर आकर ये कहानी पहली फिल्म में रुकती है, वहां इसके दूसरे भाग को देखने की दिलचस्पी दर्शकों में बनी रहती है।
हिंदू धर्म की पौराणिक गाथाओं में ब्रह्मास्त्र वह अस्त्र है जो चलाए जाने के बाद कभी चूकता नहीं है। यहां त्रेता युग की महागाथा कहती रामचरित मानस पढ़ने वालों को याद आएगा दोहा ‘ब्रह्म अस्त्र तेहि सांधा कपि मन कीन्ह विचार। जौ न ब्रह्म सर मानऊं महिमा मिटइ अपार।।’ फिर द्वापर में हुए महाभारत के युद्ध में भी इसका प्रयोग हुआ है। ये एक ऐसा अस्त्र है जो अचूक है। इसका प्रयोग बार बार हो सकता है। और, जब भी इसका प्रयोग होता है तो यह खाली नहीं लौटता। कुछ खुद इसके सामने नतमस्तक होकर पाश में बंध जाते हैं और कुछ को निशाने से हटाकर ब्रह्मास्त्र की दिशा भी बदल दी जाती है। अयान मुखर्जी का ‘ब्रह्मास्त्र’ फिल्मी है। इसकी कथा वर्तमान, अतीत और भविष्य में चलती है। कहानी का सिरा अयान सनातन काल से पकड़ते हैं और ब्रह्मास्त्र की उत्पत्ति से लेकर इसके रखवालों का गुप्त समुदाय बनाते हुए वर्तमान में वहां आते हैं, जहां धर्म और विज्ञान का मेल होता है वैज्ञानिक मोहन के रूप में। अंधेरे की रानी मोहन से कुछ रहस्य पता करती है और इनकी खोज के बीच से निकलती है शिवा और इशा की प्रेम कहानी।
‘ब्रह्मास्त्र: पार्ट वन शिवा’ मैंने यहां अमेरिका के लॉस एंजेलिस शहर के पास वाल्ट डिज्नी के बसाए पहले डिज्नीलैंड के कस्बे के रूप में मशहूर शहर अनाहाइम में देखी। अनाहाइम में दुनिया भर के पर्यटकों को मेला लगना शुरू हो चुका है। शुक्रवार से यहां डी23 एक्सपो शुरू होने वाला है। हर दो साल पर होने वाले इस जलसे में हजारों की तादाद में पर्यटक आते हैं। और, इस साल इसकी खासियत ये भी है कि इसी के साथ डिज्नी की स्थापना के 100वे साल की शुरुआत हो रही है। ‘ब्रह्मास्त्र: पार्ट वन शिवा’ भी डिज्नी की शाखा स्टार स्टूडियोज की ही फिल्म है। यह संयोग भी निराला ही है। डिज्नी की अंतर्राष्ट्रीय रिलीज की लिस्ट में शामिल रही ‘ब्रह्मास्त्र: पार्ट वन शिवा’ को अमेरिका में देखना एक अलग एहसास इसलिए भी रहा क्योंकि यहां के सिनेमाघर में हिंदी सिनेमा के कुछ शौकीनों से भी मिलना हो गया।
रणबीर कपूर और आलिया भट्ट हिंदी सिनेमा के हाल के दिनों के सबसे चर्चित प्रेमी युगलों में से एक रहे हैं। दोनों के बीच प्रेम की जो लौ इस फिल्म की शूटिंग के दौरान जगी, इसकी झलक इस फिल्म में मिलती है। अगर आपने अमिताभ बच्चन-रेखा, धर्मेंद्र-हेमा मालिनी की फिल्में देखी हैं तो आपको कैमरे के सामने दोनों के चेहरे पर एक अलग नूर दिखता है। ये तेज प्रेम का है। रणबीर कपूर और आलिया के चेहरे पर भी ये नूर इस फिल्म में नजर आता है। और, संयोग एक ये भी है कि फिल्म के क्लाइमेक्स में प्रेम की शक्ति को किसी भी लौकिक या अलौकिक शक्ति से बड़ा बताने की व्याख्या भी है। प्रेम की इसी शक्ति को ‘ब्रह्मास्त्र: पार्ट टू देवा’ आगे बढ़ाने वाली है। ‘ब्रह्मास्त्र: पार्ट वन शिवा’ हिंदी सिनेमा का वह मौका है, जिसको अगर बहिष्कारों और घोर निंदकों से बचाया जा सका तो यह मार्वल सिनेमैटिक यूनिवर्स सरीखा एक अस्त्रवर्स हिंदी सिनेमा में रच सकती है। फिल्म पूरी तरह से खरी नहीं है लेकिन अगर मनोरंजन के हिसाब से देखें तो ये ‘पृथ्वीराज’ या ‘शमशेरा’ की तरह खोटी भी नहीं है।
‘ब्रह्मास्त्र: पार्ट वन शिवा’ एक तरह से देखा जाए तो सनातन संस्कृतियों और परंपराओं से भागती युवा पीढ़ी को वापस उनकी धुरी की तरफ लाने की अच्छी कोशिश है। आमतौर पर जब फिल्मों में पैर छूने की प्रक्रिया घुटनों से नीचे खिसकने में हांफ जाती है, यहां कहानी का नायक कम से कम दो बार अपने वरिष्ठों के चरण बाकायदा पैर के अंगूठों तक जाकर छूता है। फिल्म की उत्सवधर्मिता का अपना एक अलग रंग है। दशहरा से दीवाली के बीच के रंगों, प्रकाशों और उत्साहों की झलक फिल्म में दिखती है। फिल्म अपना एक अलग संसार भी मौजूदा संसार के बीच से धीरे धीरे रचने की कोशिश करती है। कहानी दिल्ली से वाराणसी से होती हुई हिमाचल प्रदेश जाती है और इस दौरान कार पर हुए एक हमले की पूरी सीक्वेंस काफी रोमांचकारी है। फिल्म में अमिताभ बच्चन का इस्तेमाल उनके आभामंडल के लिए किया गया है, जबकि मौनी रॉय अपने षडयंत्रों और हिंसक इरादों में असर छोड़ने में सफल रहती हैं।
एक फिल्म करते करते प्यार कर बैठे रणबीर कपूर और आलिया भट्ट को पहली बार परदे पर देखना असल जिंदगी के प्रेमियों को तो खूब भाने ही वाला है। फिल्म शाहरुख खान के प्रशंसकों के भी दिल को छू जाती है। अपनी दूरबीन से तारे निहारते वैज्ञानिक मोहन के घर में ब्रह्मास्त्र के पहले हिस्से की खोज में हुए हमले का पूरा सीक्वेंस दर्शकों को बांधकर रखता है। वानरास्त्र से नंदीअस्त्र तक आने की यात्रा में गति भी है और रोमांच भी। ‘ब्रह्मास्त्र: पार्ट वन शिवा’ धीमी पड़नी वहां से शुरू होती है जहां कहानी में एक ऐसा आश्रम आता है जिसके बाहर भी ‘आश्रम’ लिखा है। ऐसी गलतियां फिल्म में ढेर सारी है जिसमें दर्शकों को कुछ स्पष्ट सी बातें या तो नेपथ्य में चलती आवाज या फिर परदे पर कुछ न कुछ दिखाकर बताने की कोशिश की जाती हैं, जिसकी फिल्म में जरूरत है नहीं। सिनेमा में बहुत बताना भी बहुत अच्छा नहीं होता।
निर्देशक के तौर पर अयान मुखर्जी ने एक ऐसी फिल्म बनाने की कोशिश की है, जिसे हिंदी सिनेमा के दिग्गज भी इस दौर में बनाने की हिम्मत नहीं कर पाए। मूल पौराणिक कथाओं पर फिल्में खूब बनी हैं। लेकिन, पौराणिक परिदृश्यों में काल्पनिक कथाएं गढ़ने का ये एक अलग ही प्रयोग है। अयान मुखर्जी हिंदी में अपना नाम ‘अयन मुकर्जी’ लिखते हैं, अंग्रेजी में लिखे अपने नाम की वर्तनी के हिसाब से। फिल्म देखकर ये भी पता चलता है कि पौराणिक कथाओं, कॉमिक्स की दुनिया भी उनकी अंग्रेजी की ही रही है। फंतासी सिनेमा के संदर्भ बिंदु भी वह अंग्रेजी फिल्मों से ही लेते रहे हैं। फिल्म में उनकी कोशिशों, कहानी में उनका विश्वास और एक दुसाध्य कार्य को पूरा करके फिल्म को परदे तक पहुंचाने का उनका हौसला काबिले तारीफ है। लेकिन, अगर उन्हें इस फिल्म की दूसरी कड़ी बनानी है तो उन्हें अपनी टीम के कील कांटे दुरुस्त करने होंगे। अपनी शक्ति का भान होने पर शिवा का गाना तांडव स्तोत्र से कम नहीं होना चाहिए था, और ऐसा हिंदी गीत लिखने की कम से कम अमिताभ भट्टाचार्य में सामर्थ्य नहीं हैं। वह भी धीरे धीरे जावेद अख्तर हो चले हैं। उर्दू के कुल जमा 120 शब्दों में उनके सारे गाने हैं। फिल्म के संवाद भी कहानी के वजन को बढ़ाने में मदद नहीं करते हैं।
‘ब्रह्मास्त्र: पार्ट वन शिवा’ की कमजोर कड़ियां इसके संवाद के अलावा इसका संपादन भी है। फिल्म के शुरुआती हिस्से में रणबीर कपूर और उसके दोस्तों के बीच होने वाली बातचीत बहुत मुंबइया है। ऐसी हिंदी अब हिंदी भाषी दर्शकों को भी अच्छी नहीं लगती। फिल्म में शिवा की पृष्ठभूमि से फिल्म का भविष्य तय किया गया है लेकिन ईशा कौन है, उसका पृष्ठभूमि क्या है, इसके बारे में बस इतना पता चलता है कि वह अमीर है और उसका अमीर होना बनावटी नहीं है। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है लेकिन फिल्म का गीत संगीत फिल्म के कथ्य के हिसाब से काफी कमजोर है। फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र: पार्ट वन शिवा’ उन दर्शकों को खास पसंद आ सकती है जो मार्वल सिनेमैटिक यूनिवर्स जैसा कुछ हिंदी में देखने की ख्वाहिश अरसे से लिए रहे हैं। गड़बड़ियां इस फिल्म की वही हैं जो इन दिनों एमसीयू की फिल्मों में भी खूब दोहराई जा रही हैं।