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मैंने फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ नहीं बनाई, बल्कि किसी शक्ति ने मुझे इस फिल्म के लिए चुना है

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ब्रह्मास्त्र के सेट पर रणबीर कपूर के साथ अयान मुखर्जी

हर गुजरते दिन के साथ निर्देशक अयान मुखर्जी की बेचैनी बढ़ती जा रही है। अपनी अगली फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ में वह सनातन संस्कृति को आज की पीढ़ी में प्रचारित करने का भगीरथ प्रयास कर रहे हैं। उनके करीबी मित्र रणबीर कपूर फिल्म में शिवा की भूमिका में हैं। अयान ने फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ को बनाने का सपना कोई 11 साल पहले देखा था। उनकी पिछली फिल्म ‘ये जवानी है दीवानी’ को रिलीज हुए भी नौ साल हो चुके हैं। बीते एक दशक से इस फिल्म को दिन रात जीते रहे अयान ने फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ की रिलीज से पहले ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल से ये एक्सक्लूसिव मुलाकात की।
ब्रह्मास्त्र के सेट पर नागार्जुन के साथ अयान मुखर्जी

अयान, आपने अपने जीवन के 10 वर्ष इस फिल्म को यहां तक लाने में लगाए हैं। हमें बताइए कि इस फिल्म का विचार आपके मन में पहली बार कब और कैसे आया?

हमारा परिवार शुरू से बहुत धार्मिक रहा है। देवी देवताओं से मेरा लगाव बचपन से है। तो एक तरफ मन में ये सब था और दूसरी तरफ मैं बड़ा हो रहा था हॉलीवुड की फंतासी फिल्में देखकर। उनकी तकनीक, उनकी विलक्षण कहानियां देखकर मैं हतप्रभ रह जाता। मेरा इरादा था कि भारतीय सिनेमा में भी कुछ ऐसा किया जाए जो पहले कभी न हुआ हो। लेकिन, मैं चाहता था कि इस फिल्म की बुनियाद भारतीय अध्यात्म होना चाहिए। मैं तो हैरान इस बात पर था कि ऐसा अब तक किसी ने किया क्यों नहीं? भारतीय जीवन दर्शन की जो गहराई है, वही मेरी फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ का मूल विचार है।

अयान मुखर्जी

और ये बात कोई 10 साल पहले की है?

सच कहें तो 11 साल पहले की। साल 2011 में पहली बार मुझे ‘ब्रह्मास्त्र’ अपनी कल्पनाओं में आकार लेती दिखाई दी। कुछ चित्र मेरी कल्पना से जागे। लेकिन यह विचार बहुत धुंधला सा था। मैं ‘हैरी पॉटर’ और ‘लॉर्ड ऑफ द रिंग्स’ जैसी फिल्मों से प्रेरित हो रहा था और तभी मेरे विचारों ने कागजों पर उतरना शुरू किया। मैं इसे अपना सौभाग्य मानता हूं कि भारतीय पौराणिक कथाओं को आज की पीढ़ी के हिसाब से बनाने का मुझे इस फिल्म में मौका मिला।

रणबीर कपूर

ब्रह्मास्त्र के बारे में विदित है कि ये एक बार चल जाए तो फिर खाली लौटकर नहीं आता। आपको इसकी शक्ति का भान रहा ये फिल्म बनाते समय?

ये उन दिनों की बात है जब मैं ‘ये जवानी है दीवानी’ बना रहा था। जैसे ही मेरे मन मे ये विचार आया, मैंने रणबीर कपूर के साथ इसे फोन पर साझा किया। मैं इतना उत्तेजित था इस विचार को लेकर कि मैंने रणबीर से कहा कि ये जो फिल्म हम बना रहे हैं, उसे बंद करते हैं और ये फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ शुरू करते हैं। शायद ये हमारे विचारों की शक्ति ही है जो इस फिल्म को पर्दे तक लेकर आई है। रणबीर ने मुझे तब शांत किया। हमने ‘ये जवानी है दीवानी’ बनाई। मैं मानता हूं कि इस फिल्म की कामयाबी ने ही मुझे फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ को बनाने का मौका दिया।

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रणबीर कपूर, अमिताभ बच्चन

बीते एक दशक में सिनेमा की तकनीक ने जो विकास किया है, उससे भी आपको अपने विचार को परदे पर उतारने में काफी मदद मिली होगी?

बिल्कुल सही कह रहे हैं आप। मैं सच कहूं तो इस फिल्म को दर्शनीय और आकर्षक बनाने के लिए मैं पूरी दुनिया में भटका हूं। जो तकनीक और जो दृश्य हमने इस फिल्म के लिए तैयार किए हैं, वे शायद ही अब तक किसी भारतीय फिल्म में देखे गए हों। हमारे यहां अभी सिनेमा की तकनीक उतनी विकसित नहीं है। हॉलीवुड में ये फिल्म शायद बहुत जल्दी बन जाती लेकिन यहां मेहनत बहुत करनी पड़ी।

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