वाराणसी में मां कूष्मांडा की तेजोमय छवि का भक्तों ने दर्शन किया। सात दिवसीय संगीतमय वार्षिक शृंगार का शुभारंभ डेढ़ साल पुरानी बनारसी कजरी से हुआ। कथक में जयपुर, बनारस और लखनऊ घराने का संयोजन नजर आया।
देवी भगवती की चतुर्थ स्वरूपा मां कूष्मांडा ने अपनी तेजोमय छवि से भक्तों को धन्य कर दिया। सात दिवसीय संगीतमय वार्षिक शृंगार का शुभारंभ डेढ़ साल पुरानी बनारसी कजरी से हुआ। कथक में जयपुर, बनारस और लखनऊ घराने का संयोजन नजर आया। शास्त्रीय सुर और सितार के तार की स्वर लहरियों ने संगीत निशा में सुर, लय और ताल की त्रिवेणी का संगम कराया।
बुधवार को दुर्गाकुंड स्थित अति प्राचीन दुर्गा मंदिर में संगीत महोत्सव की प्रथम निशा भक्तों संग संगीत रसिकों के लिए यादगार रही। डॉ. ममता मिश्रा ने कथक की शुरुआत नारायणी नमोस्तुते… से की। प्रस्तुति में डॉ. ममता मिश्रा ने शुंभ-निशुंभ और महिषासुर राक्षसों का वध करती, अपने भक्तों के कष्टों को हरतीं और उनका उद्धार करतीं देवी दुर्गा के विविध स्वरूपों को भावाभिव्यक्ति से हर किसी को मोह लिया। समापन राधा-कृष्ण के अलौकिक प्रेम पर भावाभिनय के समावेश से किया। तबले पर उनके पिता पं. रविनाथ मिश्र और पुत्र आराध्य प्रवीण ने संगत की। गायन आनंद किशोर मिश्र, सितार पर पं. ध्रुव नाथ मिश्र और शैलेश भारती रहे। प्रवीण ने एकल तबला वादन से हाजिरी लगाई। इससे पूर्व प्रारंभ में पं. चंद्रकांत प्रसाद ने शहनाई वादन में सोहर व कजरी के धुनों से मां के चरणों में श्रद्धा अर्पित की। वहीं, कथक व तबला वादन के बाद मोहन कृष्ण ने बांसुरी की मधुर तान छेड़ी।
महंत पंडित कौशल पति द्विवेदी ने मां कूष्मांडा को नूतन वस्त्र आभूषण और सुगंधित फूलों से सुसज्जित किया। तत्पश्चात आरती पं. संजय दुबे ने की। डमरू दल द्वारा वादन किया गया। भक्तों में हलवा व चना का प्रसाद बांटा गया। संचालन गीतकार कन्हैया दुबे (केडी) ने किया। इस अवसर पर पं. शिवनाथ मिश्र, पं. राजेंद्र प्रसन्ना सहित सभी कलाकारों का स्वागत चुनरी, प्रसाद व माल्यार्पण से महंत पं. रामनरेश दुबे व पं. संजीव दुबे ने किया।
नमन करो महारानी भवानी…
वाराणसी। शास्त्रीय गायक पं. देवाशीष डे ने मध्य रात्रि में मंच संभाला और शुरुआत विलंबित रूपक में निबद्ध बंदिश से की। बोल थे देख मां मेरी ओर…। इसके उपरांत इसी राग में द्रुत त्रिताल की बंदिश सुनाई जिसके बोल थे नमन करो महारानी भवानी…। भजन से उन्होंने अपनी गायिकी को विराम दिया। तबले पर सिद्धांत मिश्रा, हारमोनियम पर इंद्रदेव चौधरी और गायन में आद्या मुखर्जी ने संगत की।
पं. गणेश प्रसाद ने साधी डेढ़ साल पुरानी कजरी
वाराणसी। रात करीब डेढ़ बजे मंच पर पहुंचे प्रख्यात गायक पं. गणेश प्रसाद मिश्र ने राग सोहनी में निबद्ध अति प्राचीन संस्कृत की बंदिश को सुना। बोल थे जगत जननी जगदंब भवानी…। इसके पश्चात पं. बड़े रामदास मिश्र की रचना हमरे सांवरिया नहीं आए सजनी छाई घटा घनघोर… को साधा। गायिकी का समापन रिमझिम पड़ेला फुहार बदरिया घेरी अइनी ननदी…से किया। बांसुरी पर शनीश, तानपुरे पर शुभ मिश्र, तबले पर सिद्धार्थ मिश्र और सारंगी पर आशीष मिश्र ने संगत की। इसके बाद नीरज मिश्र का सितार वादन हुआ। नीरज ने राग अहिरी में मसिदखानी गत को विलंबित तीन ताल में और रजाखानी गत को द्रुत तीन ताल में श्रोताओं को सुनाया। इसके उपरांत झाला और अंत में देवी गीत को सितार की तारों पर पिरोया। तबले पर प्रीतम मिश्रा की संगत रही।