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छात्रसंघ चुनावों में हार पर दिव्या मदेरणा ने कसा तंज, गहलोत को भी याद दिलाया इतिहास

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दिव्या मदेरणा। फाइल फोटो

छात्रसंघ चुनावों में कांग्रेस की छात्र इकाई भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन की हार का पार्टी पर असर दिखने लगा है। छात्रनेता से लेकर दिग्गज नेता तक खामियां गिना रहे हैं। इस सूची में अब एक नाम विधायक दिव्या मदेरणा का भी जुड़ गया है। मदेरणा ने प्रदेश एनएसयूआई अध्यक्ष अभिषेक चौधरी को तो आड़े हाथों लिया ही है, साथ ही 98 और 100 की संख्या के सहारे सीएम अशोक गहलोत को भी कुछ संदेश भेजा है। अभिषेक के ट्वीट के जवाब में मदेरणा ने पोस्ट डाली है।

छात्रसंघ चुनावों में कांग्रेस का छात्र संगठन एनएसयूआई औंधे मुंह गिरा। करारी शिकस्त से एनएसयूआई उबर नहीं पाई है। इसका असर अब सोशल प्लेटफॉर्म्स पर दिखने लगा है। छात्रनेता से लेकर वरिष्ठ नेता तक अपनी राय बेबाकी से जाहिर कर रहे हैं। एक भी विश्वविद्यालय में जीत दर्ज नहीं कर पाने पर सचिन पायलट ने भी चिंता जताई। उन्होंने संगठन और सरकार को सोचने की आवश्यकता बताई। पायलट का कहना था कि एनएसयूआई अध्यक्ष अभिषेक चौधरी ने भीतरघात और जयचन्दों का जिक्र छेड़ दिया। उन्होंने ट्वीट कर लिखा कि छात्रसंघ चुनाव के परिणामों की पूर्ण जिम्मेदारी मैं लेता हूं, लेकिन एक बात कहना चाहूंगा कि भीतरघात का कोई समाधान नहीं है। विभीषण व जयचंदों का कोई समाधान नहीं है।

उनके इस पोस्ट का जवाब दिव्या मदेरणा ने दिया। मदेरणा ने तंज भरा ट्वीट किया। लिखा कि शून्य पर आउट होने को शानदार प्रदर्शन कहने वाले ये पहले और अंतिम व्यक्ति होंगे। साथ ही सवाल उठाया कि बताएं कि 2014 में एनएसयूआई के विभीषण और जयचंद कौन थे? एनएसयूआई के शून्य होने पर चर्चाओं का बाजार उफान पर है और हो भी क्यों नहीं, लेकिन इस मामले में संगठन को दोष नहीं दिया जा सकता क्योंकि यह जब अध्यक्ष बने थे तो जबरदस्त आपदा भी चल रही थी। खुद सरकार संकट में थी एनएसयूआई का अध्यक्ष कौन बने कौन नहीं बने उस समय इसमें किसी को लेश मात्र रुचि नहीं थी।

मदेरणा ने एनएसयूआई प्रदेश अध्यक्ष अभिषेक चौधरी पर तो निशाना साधा ही, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी नहीं छोड़ा। उन्हें इतिहास याद दिला दिया। वर्ष 1998 में बीजेपी की 33 सीटें आने और उसके बाद के हालात पर एक ट्वीट पर री-ट्वीट करते हुए लिखा कि हम 1998 के बाद फिर कभी 100 का आंकड़ा पार नहीं कर पाए। वर्ष 1998 के चुनाव में कांग्रेस ने दिव्या मदेरणा के दादा और तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष परसराम मदेरणा के नाम पर लड़ा था, लेकिन मुख्यमंत्री उस समय अशोक गहलोत को बना दिया गया था।

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