श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के श्रीमहंत सचिव और अखाडा परिषद अध्यक्ष रविन्द्र पुरी के खिलाफ कोर्ट ने मुकदमा दर्ज कर लिया है। इससे महंत की मुसीबतें बढ़ना तय हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता वासू सिंह ने न्यायालय में प्रार्थना पत्र देते हुए कहा था कि मां मंशा देवी मंदिर वन विभाग की भूमि है और यह किसी की निजी सम्पत्ति नहीं है। यहां आने वाले प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये दान की राशि की बंदरबांट की जा रही है। उन्होंने बताया कि वर्ष 1903 में महंतानी सरस्वती गिरि पत्नी मुखराम गिरि मंशा देवी मंदिर की सेवादार थीं। 1903 में वन विभाग ने 40-40 का एक चक मां मंशा देवी को दिया था, जिसकी एक वसीयत सरस्वती देवी ने की, जिसमें 9 लोगों को ट्रस्टी बनाया गया जबकि सरस्वती देवी को वसीयत करने का अधिकार नहीं था।
इसका कारण की जिस स्थान की वसीयत की गयी, वह वन विभाग की सम्पत्ति है। 1972 में वसीयत के आधार पर ट्रस्ट बनाया गया और इस ट्रस्ट को फर्म सोसायटी रजिस्ट्रार के यहां पंजीकृत कराया। उसके बाद से ही ट्रस्ट अपंजीकृत की श्रेणी में आज तक चला आ रहा है। वर्तमान में ंफर्जी तरीके से महंत रविन्द्र पुरी, अनिल शर्मा, राजगिरि, बिन्दू गिरि ने अवैध रूप से स्वयं को ट्रस्टी घोषित किया हुआ है। उपरोक्त लोग मंशा देवी में आने वाले करोड़ों रुपये के दान को अपनी स्वार्थपूर्ति हेतु निजी उपयोग में ला रहे हैं। इतना ही नहीं उक्त लोग अपने आप को ट्रस्टी बताते हुए लोगों को गुमराह कर रहे हैं।
इतना ही नहीं महंत रविन्द्र पुरी और बिन्दू गिरि मंशा देवी मंदिर ट्रस्ट के नाम से फर्जी रसीदें छपवाकर उनका सरकारी, गैर सरकारी कार्यों में ट्रस्ट के रूप में दुरुपयोग कर रहे हैं। इनके द्वारा फर्जी तरीके से ट्रस्ट दिखाकर आयकर विभाग से 80 जी की सुविधा लेकर घोटाला किया जा रहा है जबकि इस नाम का कोई ट्रस्ट अस्तित्व में नहीं है। उक्त लोग मंदिर के नाम पर स्वयं को ट्रस्टी दर्शाकर पम्पलेंट, विज्ञापन आदि देकर लोगाें ंको गुमराह करने का काम कर रहे हैं।
उक्त संबंध में नगर कोतवाली में कई बार उक्त के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए शिकायती पत्र दिया गया, किन्तु पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। वासू सिंह ने आरोपों के साथ सभी साक्ष्य न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए। साक्ष्यों का अवलोकन करने के बाद विद्वान जज प्रथम अपर सिविल जज विवेक सिंह राणा ने साक्ष्यों का अवलोकन करते हुए मुकदमा दर्ज कर लिया। जज ने उपलब्ध कराए साक्ष्यों को पर्याप्त मानते हुए विवेचना की आवश्यकता महसूस नहीं की और उपरोक्त चारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करते हुए 15 सितम्बर को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत होने के आदेश दिए हैं।