अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) जॉन बोल्टन ने अमेरिका और तालिबान के बीच हुए दोहा समझौता पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि दोहा समझौता कर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सबसे बड़ी गलती की। बोल्टन ने एक मीडिया समूह को दिए इंटरव्यू में इस मसले पर बेबाकी से टिप्पणी की है।
पूर्व एनएसए ने कहा कि तालिबान ने अफगानिस्तान के लोगों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को पूरा नहीं किया और बड़े पैमाने पर विदेशी लड़ाके अफगानिस्तान आए हैं। उल्लेखनीय है कि अमेरिका और तालिबान ने फरवरी 2020 में ट्रंप की अध्यक्षता में शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते में तय हुआ था कि अफगानिस्तान में तैनात सभी अमेरिकी सैनिकों की वापसी होगी और तालिबान हिंसा पर रोक लगाएगा। तालिबान इस बात की गारंटी देगा कि अफगानिस्तान में आतंकवादियों को पनपने नहीं दिया जाएगा।
बोल्टन ने कहा है- ‘मुझे लगता है कि इतिहास ने इसे साबित कर दिया कि यह एक गलत समझौता था। तालिबान चाहता था कि अमेरिका और नाटो, अफगानिस्तान छोड़कर बाहर चले जाएं और उसमें वो कामयाब हुआ।’ उन्होंने कहा कि तालिबान अपने वादों को पूरा नहीं कर सका है और बड़ी संख्या में तालिबानी लड़ाके अफगानिस्तान लौट आए हैं।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल 15 अगस्त को पूरी तरह अमेरिकी सैनिकों की वापसी होने के साथ ही तालिबान ने पूर्ण रूप से अफगानिस्तान की सरजमीं पर कब्जा कर लिया। इसके बाद से तालिबान ने अफगानिस्तान में मनमाने तरीके से शासन करना शुरू कर दिया है। तालिबना ने अफगानिस्तान में कई तरह की अनैतिक बंदिशें लगाई हैं। अफगानिस्तान में तैनात अमेरिका के पूर्व राजदूत जाल्मय खलीलजाद पर निशाना साधते हुए बोल्टन ने कहा कि अफगानिस्तान में शांति कायम करने के लिए अमेरिका के पूर्व राजदूत ने कोई योगदान नहीं दिया। वो पूर्व राष्ट्रपति के इशारों पर काम कर रहे थे।
आशा खबर /रेशमा सिंह पटेल