राजधानी जयपुर में बुधवार को बछ बारस पर जगह-जगह गाय बछड़े की पूजा की गई। इस मौके पर महिलाओं ने पुत्र प्राप्ति और पुत्र रक्षा के लिए व्रत रखा। महिलाओं ने लकड़ी के पाटे पर गीली मिट्टी से गाय-बछड़ा ,बाघ-बाघिन की आकृति बनाकर उसकी पूजा की। जगह-जगह गो पूजन कर गाय-बछड़ों को हरा चारा, दलिया आदि खिलाकर परिवार की खुशहाली की कामना की। इसके मंदिरों में ठाकुरजी को नवीन पोशाक धारण करवाई गई। मंदिर के गर्भगृह को वन उपवन की तरह पेड़, पौधे, पत्तियों घास से सजाया गया। इस अवसर पर महिलाओं ने बाजरे की रोटी दही खाकर उपवास खोला। वहीं कुछ सार्वजनिक स्थलों पर आवारा गायों को हरा चारा खिलाकर पुण्य कमाया।
गौरतलब है कि भाद्रपद की द्वादशी पर बछ बारस या गोवत्स द्वादशी व्रत पुत्र की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है। इस बार बछ बारस दो दिन मनाई जा गई। हालांकि ज्योतिषाचार्यों के अनुसार पुष्य नक्षत्र होने के चलते बुधवार के दिन बछ बारस ज्यादा फलदायी रही। इस दिन गोमाता की बछड़े सहित पूजा की जाती है। वहीं माताएं अपने पुत्र की मंगल कामना के लिए व्रत रखती है और पूजा करती है। यह त्योहार संतान की कामना और उसकी सुरक्षा के लिए किया जाता है। इसमें गाय-बछड़ा और बाघ-बाघिन की मूर्तियां बना कर उनकी पूजा की जाती है। व्रत के दिन बछड़े वाली गाय की पूजा कर कथा सुनी जाती है फिर प्रसाद ग्रहण किया जाता है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस दिन गेंहू से बने हुए पकवान और चाकू से कटी हुई सब्जी नहीं खाए जाते हैं। बाजरे या ज्वार का सोगरा और अंकुरित अनाज की कढ़ी, सूखी सब्जी बनाई जाती है।