उत्तराखंड भी हिमाचल जैसे राज्यों की तर्ज पर अपना कठोर भू-कानून लागू करने की तैयारी कर चुका है। इसी संदर्भ में भू-कानून को लेकर बनाई गई समिति ने मुख्यमंत्री को सोमवार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।
इस रिपोर्ट के मिलने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि वह इस संदर्भ में भू-कानून से संबंधित सभी पक्षों की राय लेकर प्रदेश कल्याण के लिए प्रभावकारी निर्णय लेंगे। उन्होंने बताया इसके लिए एक समिति बनाई गई थी जिसने अपनी आख्या उन्हें सौंप दी है। इस समिति ने भू कानून संबंधी व्यवस्थाओं में यह ध्यान रखा है कि भू कानून का प्रदेश में आने वाले उद्यमियों पर कोई असर न पड़े लेकिन अवैध रूप से खरीद का ध्यान रखा जाएगा।
इस भू कानून समिति के अध्यक्ष पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार हैं। सदस्य के रूप में सेवानिवृत्त आईएएस डीएस गर्ब्याल, अरुण कुमार ढौंडियाल और अजेन्द्र अजय को शामिल किया गया है। अजेन्द्र अजय ने ही उत्तराखंड के जनसांख्यिकीय घनत्व पर इस मामले में विशेष पहल की थी जबकि समिति के सदस्य सचिव के रूप में राजस्व सचिव आनंद वर्धन समिति में शामिल हैं।
उत्तराखंड में पहले से ही महज 53484 किलोमीटर भूभाग है, जिसमें 38 हजार वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है। उत्तराखंड की 90 प्रतिशत जनता कृषि पर निर्भर है। आंकड़े बताते हैं कि राज्य स्थापना के समय 7.8 चार लाख हेक्टेयर कृषि भूमि थी. जो घटकर 6.48 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि ही बची है। अब तक करीब 1.22 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि कम हो गई है जो चिंतनीय है। ऐसे में नये भूकानून की सख्त जरूरत है।
उत्तराखंड पहले से ही दो अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से जुड़ा हुआ है, यहां 71 फीसदी वनों के साथ 13.92 फीसदी मैदानी भूभाग है, तो 86 फीसद पर्वतीय भूभाग है। लगातार बढ़ती जनसंख्या और घटता कृषि क्षेत्र चिंता का विषय बना हुआ है। यही कारण है कि तमाम सामाजिक संगठनों तथा उत्तराखंड से जुड़े राजनीतिक दलों ने यहां सख्त भूकानून लागू करने की वकालत की। अब समिति की रिपोर्ट के बाद लोगों को उम्मीद बंधी है कि सरकार इस संदर्भ में कोई त्वरित निर्णय लेगी और आम आदमी के सपनों के अनुरूप उत्तराखंड बनाने की पहल करेंगे।